Herbal Gulal in Udaipur: मार्च में होली (Holi) त्योहार है जिसे लेकर अभी से तैयारियां शुरू हो गई है. लेकिन होली में गुलाल (Gulal) का रंग ना हो तो फीका लगता है. इसलिए कई कंपनियां गुलाल बनाती है. लेकिन आज हम ऐसी महिलाओं की बात करने जा रहे हैं जो जंगलों से सब्जी-फूल तोड़कर लाती है और फिर उससे देसी तरीके से गुलाल बनाती है. इस गुलाल में किसी प्रकार का कोई कैमिकल मिक्स नहीं होता है. यह पूरी तरह से हर्बल होती है. यह गुलाल बनाने में वन विभाग महिलाओं की मदद करता है. उदयपुर के देवला वन विभव रेंज में इसकी शुरुआत हो चुकी है.
मेहनताना के साथ प्रॉफिट में भी हिस्सा
जो भी महिलाएं हर्बल गुलाल बनाने में जुड़ी हुई है उनको मेहनताना के साथ प्रॉफिट में भी हिस्सा दिया जाता है. वन विभाग इन्हें प्रतिदिन 300 रुपए मेहनताना देता है. जब गुलाल बिक जाती है और इससे प्रॉफिट होता है तो विभाग की तरफ से इन्ही महिलाओं को जाता है. जैसे प्रॉफिट का कभी गांव में विकास कार्य, सभी को घर के लिए बर्तन, कभी राशन ऐसे दिया जाता है. यहीं नहीं उदयपुर में होली के पहले दुकान भी लगाई जाती है.
ऐसे बनती है गुलाल
वन विभाग के एसीएफ डीके तिवारी ने बताया कि जिस प्रकार गेहूं का मैदा होता है जो बिल्कुल पाउडर जैसा होता है, उसी प्रकार मक्की का भी एक ऐसा ही आटा आता है उसे काम में लेते है. सबसे पहले जंगल से पलास सहित अन्य अलग-अलग फूलों को तोड़कर लाते हैं. फूल कम पड़ जाए तो चुकंदर, मैथी, पालक भी उपयोग में लेते हैं. इनका उपयोग गुलाल में रंग लाने का कार्य करता है. सबसे पहले इन्हें देसी अंदाज में पिसते हैं फिर गरम पानी में उबलते हैं. फिर छानकर पानी निकाल लेते हैं. फिर मक्की में आटे में मिलाकर 8-10 दिन तक सुखाते हैं. फिर उसे मशीन में पिसते हैं जिससे गुलाल तैयार हो जाती है. विभाग की तरह से 200 रुपए प्रतिकिलो दी जाती है.
यहां होती है सप्लाई
रेंजर भूपेंद्र सिंह ने बताया कि गुलाल दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता सहित अन्य राज्यों में सप्लाई होती है. यहीं नहीं पिछले साल तो ऑस्ट्रेलिया एम्बेसी में भी भेजी थी और इस बार भी कई आर्डर आ रहे हैं.
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