Bharatpur Ganga Dussehra 2023: आज गंगा दशहरा पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया, क्योंकि आज के दिन ही गंगा मैया का उद्गम पृथ्वी पर हुआ था. आज के दिन गंगा स्नान करना और दान दक्षिणा करना बेहद शुभ माना जाता है. भरतपुर के प्रसिद्ध और ऐतिहासिक गंगा मंदिर में शर्धालुओं की भीड़ लगी है. मंदिर में महिलाएं खरबूजा, हाथ का पंखा और पानी की सुराही को दान कर रहे है. गंगा माता की प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक किया गया और श्रद्धालुओं में पंचामृत को वितरित किया गया. गंगा माता के मंदिर को आकर्षक रोशनी से सजाया गया और शाम को फूल बंगला झांकी सजाई गई.


पूरे उत्तर भारत में गंगा मैया का एकमात्र मंदिर भरतपुर में स्थित है. भरतपुर के शासक महाराजा बलवंत सिंह ने हरिद्वार जाकर गंगा मैया से मन्नत मांगी थी की मेरी संतान हो जाएगी तो भरतपुर में आपका भव्य मंदिर बनवाया जायेगा. जब महाराजा बलवंत सिंह के पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई तो महाराजा बलवंत सिंह ने 1845 में भरतपुर में गंगा मैया के मंदिर का निर्माण शुरू कराया था.


दशहरा पर उड़ती है पतंग
राजस्थान के भरतपुर में गंगा दशहरा पर पतंग भी खूब उड़ाई जाती है. सुबह से ही लोग अपनी छतों पर पतंग उड़ाने लगते हैं और पेच लड़ाकर एक दूसरे की पतंग को काटते है. बाजार में देश भक्ति की पतंगें काफी बिक रही है. हालांकि अब पतंग की जगह मोबाइल ने ले ली है जितनी पहले आसमान में पतंगे दिखती थी उतनी अब नजर नहीं आती है. पतंगों की जगह बच्चे मोबाइल में गेम खेलकर खुश नजर आते है. आज गंगा दशहरा का पर्व है और इसकी महत्ता राजस्थान के भरतपुर में ऐतिहासिक काल से रही है .


जहां यहां के राजाओं का गंगा मैया के प्रति अथाह श्रध्दा और भक्ति थी जिसके चलते भरतपुर के महाराजा बलबंत सिंह ने 1845 में यहां गंगा मैया के मंदिर की नींव रखी और उसके बाद पांच पीढ़ियों तक मंदिर बनाने का काम चलता रहा . जो अंतिम शासक महाराजा सवाई वृजेन्द्र सिंह के कार्यकाल में पूरा हुआ . उन्होंने मंदिर के पूर्ण बनने पर यहां 1937 में गंगा मैया की मूर्ति पदस्थापित की. यहां मंदिर में रोजाना सुबह और शाम को गंगा मैया की पूजा अर्चना आरती की जाती है गंगा मैया को गंगा जल से स्नान कराया जाता है फिर उसे गंगा जल को प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है . 


हरिद्वार से आता है टैंकर में गंगाजल 
गंगा माता के मंदिर में गंगा जल के लिए एक हौज बना हुआ है जिसमे 15 हजार लीटर गंगा जल भरता है. गंगाजल टैंकर द्वारा  गंगा नदी से यहां लाया जाता है और यह जल करीब एक वर्ष तक चलता है फिर जब हौज में एक फुट गंगा जल शेष रहता है तो फिर से गंगा नदी से गंगा जल मंगवाया जाता है. 


मुस्लिम कारीगर ने बनाई गंगा माता की प्रतिमा
गंगा माता के मंदिर में स्थापित माता गंगा की प्रतिमा को मुस्लिम कारीगर द्वारा बनाया गया था. सफ़ेद संगमरमर के पत्थर से बनी हुई माता की प्रतिमा और माता की सवारी मगरमच्छ सहित बड़े ही सुन्दर तरीके से तराशा गया है. गंगा माता की प्रतिमा स्थापित होने के बाद उसमे एक कमी नजर आई थी प्रतिमा के नाक - कान को नहीं छेदा गया था. जिससे माता के श्रृंगार के समय नाक और कान के आभूषण पहनाने में दिक्कत आ रही थी. फिर मुस्लिम कारीगर को बुलाया और कहा गया की तुम्हें सोने की मोहर देंगे तुम माता के नाक और कान के छेद करना है तो उस मुस्लिम कारीगर ने साफ मना कर दिया. कारीगर बोलै मैंने अब गंगा माता को अपनी मां मान लिया है अब में हथौड़ी और छेनी माता क प्रतिमा के ऊपर नहीं चलाऊंगा . 


गंगा मंदिर के निर्माण राजाओं ने लोहागढ़ किले के बिलकुल सामने कराया था जिससे सुबह के समय रोजाना जागने पर राजाओं व् रानी को सबसे पहले महल से ही गंगा मैया के दर्शन हो सके . यहाँ के राजाओं में गंगा मैया के प्रति विशेष श्रद्धा थी . कहा जाता है की गंगा दशहरा के दिन गंगा मैया का पृथ्वी पर पदार्पण हुआ था जिसके चलते आज के दिन हर वर्ष गंगा दशहरा मनाया जाता है.


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