गुलाब चंद कटारिया (Gulab Chand Kataria) को असम का राज्यपाल (Governor of Assam) बना दिए जाने से राजस्थान बीजेपी (BJP) में मुख्यमंत्री पद का एक दावेदार कम हो गया है. राजस्थान में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में इस नियुक्ति की उम्मीद किसी को नहीं थी. वह भी उस समय जब विधानसभा का बजट सत्र चल रहा हो. कटारिया विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में थे. सदन में अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) के बजट पर अभी चर्चा भी नहीं शुरू हुई है. 


गुलाब चंद कटारिया और मुख्यमंत्री का पद


इस नियुक्ति के पीछे कटारिया की उम्र भी कारण हो. दूसरी बात यह है कि बीजेपी में मुख्यमंत्री पद की इच्छा रखने वाले नेताओं की संख्या बढ़ रही है. कटारिया भी उन्हीं में से एक थे, 78 साल की उम्र में भी वो विधानसभा में काफी एक्टिव रहते हैं. बीजेपी के इस कदम को राजस्थान में अपने नेताओं को नियंत्रित करने के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है. 


कटारिया ने 2012 में मेवाड़ इलाके में एक जन जागरण यात्रा की घोषणा की थी. यह यात्रा 28 दिन चलने वाली थी. उनके इस घोषणा के बाद वसुंधरा राजे ने अपने समर्थक विधायकों के साथ इस्तीफे की घोषणा कर दी. इसके बाद कटारियां को अपनी घोषणा वापस लेनी पड़ी.बाज में जब उनसे इसको लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उनकी मुख्यमंत्री बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है. पार्टी को किसी तरह के नुकसान से बचाने के लिए उन्होंने सेकेंडों में अपनी यात्रा वापस ले ली. उन्होंने कहा था कि वो आरएसएस से आते हैं. हमारी इच्छा कोई पद नहीं बल्कि देश के लिए काम करने की है.


विवादित बयानों के लिए चर्चित


आठ बार के विधायक कटारिया वर्तमान में राजस्थान में बड़े कद के नेता माने जाते हैं. आरएसएस से आए कटारिया की दक्षिण राजस्थान के मेवाड़ इलाके में गहरी पकड़ हैं.  ईमानदारी छवि वाले कटारिया की पहचान खरा-खरा बोलने वाले नेता के रूप में है. कई बार वो विवादित बयान भी दे देते हैं, इससे कई बार वो खुद और उनकी पार्टी मुश्किल में पड़ जाती है. उन्होंने 2016 में बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तुलना करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल कर दिया था.वो माफी मांगने में भी पीछे नहीं रहते हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उदयपुर के पास एक जनसभा में हेट स्पीच के लिए चुनाव आयोग ने उनपर पाबंदी लगाई थी. 


शोहराबुद्दीन शेख इनकाउंटर केस की चार्जशीट में सीबीआई ने 2013 में गुलाब चंद कटारिया को भी आरोपी बनाया था. बीजेपी ने इसे एक साजिश बताया था. इस मामले में 2015 में आए फैसले में उन्हें इन आरोपों से बरी कर दिया गया था. कटारिया 1997 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर उदयपुर से विधायक चुने गए थे. वो 1980 में बीजेपी के टिकट पर उसी सीट से विधायक चुने गए. लेकिन 1985 में उन्हें कांग्रेस की गिरिजा व्यास ने हरा दिया था. इसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में उदयपुर से सांसद चुने गए. इसके चार साल बाद ही वो इसी सीट से फिर विधायक चुने गए. उसके बाद से वो लगातार विधायक चुने जा रहे हैं.उन्होंने 1993 और 1998 का चुनाव उन्होंने बड़ी सादड़ी सीट से जीता. इसके बाद 2003 से वो उदयपुर सीट से ही जीतते आ रहे हैं. 


राजस्थान के कितने नेता बने हैं असम का राज्यपाल


राजस्थान से असम का राज्यपाल बनने वाले कटारिया तीसरे नेता हैं. उनसे पहले हरिदेव जोशी 1989 में और शिवचरन माथुर 2008 में इस पद पर रह चुके हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि कटारिया से पहले राज्यपाल बने ये दोनों नेता राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे थे. हरिदेव जोशी तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे तो माथुर दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. 


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