Holashtak 2022: होलाष्टक में भूलकर भी न करें शुभ कार्य, रहें सतर्क-साावधान, जानें क्या है इसकी वजह?
होली आने से पहले होलाष्टक की शुरुआत कब से होगी और इस दौरान आपको किन बातों का ध्यान रखना होगा. इस संबंध में पंडित सुरेश श्रीमाली ने बहुत ही खास जानकारी दी है. यहां जानें पूरी डिटेल.
Holashtak 2022: होली आने से पहले होलाष्टक की शुरुआत कब से होगी और इस होली के दौरान आप किन-किन चीजों का ध्यान रखें. इसे लेकर पंडित सुरेश श्रीमाली ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में बताया कि गुरुवार, 10 मार्च को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जांएगे, यानी होली की शुरुआत मानी जाएगी.
होलाष्टक से होली तक शुभ कार्य वर्जित है. सभी सोलह संस्कारों सहित कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता, यानी मुडंन, विवाह, गृहप्रवेश सभी टाल दिए जाते हैं. लेकिन होलाष्टक के इन दिनों में आपको भी सर्तक, सावधान रहना चाहिए.
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क्योंकि इस समय आपकी डिसीजन पावर बहुत वीक हो जाती है, कॉन्फिडेन्स भी पूरा नहीं रहता, हो सकता है इस समय लिया गया कोई डिसीजन फ्यूचर में पछताने को मजबूर कर दे. ऐसा क्यों हो सकता है क्योंकि इस समय अंतरिक्ष में हमारे सभी ग्रह सूर्य-चन्द्र से लेकर राहू-केतु तक सभी उग्र अवस्था में होते हैं. ग्रहों के उग्र अवस्था में होने के कारण सभी की निर्णय क्षमता प्रभावित होती है. इसलिए सर्तक और सावधान रहना जरूरी है.
अष्टमी से सभी ग्रह उग्र
होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ होते हैं और इससे पहले दिन चन्द्रमा उग्र रहते हैं, नवमी को सूर्य और दशमी को शनि उग्र रहते हैं. एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू-केतु उग्र रहते हैं. इसलिए होलाष्टक से होलिका दहन तक शुभ कार्य वर्जित किए गए है. लेकिन इसी अवधि में सभी की निर्णय लेने की क्षमता यानी डिसीजन पावर भी प्रभावित होती है. कहा जाता है ग्रह अधीनम जगतम सर्ववमः यानी पूरा जगत ग्रहों के अधीन है. ग्रह हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं, उनकी दशा, अंतरदशा, मारक दशा आदि में हमें ग्रहों के शुभ और अशुभ प्रभाव मिलते हैं. और जब ग्रह उग्र हैं तो हमें सतर्क सावधान रहना ही चाहिए. ग्रह मानव तो क्या देवताओं तक की मती को प्रभावित कर देते हैं.
शिव ने किया कामदेव पर प्रहार
वो फाल्गुन कृष्ण अष्टमी का ही दिन था जब अपनी बुद्धि को काम में लेने के बजाय देवताओं के बहकावे में आकर कामदेव मतिभ्रम के शिकार होकर महादेव के कोप का भाजन बन गए. महादेव अपनी योग-मुद्रा में लीन थे और सारे देवता कामदेव को उकसा रहे थे कि वे शिव की तपस्या भंग करे ताकि उनका पार्वतीजी से विवाह हो सके. कामदेव और रति ने नृत्य-वादन आदि से बहुत प्रयास किए मगर शिव अपनी मुद्रा में लीन रहे. तब सभी देवताओं ने कामदेव को कहा कि वो अपना धनुष चलाए जिससे अनेक प्रकार के फूलों की सुंगध से ध्यान भंग करें. सभी देवताओं के कहने पर कामदेव ने धनुष चलाकर महादेव का ध्यान तो भंग कर दिया लेकिन ध्यान भंग से क्रोध में आए देवाधिदेव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया. यानी कोई भी डिसीजन सोच समझकर करें, लालच में या भरोसे में आकर नहीं. सावधान रहें, सर्तक रहें और प्रेम से मनाएं होली.
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