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Hanumangarh में चारे की भारी कमी से पशुओं को बेचने पर मजबूर किसान, फायदे की जगह हो रहा नुकसान, जानिए वजह

Rajasthan के Hanumangarh में चारे के कमी की वजह गेहूं की जगह सरसो की अधिक बुवाई है. दूसरी वजह बेतहाशा गर्मी से फसलों को हुआ नुकसान है. तीसरी वजह कारोबारियों द्वारा चारा दूसरे जिलों में भेजना है.

Rajasthan News: राजस्थान (Rajasthan) के हनुमानगढ़ (Hanumangarh) में पशुओं के चारे की कीमत इतनी अधिक हो गई है कि किसानों को अपने दुधारू पशुओं को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पहले किसान बिना दूध देने वाले या कम दूध देने वाले मवेशियों को आराम से पाल लेते थे लेकिन अब उन्हें महंगे चारे की वजह से खुले में छोड़ दिया गया है. हनुमानगढ़ में हमेशा से गेहूं की बंपर पैदावार होती थी और गेहूं को निकालकर बचे उसके पौधे (टुडी) को चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. पिछले साल सरसों की खेती में अधिक लाभ को देखते हुए किसानों ने इस बार गेहूं की जगह सरसों की फसल को तरजीह दी और इसकी वजह से टुडी के दाम आसमान छूने लगे.

क्यों हुई गेहूं कि बुवाई कम
गत साल 2,70,000 हेक्टेयर जमीन में गेहूं की बुवाई हुई थी लेकिन इस साल 1,90,000 हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हुई है. दूसरी तरफ सरसों की बुवाई गत साल 1,35,000 हेक्टेयर में हुई थी लेकिन इस साल 2,25,000 हेक्टेयर में सरसों की बुवाई की गई. लाम्बी धाव गांव के एक किसान रघुवीर सिंह ने बताया कि किसानों ने गेहूं की जगह सरसों की अधिक बुवाई की क्योंकि सरसों की खेती करना गेहूं की खेती से अधिक सस्ता है और इसके दाम भी अधिक मिलते हैं. गेहूं की खेती में उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई का बहुत खर्चा आता है जबकि सरसों की खेती पर खर्च बहुत कम है. गेहूं की सिंचाई के लिए इस साल नहरों में पर्याप्त पानी की भी कमी रही. सरसों खुले बाजार में 7,250 रुपये से 7,300 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बिका.

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चारे की किल्लत की दूसरी वजह 
चारे की किल्लत की दूसरी वजह मार्च में पूरे देश में बेतहाशा गर्मी है. राजस्थान में गर्मी का पारा और अधिक चढ़ रहा और लू के थपेड़ों से पूरा राज्य त्रस्त रहा. यहां तापमान 40 डिग्री के पार ही बना रहा. बेतहाशा गर्मी की वजह से फसलों को काफी नुकसान हुआ और दाने बहुत छोटे और हल्के रहे. लू की वजह से एक बीघे में औसतन 6 से 9 क्विं टल गेहूं की उपज हुई जबकि पहले औसतन प्रति बीघे 12 से 16 क्विंटल गेहूं की उपज होती थी. उपज कम होने के कारण टुडी की किल्लत भी पैदा हो गई. गेहूं पर सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रति क्विंटल 2,015 रुपये है लेकिन स्थानीय मंडियों में किसानों को प्रति क्विंटल 2,100 से 2,350 रुपये मिल जाते हैं. गेहूं के भाव बढ़ने की वजह से भी टुडी महंगी बिक रही है.

मवेशी पालक ने क्या बताया
सांगरिया के एक मवेशी पालक भोला सिंह ने बताया कि, गत साल उन्होंने 200 रुपये प्रति क्विंटल टुडी खरीदी थी. इस साल टुडी ही नहीं, बल्कि हारा चारा और पशु आहार भी बहुत महंगे हैं. उन्होंने कहा कि एक व्यस्क पशु के लिए हर दिन 10 किलोग्राम चारे की जरूरत होती है और इसमें 100 रुपये खर्च होते हैं. इसके अलावा पशुओं को हरा चारा और पशु आहार देना होता है और उसका खर्च अलग है. ऐसे में पशुपालन हानि का कारोबार हो रहा है. भोला सिंह ने कहा कि उनके पास 18 गायें और भैंसे हैं. इनमें से 11 दुधारू हैं. भैंसों से 35 लीटर दूध मिलता है और गायें 15 लीटर दूध देती हैं. इनसे हर दिन तीन हजार रुपये मिलते हैं और पशुओं के चारे, पशु आहार और भूसी खिलाने में हर दिन 3,600 रुपये खर्च होते हैं.

डेयरी मालिकों का क्या कहना है
पशुपालक और डेयरी मालिकों का कहना है कि महंगे चारे के कारण उन्होंने भैंस के दूध के दाम 60 रुपये से बढ़ाकर 65 रुपये प्रति लीटर और गाय के दूध के दाम 40 रुपये से बढ़ाकर 45 रुपये प्रति लीटर कर दिये हैं. उनका कहना है कि दूध के दाम बढ़ाने के बावजूद टुडी का जुगाड़ मुश्किल है. पंजाब से टुडी मंगाने में 800 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से पैसे देने होते हैं और उपर से मालढुलाई का खर्च. पंजाब में टुडी मंगाना बहुत महंगा पड़ता है.

किसानों का क्या कहना है
किसानों का कहना है कि उपज में 40 से 50 फीसदी की कमी आई है, जिससे जिले के 220 गौशालाओं को बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. कई किसान पहले गौशालाओं को चारा दान में देते थे लेकिन चारे की भारी कीमत के कारण उन्होंने दान देना बंद कर दिया है. श्री गौशाला सेवा समिति के अध्यक्ष इंद्र हिसारिया ने बताया कि उनके गौशाले को हर साल 2,300 पशुओं के लिए करीब 15,000 क्विंटल टुडी की जरूरत होती है लेकिन इस साल वे 6,000 क्विंटल टुडी ही जमा कर पाये हैं और उन्हें और टुडी जमा होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस साल गौशाले को इतने ही चारे से काम चलाना पड़ेगा. हरियाणा सरकार ने सिरसा और हिसार जिले से पशु चारे को ले जाना प्रतिबंधित कर दिया है. इंद्र हिसारिया ने कहा कि इसकी वजह से नोहार और भद्रा की गौशालाओं को बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है.

कमी की एक और वजह
हनुमानगढ़ में कुल 8,65,000 दुधारू पशु हैं, जिनके लिए प्रति वर्ष 13.13 लाख मीट्रिक टन पशु चारे की जरूरत होती है. हनुमानगढ़ में चारे की कमी की एक और वजह यह है कि यहां से बाडमेर, बिकानेर, डुंगरपुर, जैसलमेर, जालौर, पाली, सिरोही, नागौर और चुरु में चारे को भेजा जा रहा है. इन जगहों पर सूखे जैसी स्थिति है और इसी कारण चारे का संकट भी अधिक गहरा है. हनुमानगढ़ के कारोबारी भारी मात्रा में चारा इन जगहों पर भेज दे रहे हैं, जिससे चारे का भंडार जिले में कम हो गया है.

क्या कदम उठाए गए
कृषि विभाग के उपनिदेशक दानाराम गोदारा ने बताया कि किसान अपनी जरूरत भर का चारा रखकर शेष चारा सूखाग्रस्त जिलों में बेचने के लिए भेज दे रहे हैं. इससे जिले में चारे का संकट पैदा हो गया है. इस समस्या से निपटने की दिशा में, जिलाधिकारी नाथमल डिडैल ने हाल में एक कार्यशाला आयोजित की, जहां 129 किसानों ने डेयरी फार्म के लिए 168 बीघे जमीन में हरा चारा उगाने की प्रतिज्ञा ली. वन विभाग ने भी कोहला फार्म में 100 बीघे जमीन पर हारा चारा उगाने का फैसला लिया है. इसके अलावा चारे की भंडारण क्षमता की सीमित कर दी गई है, ताकि कोई कारोबारी इसकी जमाखोरी न कर पाये. कोई भी कारोबारी 100 मीट्रिक टन से अधिक चारा जमा नहीं कर सकता है. जिले के सभी 220 गौशालाओं के लिए 34 करोड़ रुपये जारी किये गये हैं.

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