Rajasthan News: देश में प्री मानसून-मानसून की बारिश से कहीं राहत है तो कई इलाके ऐसे हैं भी है जहां अभी भी लोगों को बारिश का इंतजार है. राजस्थान में मानसून प्रवेश में देरी हो रही है ऐसे में ग्रामीण इलाकों में मानसून का पता लगाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान भी किए जा रहे हैं. इन अनुष्ठानों को कर ग्रामीण पता लगा रहे हैं कि यह साल मानसून अच्छा रहेगा या नहीं. ऐसी ही एक परंपरा बूंदी जिले से जुड़ी हुई है, जहां हरिपुरा गांव में रथ यात्रा के दौरान इस वर्ष अकाल पड़ेगा या सुकाल  इसका पता लगाया जाता है. यह परंपरा पिछले 400 साल से चली आ रही है. मानसून का पता लगाने के लिए की जाने वाली इस अनूठी प्रक्रिया के दौरान यहां आसपास के गांव के हजारों लोग इकट्ठा हो जाते हैं और फिर भारी भीड़ की मौजूदगी में यह धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि जब-जब भी यहां हमें काल-सुकाल के संकेत मिले तो वह भविष्यवाणी सही हुई है. इस वर्ष भी अच्छा मानसून रहने वाला है, क्योंकि आज ग्रामीणों को इस अनुष्ठान के दौरान जिसे ग्रामीण तानी चढ़ाने की परंपरा भी कहते हैं, उसमें सुखल के संकेत मिले हैं, यानी राजस्थान में इस बार मानसून अच्छा रहने वाला है. 


50 फीट लंबी रस्सी, एक छोर पर सुकाल, दूसरा छोर पर काल 




बूंदी जिले के नमाना क्षेत्र के हरिपुरा गांव में रथयात्रा के दिन अकाल या सुकाल का पता लगाने के लिए लगभग 400 वर्षों से चली आ रही तनी चढ़ाने की परम्परा का गांव के लोग आज भी उतनी ही श्रद्धा से निर्वहन करते आ रहे हैं, जिसके तहत अकाल या सुकाल का पता लगाने के लिए भगवान चारभुजा नाथ मंदिर के सामने एकत्रित होने वाले गांव के लोग सूत से बनी 50 फीट लंबी रस्सी के दोनों सिरों को बांध कर उसे दो बच्चों के गले में डाल कर उन्हें आमने-सामने खड़ा कर देते हैं. ऐसे में भगवान चारभुजा नाथ मंदिर की तरफ  सुकाल की रस्सी और नदी की तरफ वाली अकाल की रस्सी के बीच एक भालेनुमा नुकीला सरिया खड़ी की जाती है. रस्सी का जो सिरा भालेनुमा सरिया से छू जाता है, वही इस अनुष्ठान का परिणाम होता है. इस बार सुकाल का सिरा सरिया को छू गया, यानी इस बार राजस्थान में मानसून अच्छा रहेगा.


400 साल पुरानी परंपरा पर आज भी अटूट विश्वास




भले ही आधुनिक दुनिया में विज्ञान तरक्की कर रहा हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी अपने-अपने तरीकों से मानसून का पता लगाने का काम किया जा रहा है. राजस्थान में कभी घास भैरू पूजन, टिटहरी के अंडे सहित कई प्रकार के जादू टोने कर इंद्रदेव को मनाने की कोशिश की जाती है. जिले के हरिपुरा में यह तनी चढ़ाने वाली परम्परा भी अनूठी है, यहां सुबह से ग्रामीणों का जुटाना शुरू हो जाता है. सुबह से ही ढोल-नगाड़ों, शंख बजने लगते हैं. करीब 8 बजे तनी चढ़ाने की शुरुआत हो जाती है. मंदिर के सामने तिलक लाकर दो बच्चों को 50 फीट दूर खड़ा कर उनकी गर्दन में अकाल-सुकाल की दोलड़ा तणी बांध दी गई और उनके बीचों-बीच पतली छड़ी खड़ी कर दी गई. तणियां इतनी ढीली थीं कि जमीन छू रही थीं. धीरे-धीरे दोनों तणियां हवा में तनती गईं. करीब 8.23 बजे सुकाल की तणी तीर के सिरे पर टिक गई. इसके साथ ही सुकाल की घोषणा कर दी गई, जिसके बाद मौजूद सैकड़ों किसान, ग्रामीण खुशी से झूम उठे. लोगों का कहना है कि फसल के हिसाब से प्रदेश में बारिश और जमाना अच्छा होगा. यह परंपरा अंधविश्वास नहीं, अटूट विश्वास से जुड़ी है.


2002 में आया था काल 


ग्रामीणों का कहना है कि इस अनुष्ठान के तहत सन 2002 में अकाल की तनी चढ़ने से प्रदेश में अकाल पड़ा था. उन्होंने कहा कि अब तक इस परम्परा की सारी भविष्यवाणियां एकदम सही साबित हुई हैं और इसलिए उन्हें इस परंपरा पर अटूट विश्वास है.


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