Diwali 2022: बांसवाड़ा में दिवाली पर निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा, नए दूल्हा-दुल्हन के लिए होती है बेहद खास
दिवाली पर राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराएं निभाई जाती हैं. इन्हीं में से एक है बांसवाड़ा की मेरियू परंपरा. आइए जानते हैं इसके बारे में.
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Diwali 2022: उदयपुर संभाग के वागड़ यानी बांसवाड़ा जिला जो अपनी अलग-अलग परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है. अभी हम जो बात करने जा रहे हैं वह है दीपावली पर मनाई जाने वाली मेरियू परंपरा की. कई सालों से वागड़ क्षेत्र के गांवों में यह परंपरा निभाई जाती है और यह परंपरा नव विवाहित जोड़ों के लिए होती है. इसका संदेश है कि समाज मे एकजुटता और समरसता रहे, साथ ही नव विवाहितों को आशीर्वाद देना. मेरियू का एक अलग अर्थ भी निकलता है. यह मेह एयर रियू से मिलकर बना है. मेह यानी बारिश और रियू मतलब थम गई. यह बारिश का मौसम जाने का सूचक है.
मेरियू क्या होता है?
बांसवाड़ा के पंडित निकुंज तलवाड़ ने बताया कि मेरियू दीपक का ही एक अलग रूप है. मेरीयू बनाने के लिए गन्ने के छोटे टुकड़े करते हैं. फिर सूखा नारियल लेकर उसके पैंदे में छेद कर गन्ने को ऊपरी हिस्से में लगाया जाता है. इन दोनों को गोबर से लीप कर सुखाते हैं. इसके बाद मेरीयू में रुई की बत्ती लगा कर तेल भर कर जलाया जाता है. इसे बनाने में नारियल के अलावा मिट्टी के दीपक का उपयोग भी होता है.
ऐसे मनाई जाती है मेरियू परंपरा
उन्होंने बताया कि दीपावली के अगले दिन यह परंपरा निभाई जाती है. इसमें नव विवाहित दूल्हा अपने घर की चौखट पर खड़ा होता है, जिसके हाथ में मेरियू होता है. इनके पास ही दुल्हन खड़ी होती है. पड़ोसी, रिश्तेदार, घर के सदस्य तेल लेकर आते हैं और फिर दुल्हन को देते हैं. दुल्हन मेरियू में तेल पुरवाती है. बाद में सभी महिलाएं भगवान राम के आगमन के गीत गाती हैं. साथ ही दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देते हैं. इसके पीछे वजह है कि दूल्हा-दुल्हन का जीवन प्रकाशित रहे, दुल्हन के तेल पुरवाने का मतलब की दोनों जीवन को सफल बनाने में एक दूसरे के पूरक बने और समाज मे भेदभाव खत्म हो.
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