Gangaur Puja Jodhpur: राजस्थान की संस्कृति पहनावा व खानपान पूरी दुनिया में अलग ही पहचान रखता है इसी तरह से यहां के लोग का भी तीज त्योहार का आयोजन को मनाने अंदाज भी खास सभी महिलाएं राजस्थानी दुल्हन के पहनावे सज-धज कर 16 दिनों तक पूजन करती है गणगौर पूजा प्रेम एवं पारिवारिक सौहार्द का एक बहुत ही पावन पर्व माना जाता है. गणगौर पूजा को भारत के विभिन्न राज्यों के लोगों द्वारा मनाया जाता है.


इस पर्व को लगभग 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है और इसे महिलाओं के सामूहिक दल के रूप में मनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि गणगौर की पूजा होली के दूसरे दिन से ही शुरू होती है और इसके उपरांत होली के समापन के लगभग 16 दिनों तक लगातार चलती हैं.


गणगौर पूजन की मान्यता
गणगौर पूजन के पीछे एक अलग ही मान्यता है. यह एक ऐसी मान्यता है कि इस दिन लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के समृद्ध रूप को गणगौर कहते हैं, उनका पूजन करती हैं. गणगौर का त्योहार कुंवारी लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके और इस त्यौहार को विवाहित लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उनके पति को लंबी उम्र की प्राप्ति हो सके और उन्हें सदैव उनके पति का प्रेम मिलता रहे.इस त्यौहार को राजस्थान में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.


गणगौर पूजा को लेकर के राजस्थान में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है “तीज तिवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर.” इस कहावत का यही अर्थ है कि सावन की तीज से त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही इस त्यौहार का समापन होता है.


गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ गौरी. राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म है. मान्यता अनुसार माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं. विदाई के दिन को ही गणगौर कहा जाता है. गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत में इसी घटना का वर्णन होता है.


मां गौरी की करती हैं पूजा
सुहागिनें व्रत धारण करने से पहले मिट्टी की गौरी जिसे रेणुका कहते हैं, की स्थापना करती है एवं उनका पूजन करती हैं. होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित बालिकाएं, नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं.


इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्रियों को सौभाग्य का वरदान दिया था. इसीलिए पौराणिक काल से ही इस व्रत पूजा का प्रचलन रहा है. इस दिन सुहागिनें देवी पार्वती और शिवजी की विशेष पूजा अर्चना करके पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना के साथ ही घर-परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं.


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