(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Holi 2023: मेवाड़-वागड़ की अनोखी होली की परंपरा, यहां पत्थर मार और अंगारों पर चलते हैं लोग
Happy Holi 2023: पत्थर मार होली को स्थानीय भाषा में राड़ कहा जाता है. इसे देखने के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती गांवों से लोग आते हैं. इसमें कई लोग लहूलुहान भी हो जाते हैं.
Holi 2023 India: रंगों का त्यौहार होली अगले माह के पहले सप्ताह में मनाया जाएगा. 6 मार्च को होलिका दहन और 7 मार्च को धुलंडी होगी. अब इस रंगों के त्यौहार अलग-अलग जगह अलग-अलग तरीके से मनाने की सदियों से परंपरा चली आ रही है. राजस्थान के मेवाड़-वागड़ यानी उदयपुर संभाग की बात करें, तो यहां लगभग हर क्षेत्र में होली के अलग तरीके है. वागड़ क्षेत्र बांसवाड़ा-डूंगरपुर में पत्थर मार और किला भेदना खेलते है, तो मेवाड़ के भगवान कृष्ण के मंदिरों में 45 दिन पहले ही उत्सव शुरू हो जाता है. बड़ी बात यह है कि अजमेर के पुष्कर के बाद विदेशी सैलानियों को मेवाड़ की होली रास आती है. सैकड़ों की संख्या में यहां विदेशी पर्यटक होली के लिए आते है.
मेवाड़ के मंदिरों में खेली जाती है होली
मेवाड़ यानी उदयपुर-राजसमन्द की बात करें, तो यहां के भगवान कृष्ण के मंदिर जैसे राजसमन्द में श्रीनाथ जी, द्वारकाधीश और उदयपुर में जगदीश मंदिर में बसंत पंचमी के बाद से अलग-अलग तरह से आयोजन शुरू हो जाते हैं. कभी छप्पन भोग होते हैं और कभी गुलाल उड़ाई जाती है. वहीं धुलंडी के दिन जगदीश मंदिर चौक में शहर के सभी लोग बड़ी संख्या में उपस्थित होते हैं. सभी मिलकर होली खेलते हैं.
एक दूसरे पर बरसते है पत्थर
डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में पत्थरमार होली खेलने की परंपरा है. स्थानीय बोली में इसे राड़ कहा जाता है. इस राड़ परंपरा को देखने के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती गांवों से लोग आते हैं. रोचक आयोजन के लिए शाम में गांव की दो टोलियां आमने-सामने हो जाती है और एक दूसरे पर पत्थरों की बौछार करती है. कार्यक्रम का आयोजन गांव के रघुनाथजी मंदिर के पास मैदान में होता है. हजारों दर्शकों की मौजूदगी में दोनों दलों के प्रतिभागी जोश और उत्साह में एक-दूसरे पर पत्थरों की बारिश करते हैं. रस्सी के बने गोफनों से लगभग दो घंटों तक पत्थर बरसते हैं. दोनों दलों के प्रतिभागी परंपरागत ढालों से बचने का प्रयास करते हैं और कई लहुलूहान भी हो जाते हैं. लहूलुहान होने के बाद भी परंपरागत आयोजन को पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है.
यहां जलते कंडो को फेंका जाता है
डूंगरपुर जिले में ही सांगवाड़ा उपखंड क्षेत्र में होली का एक विशेष आयोजन होता है. यहां धुलेंडी के बाद चार दिनों तक लगातार डूंगरपुर के सागवाड़ा, गलियाकोट क्षेत्र में और होली के दिन बांसवाड़ा के खोडन के गणेश मंदिर परिसर में कण्डों की राड़ का आयोजन होता है. इस आयोजन में लोग दो दलों में बंटकर एक दूसरे पर कण्डों की बारिश करते हैं. इस दौरान क्षेत्र में बजने वाले ढोल की अनुगूंज दोनों दलों के प्रतिभागियों का हौसला बढ़ाती रहती है. इसी प्रकार कोकपुर गांव में होलिका दहन के बाद अगले दिन दहकते अंगारों पर चलने की परंपरा है.
किला भेदने का भी होता है खेल
डूंगरपुर और बांसवाड़ा के ज्यादातर गांवों में किला भेदने का खेल खेला जाता है. इसमें 100 से 200 व्यक्तिय गोल घेरे में पास-पास खड़े होकर किला बनाते हैं. किले को दो या तीन लोगों के कुछ समूह शत्रु बनकर विभिन्न दिशाओं में अलग-अलग आक्रमण कर तोड़ने की कोशिश करते हैं. इस दौरान घेरे के बाहरी भाग में कुछ लोग धोती को लपेट कर बनाए गए विशेष चाबुकनुमा गोटे के वार से विरोधियों के वार से बचते हैं.
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