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Dungarpur News: डूंगरपुर में गवाही से पलटी लड़की, डीएनए टेस्ट के आधार पर 19 साल के लड़के को हुई 20 साल की सजा, जानें- पूरा मामला
Udaipur News: विशेष लोक अभियोजक योगेश कुमार जोशी ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि पीठासीन अधिकारी ने आरोपी 19 साल के कुलदीप को 20 साल के कठोर कारावास और 1 लाख रुपये के जुर्माने से दंडित किया है.
Udaipur News: राजस्थान (Rajasthan) में लगातार रेप के मामले सामने आ रहे हैं. इन मामलों में मुकदमें भी दर्ज हो रहे हैं, लेकिन कोर्ट में अलग ही बातें सामने आ रही हैं. कई ऐसे फैसले हुए हैं, जिसमें आरोपी को सजा तो हुई है, साथ में परिवादी पक्ष के खिलाफ भी कार्रवाई हुई है. ऐसा ही एक मामला मंगलवार को उदयपुर संभाग (Udaipur Division) के डूंगरपुर (Dungarpur) जिले में सामने आया है. यहां पीड़िता, उसके माता-पिता अपनी गवाही से पलट गए, फिर भी डीएनए जांच के आधार पर 19 साल के आरोपी को कोर्ट ने 20 साल की सजा सुनाई है.
यहीं नहीं परिवादी पक्ष के खिलाफ भी कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं, क्योंकि उन्होंने झूठी गवाही दी. विशेष लोक अभियोजक योगेश कुमार जोशी ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि पीठासीन अधिकारी ने आरोपी 19 साल के कुलदीप को 20 साल के कठोर कारावास और 1 लाख रुपये के जुर्माने से दंडित किया है. डीएनए एफएसएल की रिपोर्ट ने आरोपी कुलदीप का अपराध करना साबित किया. कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य को देखने पर स्पष्ट हुआ कि परिवादी पक्ष ने जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य दिए, क्योंकि रिपोर्ट जो दर्ज की गई थी, वह आरोपी के खिलाफ नामजद थी.
परिवादी पक्ष ने दी थी झूठी गवाही
उन्होंने कहा कि परिवादी पक्ष ने कोर्ट में आकर झूठी गवाही दी कि एफआईआर परिवार वालों और गांव वालों के कहने पर दी थी. कोर्ट ने कहा कि यह अपराध न केवल पीड़िता ही नहीं यह पूरे समाज के प्रति अपराध और बुराई है. एक विकासशील समाज में इस प्रकार के घिनौने और घृणित अपराधों को साधारण रूप में नहीं लिया जा सकता है. इसे गंभीरता से विचार और मनन किए जाने की वर्तमान परिस्थिति में आवश्यकता और समाज की मांग है.
'ऐसी घटना को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता'
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में इस प्रकार की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, जो सभ्य समाज के लिए अभिशाप है. ऐसी घटना को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है. 18 साल से कम उम्र की युवती के साथ सहमति से किया गया सेक्सुअल इंटरकोर्स को कानूनी मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन विधायिका का भी इस ओर ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है. ऐसे प्रकरणों में नाबालिग जो पक्ष द्रोह हो जाती है, ग्रामीण अंचल के साथ-साथ जनजातिय क्षेत्रों में इस पर गहराई से ध्यान देकर कानून में संशोधन की आवश्यकता है.
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