Jaipur News: प्रदेश की पहचान बाजरा, सियासत में मुद्दा बनता है लेकिन जो अन्नदाता करोड़ों का बाजरा पैदा करते हैं उनके लिए सियासत खामोश हो जाती है. बाजरा उत्पादक किसानों को बाजरे का समर्थन मूल्य घोषित करने से उम्मीद नजर आती है लेकिन सियासत जब घोषणा तक ही सीमित रह जाती है तो किसानों का दर्द सामने आ जाता है. ये दर्द तब और बढ़ जाता है जब राजस्थान से कई कमतर बाजरा उत्पादन करने वाले राज्य हरियाणा, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश समर्थन मूल्य पर बाजरा खरीद करते दिखते हैं लेकिन देश का 40 प्रतिशत बाजरा उत्पादन करने वाले प्रदेश के किसान बाजरे की सरकारी खरीद से वंचित रह जाते हैं.


इस बार राजस्थान में जोरदार हुई है बाजरा की फसल


प्रदेश में इस बार अच्छे मॉनसून के चलते किसानों ने बाजरे की ऐतिहासिक बुवाई की है. अब तक के मौसम अनुसार झोला चलने से हुए नुकसान के बावजूद प्रदेश में बाजरा पैदावार का रिकॉर्ड बनने की उम्मीद है. प्रदेश में 45.12 लाख हैक्टेयर में बाजरे की बुवाई हुई है जहां 60 लाख टन बाजरे की पैदावार का अनुमान है. सरकार ने बाजरे का समर्थन मूल्य 2350 रुपए प्रति किंवटल घोषित किया हुआ है. ऐसे प्रदेश में मुट्ठी भर कहे जाने वाले बाजरे की समर्थन मूल्य से कुल कीमत 14 हजार करोड़ रुपए बनती है.


एमएसपी पर बाजरा खरीद की मांग कर रहे किसान


हालांकि अभी बाजरे का बाजार भाव 1800 रुपए किंवटल के आसपास है, जिससे में समर्थन मूल्य के बगैर किसानों को सीधा 550 रुपए प्रति किंवटल का नुकसान होता दिख रहा है. इस नुकसान का पूरा गणित लगाएं तो ये 3300 करोड़ के लगभग बैठता है. इस नुकसान से किसानों को बचाने का उपाय समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद है लेकिन किसान समर्थन मूल्य खरीद को लेकर आशंकित हैं. किसानों की आशंका के पीछे भी ठोस कारण है. पिछले दो वर्षों में  50.86 लाख व 57.73 लाख मीट्रिक टन  बाजरे की पैदावार हुई थी. साल 2020 में बाजरे का समर्थन मूल्य 2150 रुपए क्विंटल था और बाजार में बाजरा 1500 - 1600 रुपए क्विंटल बिका जिससे किसानों को 3200 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था.



 ऐसे ही 2021 में बाजरे का समर्थन मूल्य 2250 रुपए क्विंटल घोषित कर रखा था.. फसल विपणन के दौरान बाजरे का बाजार भाव 1200-1300 रुपए क्विंटल ही था. ऐसे में इस दौरान किसानों को बाजरे में हजार रुपए किंवटल से ज्यादा का नुकसान हुआ. ये कुल नुकसान 5500 करोड़ से अधिक का था. पिछले दो वर्षो में ही बाजरे की समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने से किसानों को  8700 करोड़ से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा था. इस बार भी ऐसी ही स्थिति बनती दिख रही है. प्रदेश में मुट्ठी भर बाजरे का नाम लेकर भले ही आपको सियासत होती दिख जायेगी लेकिन पक्ष और विपक्ष की ओर से बाजरे में किसानों को हो रहे अरबों रुपए के नुकसान व इससे प्रदेश की पहचान से जुड़े बाजरे के भविष्य व प्रदेश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान का मुद्दा कहीं सुनाई नहीं दे रहा.


किसानों ने सीएम को सौंपा ज्ञापन
 पिछले दो वर्षो में किसानों ने लगातार सरकार से समर्थन मूल्य खरीद को लेकर सरकार के सामने मांगें रखीं लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया. प्रदेश की ओर से केंद्र सरकार को बाजरे की खरीद के लिए  प्रस्ताव तक नहीं भेजा गया. किसानों को फसलों के अच्छे दाम दिलाने हेतु कृषक कल्याण कोष के गठन व कृषक कल्याण कोष को बढ़ाने की घोषणाएं कागजों में ही दम तोड़ती दिख रही हैं. हाल ही में किसानों ने बाजरा खरीद की मांग को लेकर प्रदेश के तहसील मुख्यालयों से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजे थे जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार किसानों की सुने और समर्थन मूल्य खरीद शुरू कर किसानों को अब और अधिक नुकसान से बचाया जाए.


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