Udaipur Holi 2023: आज होलिका दहन और कल धुलंडी मनाई जाएगी. रंगों का त्यौहार होली ही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें हर कस्बे की परंपराएं बदलती जाती है. साथ ही विभिन्न प्रकार के आयोजन भी किए जाते हैं. आज एक ऐसे आयोजन से रूबरू करवाने जा रहे हैं जो चौंकाने वाला है. उदयपुर के वागड़ क्षेत्र में होली पर लड़के की लड़के से शादी होती है. जी हां, यहां लड़का दूल्हा और लड़का ही दुल्हन होती है. यहीं नहीं सात फेरे होते हैं, बिनौला भी निकाला जाता है. यह उदयपुर के वागड़ यानी बांसवाड़ा जिले के एक छोटे कस्बे में होता है. जानते हैं इसके पीछे का कारण.


दो अविवाहित युवकों को खोजने निकलता है दल


यह होता है बांसवाड़ा जिले के बड़ोदिया कस्बे में. गांव के ग्रामीण वर्षों बाद भी इस परंपरा को नहीं भूले हैं. गांव के मुखिया के नेतृत्व में युवाओं का एक समूह जिसे स्थानीय बोली वागड़ी में ‘गेरिया’ कहा जाता है ऐसे दो अविवाहित बालकों को खोजने निकलता है जिनका यज्ञोपवित संस्कार न हुआ हो. जन मान्यताओं के चलते ऐसा जरूरी है कि सम्मिलित बालक न तो विवाहित हो न ही यज्ञोपवितधारी हो.


जो पहले मिला वह दूल्हा और बाद में मिला वह दुल्हन बनता है


रात में ढोल की थाप के साथ नाचते गाते गेरियों का यह समूह शादी योग्य दो बालकों को ढूंढने के उद्देश्य से सारे गांव की सैर करता हैं. गेरियों की इस खोज में निकला जानकर गांव भर के बच्चे डर के मारे सहमे घर से बाहर नहीं निकलते हैं. भूले भटके रास्ते में घूमता जो भी बालक पहले मिलता है उसे गेरियों का यह दल पकड़ कर गांव के बीच स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर चौक पर पहले से स्थापित किए गए  विवाह मण्डप पर लाता है. खोज प्रक्रिया में पहले मिलने वाले बालक को वर और बाद में मिलने वाले बालक को वधू घोषित किया जाता  है. पंडित इन्हीं गेरियों में सम्मिलित एक व्यक्ति होता है. वह दोनों युवकों के साथ वर-वधु के साथ मण्डप में बैठाकर शादी की सम्पूर्ण रस्में अदा की जाती हैं. मण्डप में हवन वेदिका भी होती है और दूल्हा-दुल्हन के फेरे भी होते हैं. इस दौरान उपस्थित गैरिये ढोल-तासों की संगत के साथ शादी-ब्याह के गीत गाते है व मौज- मस्ती करते हैं.


रातभर रस्मे और सुबह बिनौला


शादी की यह रस्म अदायगी सारी रात चलती है और तड़क़े वर-वधू बने दोनों बालकों को बैलगाड़ी में बैठाकर गांव भर में बिनौला निकाला जाता है. बिनौले को देखने के लिये ग्रामीणजन भी उत्साहित दिखाई पड़ते है. बिनौले की रस्म के दौरान शादी में सम्मिलित होने वाले सभी लोग बारी-बारी से वर-वधू बने बालकों के घर पहुंचते हैं व शादी की खुशी की मिठाई रूप में शक्कर अथवा नारीयल का बना प्रसाद ग्रहण करते है.मजे की बात तो यह हैं कि इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में वर-वधु बने बालक भी इस क्रिया का प्रतिकार न करते हुए इस प्रहसन का आनन्द लेते हैं. सामजिक बंधनों में बंधे ग्रामीण जन भी समाज के नियमों के कारण इसका विरोध नहीं करते हैं. नियम है कि जो भी इस प्रकार की परम्परा का विरोध करता है उसके घर गांव के पंच ढूंढ की पापड़ी बनाने नहीं जायेंगे व उसके साथ गांव का पंचायती व्यवहार बंद कर दिया जाएगा.


इस कारण होती है लड़कों की आपस मे शादी


इस परंपरा के पीछे सामाजिक एकता बढ़ाने का प्रगाढ़ उद्देश्य छिपा हुआ है. परम्परा के आयोजित करने के उद्देश्य के बारे में बड़े-बुजुर्ग बताते है कि पहले इस गांव में खेडुवा जाति के लोग रहा करते थे . गांव के ठीक बीच में ही एक नाला बहता था जो गांव को दो भागों में बांटता था. उस समय प्रत्येक भाग से एक-एक बालक इस तरह की शादी में स्वेच्छा से दिया जाता था. माना जाता था कि दोनों भागों के लड़कों की आपस में शादी हो जाने पर दोनों भागों में पारिवारिक संबंध स्थापित हो जाता है और इसके चलते दोनों भागों के वाशिंदों में किसी प्रकार का बैर भाव नहीं रहता है. इसी मान्यता के चलते दोनों भागों के लोग होली पर्व पर सांस्कृतिक एकता प्रदर्शित करने के उद्देश्य से सदियों से इस परंपरा को निभा रहे हैं.


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