Happy Holi 2023 Udipur : रंगों के त्यौहार होली पर हम कई जगहों की परंपराओं से रूबरू होते हैं. क्योंकि यह त्यौहार हर कस्बे में अपना अलग रूप ले लेता है. हमने देखा है कि राजस्थान में दीपावली मेला, दशहरा मेला आयोजित होता है लेकिन कभी नहींं सुना होगा कि होली पर भी मेला लगता है लेकिन ये सच है. उदयपुर शहर के बीच होली पर एक विशेष मेला आयोजित होता है और वह है मटकी मेला, जिसे कुम्भ का मेला भी कहा जाता है. होली को गर्मियों की दस्तक भी कहा जाता है. ऐसे में इस मटकी मेले में हजारों की संख्या में मटकियां आती हैं और सैकड़ों की संख्या में लोग रोजाना यहां मटकियां खरीदने के लिए आते हैं.
मेवाड़ की स्थापना से पहले से लगता है ये मेला
मटकी मेले की शुरुआत कहांं से हुई और इसका इतिहास क्या है, इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं, लेकिन उसके पीछे बुजुर्गों की कई कहानियां हैं. यह जरूर है कि यह मेला मेवाड़ की स्थापना से पूर्व से लगता आ रहा है. कहा जाता है कि मेवाड़ की स्थापना 8वीं सदी में बप्पा रावल ने की थी, जिसकी पहली राजधानी नागदा थी जो मेवाड़ के प्रसिद्ध मंदिर एकलिंग जी के पास है. इससे पहले से ही यह मटकी मेला लगना बताया जाता है.
60 साल से व्यापार करने आ रहा हूं
उदयपुर के गोगुन्दा तहसील से मटकी मेले में दुकान लगाने के लिए आए बुजुर्ग शम्भू बताते हैं कि वह इस मेले ने करीब 60 साल से दुकान लगाने के लिए आ रहे हैं. इससे पहले उनके पिता और दादा आया करते थे, जिनके साथ वह भी आते थे. उनका कहना है कि इस मेले में गुजरात से भी कुछ व्यापारी आए हुए हैं. साथ ही राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्र से भी आते हैं. मेले ने कई प्रकार की मिट्टी के बर्तन लाते हैं. जैसे खासकर पानी भरने के लिए मटकी, सब्जी बनाने के लिए हांडी, रोटी बनाने के लिए तवा आदि हैं. मेले में खरीदने के लिए कई लोग आते हैं. मेला दो दिन का होता है लेकिन 4 दिन यहीं रहते हैं. सामान्य तौर पर कहीं दुकान लगाते है तो इतना व्यापार नहीं होता लेकिन यहां काफी जल्दी मटकिया बिक जाती हैं.
महंगाई से भाव बढ़ गए
उनका कहना है कि महंगाई से भाव भी बढ़ गए हैं. जैसे जो मटकी 40 रुपये तक में देते थे, उसकी दर अब 60 रुपये हो गई है. मिट्टी तो तालाब से ले आते हैं लेकिन उसको घर तक लाने और मटकी बनाकर लाने तक का भाड़ा महंगा हो गया है. इसलिए मटकियों के भी दाम बढ़ाने पड़े हैं. बता दें कि यह मेला शहर के ऐतिहासिक स्थल गंगू कुंड के पास लगता है जो करीब 300 मीटर तक रोड पर फैला रहता है. सड़क पर ही दुकान लगाई जाती है.
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