Right to Health:  राजस्थान में राइट टू हेल्थ (Right to Health) को लेकर हुए आंदोलन के बाद सरकार और चिकित्सकों के बीच सहमति बनी  थी. इसमें कई बातों पर लिखित समझौता हुआ था. इसके बाद चिकित्सकों के हितों को सुरक्षित महसूस करने के बाद आंदोलन को वापस लिया गया था. लेकिन आरटीएच लागू करने के दौरान एक कमेटी बनाने की बात हुई थी, जिममें चिकित्सकों को भी शामिल करना था. राजस्थान सरकार ने अपने वादे को नहीं निभाया और कमेटी बना दी.इसमें चिकित्सकों को शामिल नहीं किया गया है.इससे चिकित्सक नाराज हैं. वो सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगा रहे हैं. 


क्या कहना है डॉक्टरों का


डॉक्टर संजय जायसवाल का कहना है कि राजस्थान सरकार ने राज्य की जनता को फ्री इलाज देने के बहाने राजस्थान के निजी अस्पतालों के ऊपर एक कानून थोपने की कोशिश की है. इसमें सिर्फ फ्री इलाज को केंद्र में रखा गया है. इस कानून में चिकित्सकों और अस्पतालों के हितों की अनदेखी की गई है.उनका कहना है कि निजी अस्पतालों को अफसरशाही के चंगुल में फंसाने का प्रयास किया गया है. डॉक्टर जायसवाल ने कहा कि सरकार के साथ हुए समझौते में उन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और कुछ चुनिंदा अस्पताल जिन्हें सरकार से निशुल्क या सस्ती दरों पर जमीन मिली उनके अतिरिक्त बाकी के अस्पतालों को आरटीएच के दायरे से बाहर रखने की बात थी. अब सरकार अपने ही लिखित समझौते की पालना नहीं कर रही है. उसने जो कमेटी बनाई है उसमें दो चिकित्सकों को शामिल किया जाना था जो नहीं किया गया.


सरकार से क्या चाहते हैं डॉक्टर


सचिव उपचार कोटा ब्रांच एवं मेंबर स्टेट एग्जीक्यूटिव कमेटी डॉ. अमित व्यास ने कहा कि सरकार लिखित समझौते से पलट रही है.सरकार राज्य के 50 हजार चिकित्सकों और चार हजार निजी अस्पतालों के साथ वादाखिलाफी कर रही है. डॉ. व्यास ने कहा कि सरकार की मंशा आरटीएच के मामले में शुरू से ही ठीक नहीं थी. अब कमेटी के गठन को देखने के बाद यह साबित हो जाता है कि सरकार वादा खिलाफी कर रही है.डॉ. व्यास ने मुख्यमंत्री और राजस्थान सरकार से अपील की कि आरटीएच पर बनी कमेटी में चिकित्सक संगठनों के सदस्यों को भी शामिल किया जाए. 


ये भी पढ़ें


Rajasthan Elections: गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने ही नेताओं को सुनाई खरी-खरी, बोले- 'मैं जानता हूं कई सिफारिश से आए...'