दूध की जली कांग्रेस इस बार मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव में छाछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती है. चुनाव में सबसे अहम टिकट वितरण की रणनीति में ही पार्टी ने बड़ा बदलाव करने का मन बनाया है. कांग्रेस इस बार जिताऊ के साथ-साथ टिकाऊ उम्मीदवार को टिकट वितरण में ज्यादा तरजीह देने की रणनीति पर काम कर रही है.


हाल ही में पार्टी ने मध्य प्रदेश-राजस्थान समेत 4 राज्यों में स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया है. कमेटी हर सीट पर नामों की एक सूची कांग्रेस इलेक्शन कमेटी को सौंपेगी. यहां विस्तृत चर्चा के बाद नाम फाइनल किया जाएगा. राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस पहली सूची सितंबर के अंत तक जारी कर सकती है.


मध्य प्रदेश और राजस्थान कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी में कर्नाटक की छाप दिख रही है. मध्य प्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी में सांसद सप्तगिरी उल्का को शामिल किया गया है, जिन्होंने कर्नाटक कांग्रेस के टिकट वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.


इसी तरह राजस्थान में कांग्रेस के सचिव अभिषेक दत्त को स्क्रीनिंग कमेटी में लिया गया है. दत्त कर्नाटक में टीम सुरजेवाला के सदस्य थे. 


टिकट वितरण की नई रणनीति क्या है?


1. जिताऊ के साथ टिकाऊ उम्मीदवारों की खोज- कांग्रेस इस बार जिताऊ के साथ-साथ टिकाऊ उम्मीदवार भी खोज रही है. शुक्रवार को राजस्थान में पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी की मीटिंग के बाद कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर रंधावा ने इसके संकेत भी दिए. 


रंधावा ने कहा कि फील्ड में काम के आधार पर उम्मीदवार जिताऊ होगा, उसे टिकट दिया जाएगा. हम जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार खोज रहे हैं. 


कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राजस्थान और मध्य प्रदेश में टिकट वितरण के लिए 2 स्तर पर सर्वे कराए जा रहे हैं. राजस्थान में अशोक गहलोत के लिए काम करने वाली एक एजेंसी सर्वे तैयार कर रही है.


वहीं हाईकमान से जुड़ी एक टीम भी सर्वे कर रही है. दोनों सर्वे के आधार पर पर्यवेक्षक और इलेक्शन कमेटी के सदस्य लिस्ट तैयार करेंगे. लिस्ट में जिताऊ-टिकाऊ के आधार पर नंबरिंग किया जाएगा. 


इसी तरह मध्य प्रदेश में कमलनाथ और कांग्रेस हाईकमान अलग-अलग सर्वे करा रही है. हाल ही में दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कमलनाथ का सर्वे ही फाइनल माना जाएगा. कमलनाथ हर सीट पर जिताऊ के साथ टिकाऊ उम्मीदवार खोज रहे हैं. 


2. सीट जीताने की गारंटी पर ही बड़े नेताओं की सिफारिशें चलेंगी- चुनाव के दौरान कांग्रेस के टिकट वितरण में बड़े नेताओं की सिफारिशों का दबदबा रहा है. बड़े नेता सीधे दिल्ली से अपने समर्थकों का टिकट फाइनल करा देते थे. मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव में यह ज्यादा देखा जाता रहा है. 


कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक सिफारिश पॉलिटिक्स इस बार भी चलेगी, लेकिन तरीका बदला गया है. इस बार बड़े नेता जिन सीटों को जीताने की गारंटी लेंगे और रिपोर्ट भी उस पर मुहर लगाएगी, वहीं पर उनके समर्थकों को टिकट दिया जाएगा. 


राज्यसभा सांसदों को भी कांग्रेस ने सीट जीताने की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा है. मध्य प्रदेश में लगातार 3 चुनाव में जिन सीटों पर कांग्रेस हार रही है, वहां दिग्विजय की सिफारिश को तवज्जों दी जाएगी. 


3. हॉट सीटों के लिए जॉइंट किलर की खोज- मध्य प्रदेश और राजस्थान में पिछले साल हॉट सीटों पर कांग्रेस ने बड़े चेहरे को मैदान में उतारा था. मसलन, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को टिकट दिया था. 


यादव चुनाव जीतने में सफल नहीं हुए थे. यादव को शिवराज के क्षेत्र में उतारने से कांग्रेस को निमाड़ में नुकसान अधिक हो गया. क्योंकि, पूरे चुनाव में यादव बुधनी विधानसभा में ही व्यस्त रहे. कांग्रेस इस बार मध्य प्रदेश और राजस्थान में हॉट सीटों पर चुनाव लड़ाने के लिए जॉइंट किलर खोज रही है. 


कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक हॉट सीटों पर लोकल नेता या समाजिक पृष्ठभूमि से आए लोगों को टिकट देने की तैयारी है, जिससे समीकरण उलट-पलट सके.


उदाहरण के लिए- मध्य प्रदेश के बुधनी में शिवराज की घेराबंदी के लिए हाल ही में कांग्रेस ने एक युवा स्थानीय पत्रकार को पार्टी में शामिल कराया है. इसी तरह सिंधिया की घेराबंदी के लिए कांग्रेस ने उनके करीबी बैजनाथ यादव को पार्टी में शामिल किया है. 


इसी तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे के झालरपाटन और राजेंद्र राठौड़ की सीट पर कांग्रेस मजबूत स्थानीय उम्मीदवार तलाश रही है.


4. जिन बाहरियों की वफादारी पर भरोसा, उन्हीं को टिकट- कांग्रेस बाहरी नेताओं को टिकट देने के लिए भी फॉर्मूला तैयार किया है. पार्टी उन्हीं दलबदलुओं को टिकट देगी, जो चुनाव जीतने के साथ-साथ वफादार हो. हाल ही में कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी ने मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में बीजेपी नेताओं को पार्टी में शामिल कराया है.


कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक जिन नेताओं को पार्टी में शामिल कराया जा रहा है, उनमें से अधिकांश को सरकार आने के बाद एडजेस्टमेंट का भरोसा दिया जा रहा है. 


पहली सूची में उन्हीं के नाम, जिनके पार्टी छोड़ने की उम्मीद ना के बराबर
कांग्रेस सितंबर अंत या अक्टूबर के पहले हफ्ते तक राजस्थान-मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है. कर्नाटक में भी कांग्रेस ने बीजेपी से पहले उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी थी. 


मध्य प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक पार्टी पहली सूची में उन्हीं उम्मीदवारों को जगह देगी, जिनके पार्टी छोड़ने की संभावनाएं शून्य है. यानी बड़े नेताओं की उम्मीदवारी की घोषणा सितंबर के अंत तक हो सकती है.


पहले सूची जारी करने के पीछे सियासी तौर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेना है. हालांकि, पार्टी टिकट की घोषणा में सावधानी भी बरत रही है. पार्टी को डर है कि टिकट घोषणा के बाद उम्मीदवार पाला न बदल ले.


इसलिए कांग्रेस ने बदली रणनीति, 4 वजहें...


1. लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश का चुनाव कांग्रेस के लिए काफी अहम है. यहां बीजेपी से पार्टी का सीधा मुकाबला है. अगर यहां चुनाव हारती है, तो पार्टी के प्रति गलत नैरेटिव सेट होगा, जिसका सीधा असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा. मध्य प्रदेश और राजस्थान में हार के बाद गठबंधन में भी कांग्रेस को कम तरजीह मिलेगी.


2. मध्य प्रदेश और राजस्थान को लेकर अब तक जितने भी सर्वे आए है, उसमें करीबी का मुकाबला दिखाया जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस यहां बिल्कुल रिस्क नहीं लेना चाहती है. 2019 में लगभग सीट बराबर होने की वजह से कांग्रेस की सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई. विधायकों के पाला बदल लेने की वजह से सरकार गिर गई. 


3. कांग्रेस इस बार हॉट सीट पर भी कड़ी टक्कर देने की तैयारी में है, जिससे बीजेपी के क्षेत्रीय क्षत्रप अपने क्षेत्र में ही सीमित हो जाए और पार्टी के लोकल वर्सेज नेशलन नेतृत्व की रणनीति कामयाब हो जाए.


4. कांग्रेस राजस्थान में कुछ मंत्रियों और विधायकों के भी टिकट काटने की तैयारी में है. कहा जा रहा है कि जिन सीटों पर टिकट काटे जाएंगे, उन सीटों पर नाम का ऐलान सबसे अंत में किया जाएगा, जिसके बगावत का स्कोप खत्म किया जा सके.