Jodhpur Teenager Suicide: ऑनलाइन गेम व गैंबलिंग (Gambling) नौनिहालों के बचपन को निगल रहे हैं. अब तो इसके चक्कर में फंसकर बच्चे मौत तक को गले लगा ले रहे हैं. ब्लू व्हेल व पबजी सहित कई अन्य ऑनलाइन गेम खेलने के चक्कर में कई बच्चे आत्महत्या (Suicide) तक की कोशिश कर चुके हैं. इधर, कई बच्चे तो अपने जीवन को खत्म कर चुके हैं. बच्चे ऑनलाइन गेम व गैम्बिलिंग में फंस कर बर्बाद हो रहे हैं. कई बच्चे तो अपने माता-पिता पर हाथ भी उठा देते हैं. बच्चे झूठ बोलने, मिर्गी, चिड़चिड़ेपन और अधिक आक्रामकता के शिकार हो जाते हैं.


ऐसा ही एक मामला जोधपुर (Jodhpur) जिले के लूणी के फ़िंच में सामने आया हैं. नौवीं कक्षा का 15 साल का छात्र ऑनलाइन गेम में 40 हजार रुपए हार गया. इसके बाद उसने खुदकुशी (Suicide) कर ली. 31 मार्च को घर से निकले इस छात्र का शव सोमवार को एक मन्दिर के पानी की टंकी में मिला.


ऑनलाइन गेम से रूक जाता है बौद्धिक विकास
नौनिहालों के बचपन के वो 5 वर्ष, जब बच्चों का बौद्धिक विकास होना होता है, लेकिन इस समय में ऑनलाइन गेम के चलते इनका बौद्धिक विकास रुक जाता है. वहीं 5 से 20 वर्ष तक गेम व गैम्बलिंग के चक्कर में बदलाव आता हैं.


क्या कहते हैं चिकित्सक
दिल्ली एम्स के डॉक्टर अंकित मीना बताया कि बच्चों का मोबाइल स्क्रीन टाइम कुछ समय से बढ़ता जा रहा है. इससे धीरे-धीरे बच्चों में बढ़ती उम्र के साथ कई हार्मोन के बदलाव के कारण प्रतिदिन 1 घंटे तक मोबाइल स्क्रीन देख रहे हैं या मोबाइल पर गेम खेल रहे हैं. ऐसे बच्चों में चिड़चिड़ापन, अकेलापन और ऑनलाइन गेम खेलने से मानसिक बीमारी गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है. बच्चों के दिमाग में हैप्पी हार्मोन के फारुख डोपामाइन का ज्यादा रिलीज होने लगता है. इससे बच्चों के दिमाग को इसकी आदत लग जाती है. उसके बाद बच्चों को सब कुछ अच्छा ही चाहिए होता है. थोड़ी सी भी परेशानी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं.


सोशल मीडिया से प्रोमोट करते हैं गेम
चिकित्सक ने बताया कि खासतौर से मस्तिष्क में चार प्रकार के हैप्पी हारमोंस मौजूद होते हैं. इनमें से एक डोपामाइन होता है. वैसे तो यह बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है. लेकिन, इसका अधिक मात्रा में होना गलत है. ऑनलाइन गेम के जरिए बच्चों में मोटिवेशन हार्मोन बढ़ जाता है. मोबाइल गेम की लत से बच्चे बुरी तरह से ग्रस्त हो जाते हैं. इससे उनकी पूरी एकाग्रता मोबाइल की ओर हो जाती है. मोबाइल से दूर होते ही इनकी बेचैनी बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि आजकल के छोटे बच्चों को माता-पिता अपनी सुविधा के चलते मोबाइल दे देते हैं. इससे उनका मोबाइल का स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ता रहता है. सबसे बड़ी बात है कि इस तरह के गेम उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से प्रमोट किए जाते हैं. बच्चों में इसके प्रति जिज्ञासा बढ़ती है. वे ऑनलाइन गेम के चक्कर में गैंम्बिलिंग में फस जाते हैं.


हिंसक होने लगते हैं बच्चे
डॉक्टर अंकित ने बताया कि कई बार ऐसे पेशेंट हमारे पास आते हैं. बच्चो की ऐसी हरकतों से उनके माता-पिता बेबस और लाचार हो जाते हैं. क्योंकि उनके छोटे बच्चे ऑनलाइन गेमिंग और गैंबलिंग के चक्कर में फंस कर या तो माता-पिता पर हाथ उठाने लगते हैं या हिंसक होने लगते हैं. ये बच्चे घर में गलत काम तक करने लगते हैं. इसका कारण यह है कि ऑनलाइन गेमिंग के चलते ये बच्चे अधिकतर फिजिकल एक्टिविटी नहीं कर पाते हैं. इसलिए वे मोबाइल की दुनिया में ही रहते हैं. इसी मोबाइल की दुनिया को ऑनलाइन गेम बनाने वाले अपने चक्रव्यूह में फंसा कर उनको मजबूर कर देते हैं.


बच्चे को कभी न दें अलग से मोबाइल
डॉक्टर अंकित ने बताया कि ऑनलाइन गेम और गैंबलिंग के चक्कर में फंसे लूणी गांव के 9वीं कक्षा के बच्चे छोटे से बच्चे ने ऑनलाइन गैंबलिंग में हार के कारण आत्महत्या कर ली. ऐसा ही एक 12 साल की उम्र का पेशेंट कुछ दिनों पहले उनके पास पहुंचा था. बच्चे ने अपने मां बाप पर हाथ उठा लिया और घर से भाग गया था. बच्चे के माता-पिता दोनों ही बिजी रहते थे और उसे मोबाइल अलग से दिया हुआ था. अब बच्चा उसी पर ऑनलाइन गेम और गैंब्लिंग करने लगा. इस कारण बच्चा इंटरनेट की दुनिया में रहने लगा था. एकांत व चिड़चिड़ापन जैसी हरकतें बढ़ती रहती हैं. मोबाइल हाथ से लिया तो घरवालों पर हिंसक हमला करने लगा. छह 6 महीने तक उस की काउंसलिंग की गई. बच्चे की फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाई गई. उसके मां-बाप को भी हिदायत दी गई कि बच्चे के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं, तब जाकर बच्चा ठीक हुआ. 


मां पर चाकू से कर दिया हमला
जोधपुर के एयरफोर्स क्षेत्र में रहने वाले एक दंपत्ति ने बताया कि पबजी गेम की लत में बच्चे ने पढ़ाई छोड़ दी. एग्जाम हुए, रिजल्ट आने पर बच्चे ने अपना परिणाम तक नहीं बताया. स्कूल से पता चला कि बच्चे के बहुत कम नंबर आए हैं. वह फेल हो गया है. वह दिन-रात मोबाइल पर पबजी गेम खेलता तो एक दिन एक मां ने बच्चे को गेम खेलने के लिए मना किया तो मां के साथ बदतमीजी करते हुए चाकू लेकर हमला तक कर दिया.


परिजनों से दूर रहने लगा बच्चा
जोधपुर के शिप हाउस क्षेत्र एक दंपति अपने बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास पहुंचे. उसकी उम्र करीब 7 साल थी. वह 2 साल की उम्र से मोबाइल चला रहा था. पहले कार्टून देखता था. इसके बाद गेम खेलने लगा. इसके चलते वह अपने मां-बाप व सामाजिक रूप से परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़ ही नहीं पाया. वह कहीं पर भी जाता तो अकेले ही रहता था. इसी कारण वह किसी के सामने खुलकर बोल नहीं पा रहा था. घर में उससे मोबाइल छीनने पर बदतमीजी करने लगता और जोर-जोर से चिल्लाने लगता. ऑनलाइन गैंबलिंग के चक्कर में घर से रुपए भी चुराने लगा. गलत हरकतों का पता लगा तो मां-बाप बहुत परेशान हो गए


क्या कहते हैं साइबर एक्सपर्ट
साइबर एक्सपर्ट ने बताया कि इस तरह के ऑनलाइन गेम व गैम्बलिंग का प्रमोशन नहीं होना चाहिए. इन पर बैरिकेड सरकार की ओर से जरूरी है. आजकल आप कहीं पर भी देखिए, इस तरह की गेम और गैम्बलिंग के ऑफर दिखाए जाते हैं. इस पर सिर्फ एक नीचे लाइन लिखी जाती है कि इससे आपको नुकसान भी हो सकता है. इससे हर चीज को बदला नहीं जा सकता. ऑनलाइन गेम और गैंबलिंग नौनिहालों के बचपन को निगल रहा है. ऑनलाइन गेम खेलते वक्त बच्चों को नए हथियार लेने के लिए या नई गाड़ी लेने के लिए उनसे रुपए मांगे जाते हैं. ऑनलाइन गेम से उन्हें हिंसक बनाया जा रहा है. इसमें गाड़ी चोरी करना, किसी का गला रेतना या किसी को सिर पर गोली मारना जैसे टास्क दिए जाते हैं. इसके बाद वह हीरो बन जाता है. इन सब चीजों को वोट इमेज में देखता है और उसके दिमाग में यही चीजें रहती है कि वह यह करके सब में बेस्ट बन सकता है. इसी के चलते
बच्चे गलत हरकतों में साथ ही आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं इस तरह के ऑनलाइन मोबाइल ऐप बच्चों का ब्रेनवाश करते हैं.


बचाव व सुझाव-
सामाजिक गतिविधियों पर ध्यान देना जरूरी है, मोबाइल गेम की बजाए
बच्चों को मोबाइल से जितना हो सके, दूर रखें और दूर रखने की कोशिश करें
ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान नजर रखें बच्चा मोबाइल चला रहा है तो क्या चला रहा है, उस पर पूरा माता-पिता ध्यान रखें
बच्चे में चिड़चिड़ापन ओर अकेलापन बढ़ने लगे तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें
बच्चों को किताबें पढ़ने की सलाह दें शुरुआत में जो बच्चे पढ़ना चाहिए
इंटरनेट पर अच्छे आर्टिकल हैं, उन्हें पढ़ने के लिए कहें 
बच्चों के मोबाइल चलाने के दौरान माता-पिता में से किसी एक को उनके साथ रहना जरूरी है


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