(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Rajasthan: दुल्हन की तरह सजकर आईं और दीक्षा लेकर साध्वी बनीं चार महिलाएं, देखते रह गए लोग
सांसारिक जीवन का त्याग कर चारों ने संयम पथ अंगीकार किया और मोह माया का त्याग कर साधु जीवन अपना लिया. आचार्य विजयराज महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन के कल्याण के लिए संयम पथ ही सर्वश्रेष्ठ है.
Jain Diksha In Ajmer: भव्य पांडाल में गाजे-बाजे के बीच जैन समाज की चार महिलाएं दुल्हन की तरह सजकर पहुंची. देशभर से आए लोगों ने उनका स्वागत किया. दर्जनों संत-साध्वियों की मौजूदगी में धार्मिक रस्में निभाई गईं. देखते ही देखते समाज के सामने चारों महिलाएं साध्वी बन गई. अब उन्हें नए नामों से पहचाना जाएगा. अजमेर (Ajmer) जिले के बिजयनगर शहर में जैनाचार्य विजयराज महाराज व महासती वसुमति की पावन निश्रा में चार मुमुक्षुओं ने जैन भागवती दीक्षा (Jain Diksha) ग्रहण की.
सांसारिक जीवन छोड़ अपनाया संयम पथ
भौतिक युग में सांसारिक जीवन का त्याग कर चारों ने संयम पथ अंगीकार किया और मोह माया का त्याग कर साधु जीवन अपना लिया. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ और नवकार परिवार की ओर से बिजयनगर में आयोजित भव्य दीक्षा महोत्सव में वेल्लूर तमिलनाडु निवासी मुमुक्षु स्नेहा गोलेछा, नागौर निवासी निशा कोठारी, किशनगंज बिहार निवासी नेहा लोढ़ा और बिजयनगर निवासी आंचल धम्माणी ने दीक्षा ग्रहण की.
दीक्षा महोत्सव में आचार्य विजयराज महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन के कल्याण के लिए संयम पथ ही सर्वश्रेष्ठ है. संसार में भोग विलासिता, मोह, माया, राग, द्वेष आदि कषायों के जाल में फंसने के पश्चात मिलने वाले तात्कालिक सुख से कर्म बंधन बढ़ते हैं. इससे जीवन कल्याण के बजाय विनाश की ओर जाता है. पूर्व जन्म में किए गए अच्छे कर्मों की बदौलत हमें मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है.
हमें अपने जीवन का महत्व समझना चाहिए और परमात्मा का सानिध्य और संतजनों की प्रेरणा से जीवन के कल्याण के लिए सबसे श्रेष्ठ संयम मार्ग पर अग्रसर होकर स्वकल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए. अन्य संत-साध्वियों ने भी जीवन में संयम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए समय का सदुपयोग करने की प्रेरणा दी. कार्यक्रम में 14 संत और 40 साध्वियों का सानिध्य प्राप्त हुआ. दीक्षा से पहले वैरागिनों की महाभिनिष्क्रमण यात्रा निकाली गई.
यात्रा उनके अस्थाई निवास से गाजे-बाजों के साथ शुरू होकर दीक्षा स्थल पहुंची. यात्रा में सभी परिजन व धर्मावलंबी जयकारे लगा रहे थे. मुमुक्षुओं का केश लोचन करने के बाद साध्वी वेश धारण कर जैनाचार्य के समक्ष पहुंची और दीक्षा पाठ प्रदान करने का आग्रह किया. जैनाचार्य ने पांडाल में मौजूद संतों-साध्वियों और हजारों श्रावक-श्राविकाओं की स्वीकृति पर चारों वैरागिनों को दीक्षा मंत्र प्रदान कर संयम पथ पर बढ़ने की आज्ञा दी. दीक्षा मंत्र प्रदान करते ही पूरा पांडाल भगवान महावीर स्वामी और जय गुरु नाना, जय गुरु विजय के जयघोष से गूंज उठा.
बिजयनगर में पहली बार एक साथ 4 दीक्षा
मुमुक्षुओं को दीक्षा प्रदान करने के बाद जैनाचार्य विजयराज महाराज ने चारों का नया नामकरण किया. अब स्नेहा गोलेछा को स्नेहा प्रभाश्री, आंचल धम्माणी को संकल्प प्रभाश्री, निशा कोठारी को नित्य प्रभाश्री और नेहा लोढ़ा को निरंतर प्रभाश्री के नाम से पहचाना जाएगा. बिजयनगर में पहली बार एक साथ चार दीक्षा हुई. दीक्षा महोत्सव में देशभर से आए हजारों जैन धर्मावलंबी शामिल हुए.
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