Happy Dussehra 2023: कोटा में रावण को पैरों से रौंदा जाता है फिर उस मिट्टी पर होती है कुश्ती, क्या है दशहरा मनाने की अनोखी परंपरा
Happy Dussehra 2023: दशहरा के दिन मिट्टी का रावण बनाया जाता है. उसके बाद 9 दिन तक उस पर ज्वारे उगाए जाते हैं. दशहरे के दिन रावण को पैरों तले रौंदा जाता है.
Happy Dussehra 2023: कोटा का राष्ट्रीय दशहरा पूरे देश में अपनी ख्याती के लिए जाना जाता है और यहां लाखों लोग आते हैं और रावण दहन देखते हैं, वहीं दूसरी और कोटा में जेठी समाज की भी अपनी अनूठी परम्परा है, जिसको वह आज भी जीवंत रखे हुए हैं. कोटा में सवा सौ साल से भी अधिक समय से यह परम्परा चली आ रही है. जेठी समाज के विमल जेठी ने बताया कि कोटा में जेठी समाज के तीन मंदिर हैं, एक किशोरपुरा और दो नांता में है. नातां में एक बड़ा अखाड़ा और एक छोटा अखाड़ा है.
नवरात्रों पर बनता है, विजयदशमी पर रौंदा जाता है
अरूण जेठी ने बताया कि नवरात्रों के दिन मिट्टी का रावण बनाया जाता है और उसके बाद 9 दिन तक उस पर ज्वारे उगाए जाते हैं, उसके बाद माता के दरवाजे 9 दिन तक बंद हो जाते हैं. केवल पुजारी को पूजा-अर्चना करने की अनुमति होती है, जबकि एक छोटी सी खिड़की से श्रद्धालु दर्शन करते हैं. मिट्टी के रावण का ऊंचा सा टीला बनाया जाता है, मिट्टी से ही रावण का चेहरा उकेरा जाता है. अखाड़े की माटी से बने रावण को पैरों से कुचलकर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मनाते हैं. दशहरे के दिन सुबह रावण से कुश्ती लड़कर उसे पैरों तले रौंदा जाता है. ज्वारों को बुजुर्ग एक-दूसरे को वितरित करते हैं. लोग बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेते हैं.
ज्वारे बुजुर्गों को देकर लेते हैं आशीर्वाद
किशोरपुरा व नांता स्थित तीनों अखाड़े पर नवरात्र में विशेष आयोजन होते हैं. अखाड़ा परिसर में रोज पारंपरिक गरबा चलता है, लेकिन इससे पहले देवी की महिमा के 11 भजन विशेष रूप में गाए जाते हैं, इसके बाद देर रात तक गरबा और डांडिया खेला जाता है. दशहरे के दिन सुबह रावण के ऊपर से ज्वारे उखाडे जाते हैं, माता को चढाए जाते हैं और उसके बाद कुश्ती लड़कर उसे पैरों तले रौंदा जाता है. ज्वारों को बुजुर्ग एक-दूसरे को वितरित करते हैं. लोग बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेते हैं.
जेठी समाज का काम केवल कुश्ती लड़ना
जेठी समाज के इतिहास की बात करें तो विमल जेठी बताते हैं कि कोटा में उनके करीब 120 परिवार के 500 सदस्य है. जेठी गुजराती ब्राह्मण हैं, जो गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों से आए हैं. समाज की कुल देवी लिम्बा माता है. कोटा के पूर्व महाराजा उम्मेद सिंह ने इन समाज के लोगों को यहां बसाया था. उन्हें कुश्ती दंगल का शौक था. बाहर से जब भी पहलवान आते थे तो कोटा के पहलवान उन्हें हरा देते थे, मुगलों का राज था और उनके पहलवानों को भी जेठी पहलवानों ने हराया था. कोटा राज परिवार में जेठियों का काम केवल कुश्ती लडना था और वह दूसरा कोई काम नहीं करते थे.