Bharatpur News: भरतपुर के विकास में बाबू राजबहादुर का है बड़ा योगदान, देश की आजादी के लिए भी गए थे जेल
Rajasthan News: भरतपुर के विकास की बात आते ही बाबू राजबहादुर याद आते हैं. देश की आजादी के लिए उन्होंने 700 कार्यकर्ताओं के साथ आंदोलन किया था.
Babu Rajbahadur Profile: भरतपुर के विकास की बात आते ही याद आते है बाबू राजबहादुर, बाबू राजबहादुर का जन्म 21 अगस्त 1912 को हुआ था. उनके पिता का नाम सुन्दर लाल श्रीवास्तव था, उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भरतपुर से की उसके बाद वह आगरा चले गए और वहां से उन्होंने BSC प्रथम श्रेणी में पास कर इंग्लिश से MA किया. उस समय शिक्षा का माध्यम उर्दू और फारसी था. इसके बाद में बाबू राजबहादुर ने LAW की पढ़ाई भी की. उर्दू और अंग्रेजी में पढ़ाई के बाद भी बाबू राजबहादुर हिंदी से प्यार करते रहे क्योंकि मात्र भाषा तो हिंदी ही थी.
सन 1938 में उत्तरदायी शासन की मांग को लेकर भरतपुर राज्य प्रजा मंडल की ओर से अंग्रेजों के खिलाफ एक जोरदार आंदोलन चलाया गया. इस आंदोलन को लेकर 26 दिसंबर 1938 को राज्य सरकार से समझौता हो गया. फिर साल 1940 में भरतपुर राज्य परिषद के नाम से जनसेवा और जन चेतना का काम शुरू किया गया. इस दौरान कुछ कार्यकर्ताओं ने परिषद द्बारा अपनाये गए रास्ते से अलग हो गये. वहीं दूसरी तरफ कुछ देश प्रेमी ऐसे थे जो उत्साह के साथ उसमे जुड़ गए.
कैसे हुई राजनीति की शुरुआत
भरतपुर राज्य परिषद् में शामिल होने वाले युवाओं में एक बाबू राजबहादुर भी थे. जो उस समय राज्य सरकार की तरफ से गठित केंद्रीय सलाहकार समिति और कुछ सरकारी और गैरसरकारी समितियों से जुड़े थे. वह इतने लोकप्रिय हो गए की 1940 में भरतपुर प्रजा परिषद् के चुनाव हुए. तब प्रजा परिषद की टिकट पर खड़े हो गए और अपने वार्ड से जीत गए तब से उनकी राजनिति की शुरुआत हुई.
भारत छोड़ों आंदोलन में लिया भाग और छोड़ दिया पद
बाबू राजबहादुर ने 3 साल तक पद पर रहने के बाद अपना पद छोड़ दिया और गांधी जी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ों आंदोलन में भाग लिया. उसके बाद तरह-तरह से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ते रहे. इस दौरान वह एक बार जेल में भी गए. जनवरी 1947 में बाबू राजबहादुर ने बेगार विरोधी आंदोलन शुरू किया गया. फिर 14 जनवरी को वायसराय लार्ड वेवल हवाई जहाज से भरतपुर के अखण्ड पर उतरे. जिसके विरोध में भरतपुर शहर के कुम्हेर गेट से एक विशाल जुलूस अखड्ड की तरफ जा रहा था. जुलूस को पुलिस ने बंदूकों के बल पर रोक लिया और वह जुलूस वहीं खत्म हुआ.
बंदूकों और भालों से किया था घायल
अगले दिन 15 जनवरी को ही किले के दरवाजे पर सत्याग्रहियों ने धरना दिया. जिन्हें बंदूकों और भालों से घायल कर दिया गया और घायल हालत में ही जेल में डाल दिया गया. जेल में कड़ी यातनाएं दी गईं और यह आंदोलन लगातार 6 महीने चला. जब देश आजाद हुआ तो बाबू राजबहादुर और उसके साथियों को भी रिहा किया गया.
लोकसभा का सदस्य बन केंद्रीय मंत्रिमंडल में हुए थे शामिल
आजादी के बाद जब लोकप्रिय मंत्रिमंडल बना अलवर और भरतपुर से संविधान सभा के लिए एक-एक सदस्य भेजने का समय आया तो भरतपुर से बाबू राजबहादुर का नाम भेजा गया. साल 1952 में बाबू राज बहादुर भरतपुर से चुनाव हार गए लेकिन दौसा से चुनाव जीत कर लोकसभा के सदस्य बने और केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए. आगे कई बार लोकसभा और विधानसभा के सदस्य बने इस दौरान उन्होंने भरतपुर में काफी विकास किया. आज भी जब भरतपुर में विकास की बात आती है तो हर किसी के नाम पर बाबू राज बहादुर का नाम पहले आता है. शहरवासी कहते है की उद्योग धन्धे भरतपुर में बाबू राजबहादुर ही लेकर आये थे. इतना ही नहीं नेता चुनावों में अब भी बाबू राज बहादुर का नाम लेने से नहीं चूकते.
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