Eid-ul-Fitr 2022: ईद-उल-फितर करीब आते ही मन में सेवइयों के मीठे स्वाद का एक अलग ही एहसास भर जाता है. रमजान महीने के आखिरी दिनों के साथ ही ईद-उल-फितर की आहट से बाजारों में सेवइयां सजने लग जाती है. मीठी ईद सेवइयों के बिना फीकी हैं, लेकिन हम आपको राजस्थान (Rajasthan) के बूंदी (Bundi) जिले के एक ऐसे परिवार से मिलाने जा रहे हैं जो 75 सालों से ईद पर हाथों से सेवई बना रहा है. इन दिनों शहर में कई परिवार सेवइयां बनाने में व्यस्त हैं. इनका कहना है कि हम चाहें तो मशीन से भी सेवइयां बना सकते हैं, लेकिन परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए हाथ से ही बनाते हैं, ताकि यह कला यहीं खत्म न हो जाए.


हाथ से बनी सेवइयों की मांग बूंदी, कोटा, झालावाड़, टोंक, जयपुर, अजमेर से लेकर एमपी और यूपी सहित कई राज्यों तक है. क्योंकि हाथ से बनी सेवइयां इन जगहों पर कम ही मिलती हैं. वैसे तो मशीन से बनी सेवइयां 150 रुपये किलो में मिल रही हैं, जबकि हाथ से बनी सेवइयां 110 रुपये किलो में ही मिल रही है. मशीन से बनने वाली सेवइयों में बिजली सहित कई प्रकार के खर्चे जोड़कर 150 रुपये किलो मार्किट में बिकती है. हाथ से बनी सेवइयां बनाने के लिए महिलाएं सुबह 5 बजे से ही जुट जाती हैं. सभी मिलकर रोज 3 घंटे काम कर 10 प्रकार से स्वाद लजीज सेवइयां बना देते हैं.


हाथ से ऐसे बनाई जाती हैं सेवइयां 


यहां मोटी और बारीक सहित कई प्रकार के अलग-अलग रंगों की सेवइयां बनाई जाती हैं. खास बात यह है कि सेवइयां बनाने में मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता. केवल मजदूरी और माल की कीमत जोड़कर ही यह परिवार हाथ से बनी सेवइयों को मार्केट में बेच रहे हैं. व्यापारी असलम ने बताया कि पहले रात को मैदा और सूजी को भिगो दिया जाता है. सुबह इसे गूंथा जाता है, फिर हाथों से महिलाएं लंबे-लंबे लच्छे बनाती हैं और उन्हें गोल-गोल घुमाया जाता है. इसके बाद डोर की तरह पतला करके झाड़ियों के गुच्छे में सुखाने के लिए डाल दिया जाता है. 1 घंटे सुखाई जाती है, जिसके बाद पैकेट में पैक कर मार्केट या आर्डर पर भेज दिया जाता है. असलम और उनकी पत्नी नसीम बानो ने बताया कि हमारे पास मशीन वाले आर्डर भी आते हैं, लेकिन हम उन्हें हाथ से बनी हुई सेवइयां का स्वाद करवाते हैं तो वे यही ले जाते हैं.


कई राज्यों में है हाथ से बनी सेवइयों की डिमांड


रमजान का महीना खत्म होने को हैं. चांद का दीदार करने के बाद ईद मनाई जाती है. ईद के मौके पर घरों में तरह-तरह की सेवइयां बनाई जाती हैं. बूंदी में 8-10 परिवार हैं, जो सेवइयां बनाते हैं. परंपरा जिंदा रहे, इसके लिए बेटी-बहुओं को भी बनाना सिखाते हैं. व्यापारी असलम बताते हैं कि हाथ से बनी सेवइयों की मांग बूंदी, कोटा, झालावाड़, टोंक, जयपुर, अजमेर से लेकर एमपी, यूपी सहित कई राज्यों तक है, क्योंकि हाथ से बनी सेवइयां वहां कम ही मिलती हैं. ऐसे में हाथ से बनी सेवइयां ज्यादा पसंद आती है, इसलिए इसकी डिमांड ज्यादा है.


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