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Success Story: पति और पिता दोनों किसान, शादी के बाद भी दोस्तों से कर्ज लेकर जारी रखी पढ़ाई, अब हेमलता बनीं सब-इंस्पेक्टर
बाड़मेर जिले की हेमलता चौधरी राजस्थान पुलिस में उपनिरीक्षक बनकर सफलता हासिल की है. हेमलता बताती हैं कि रौबदार खाकी वर्दी पहनने का सपना 8 साल की उम्र में देखा था. जिसे 18 साल बाद पूरा कर लिया है.
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Rajasthan News: पश्चिमी राजस्थान को धोरों की धरती कहा जाता है. इसी रेतीले समंदर के बाड़मेर जिले की बेटी ने कामयाबी का ऐसा परचम लहराया कि जो बेटियों की पढ़ाई पर ताने मारते थे. वो भी अब हेमलता को मिली कामयाबी पर गर्व करने लगे हैं. हम बात कर रहे हैं. हेमलता चौधरी उर्फ हेमाकक्षी की. जो सरणू गांव चिमनजी की छोटी सी ढाणी की रहने वाली हैं. हेमलता को राजस्थान पुलिस में उप निरीक्षक बनने में सफलता हासिल की है. हेमलता को खाकी वर्दी में देख पूरा गांव खुश है. साथ ही हेमलता के भाइयों ने उसे अपने कंधे पर बिठाया और घर पर ले गए.
हेमलता चौधरी ने बताया कि जब वह 8 साल की थीं और पहली बार गांव में पुलिस वाले को वर्दी पहने हुए देखा, तभी पुलिस का रौबदार चेहरा हेमलता के जहन में बैठ गया. उसी समय हेमलता ने ठान लिया कि एक दिन वो भी ऐसी रौबदार वर्दी पहनेंगी. एक तरफ पुलिस की नौकरी करने की चाह, दूसरी ओर सामाजिक और परिवार की चुनौती. मात्र 17 वर्ष की उम्र में हेमलता चौधरी की घरवालों ने शादी करा दी और उन्हें ससुराल भेज दिया.
21 वर्ष की उम्र में हेमलता मां भी बन गईं. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बनकर बच्ची को पालने के साथ पढ़ाई जारी रखी. ग्रेजुएशन बाद के करीब 8 साल तक महज 3,500 रुपये की नौकरी की. दोस्तों और रिश्तेदारों से कर्ज लेकर पढ़ाई की. आखिरकार कामयाबी हासिल हुई और दोस्तों से लिया सब कर्ज उतार दिया है.
घरवाले-ससुराल वाले चारदीवारी में कैद करना चाहते थे
हेमलता अपने बचपन के सपना को पूरा करने की जिद पर डटी रहीं. वहीं रौबदार खाकी वर्दी पहनने का सपना 8 साल की उम्र में देखा था. वो सपना 18 वर्ष बाद पूरा करके ही दम लिया. 2 दिन पहले हेमलता चौधरी थानेदार की 2 स्टार खाकी रंग की वर्दी में अपने गांव पहुंची. तो हेमलता को देखकर सब लोग चौंक गए. परिवार के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. हेमलता ने अपनी पुलिस की कैप अपनी मां को पहनाई. ग्रामीणों ने हेमलता को साफा पहनाकर सम्मान दिया.
क्या कहा हेमलता चौधरी ने?
हेमलता चौधरी ने बताया कि एसआई की भर्ती परीक्षा आने के बाद मैंने आंगनवाड़ी की नौकरी के साथ-साथ दिन में चार-पांच घंटे सेल्फ स्टडी करना शुरू कर दी थी. मुझे कोचिंग से बचपन से ही नफरत थी. मैं कभी कोचिंग नहीं गई. स्टडी के लिए 2016 में पहला स्मार्टफोन खरीदा. यूट्यूब, फेसबुक, टेलीग्राम जैसी प्लेटफार्म पर करंट अफेयर्स जनरल नॉलेज को पढ़ती थी और वीडियो देखती थी और ऑनलाइन किताबें मंगवाती थी. हेमलता का कहना है कि कोचिंग करने में समय की बर्बादी होती है. अगर खुद पर विश्वास रखते हो तो सेल्फी स्टडी से अच्छा कुछ भी नहीं. हेमलता चौधरी अपने गांव की पहली महिला सब इंस्पेक्टर है. बचपन से ही पुलिस सेवा में जाने का सपना था. जो अब जाकर पूरा हुआ है. इस बीच कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. मगर कभी हिम्मत नहीं हारी.
क्या कहा पिता ने?
सब इंस्पेक्टर हेमलता चौधरी के पिता और पति दोनों ही किसान हैं. घर में माता-पिता एक बड़ी बहन और 3 भाई हैं. हेमलता चौधरी के पिता दुर्गाराम ने बताया कि शादी के बाद सहपाठी उसे टीचर बनने की सलाह देते थे. मगर वह राजस्थान पुलिस में ही जाना चाहती थी. वर्ष 2015 में पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा दी. जिसमें लिखित और शारीरिक दक्षता में सफल नहीं हो पाई. पहले प्रयास में असफल होने के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारी. इस बार सफलता हाथ लगी है. साल 2021 में हेमलता उप निरीक्षक बन गई थी. अब पासिंग आउट परेड के बाद पहली बार खाकी वर्दी में घर आई, तो हर किसी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
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