Jaipur News: मंगलवार शाम सामने आई एक तस्वीर ने राजस्थान में उठे राजनीतिक बवंडर के शांत होने के संकेत दिए. यह तूफान उठा था राजस्थान में सरकार चला रही कांग्रेस में. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को गद्दार बता दिया था. इस बयान ने राजस्थान कांग्रेस में तूफान ला दिया. उसके दोनों खेमों ने मोर्चा संभाल लिया था. यह देखकर विपक्षी बीजेपी ने सरकार गिरने तक की आशंका जता दी थी. इस बीच प्रभारी का काम देख रहे केसी वेणुगोपाल मंगलवार को जयपुर पहुंचे. वो दिन भर बैठकें करते रहे. शाम को वे अशोक गहलोत और सचिन पायलट को लेकर बाहर आए, उनका हाथ पकड़ कर उठाया और कहा, ''दिस इज दी राजस्थान कांग्रेस.''


केसी वेणुगोपाल का दावा


कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने 'गद्दार' वाले बयान के बाद दावा किया था कि वो 48 घंटे में इस विवाद का समाधान करा देंगे. इसी मिशन पर वो जयपुर पहुंचे थे. मौका था राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी बैठक का. वेणुगोपाल की जयपुर यात्रा से पहले ही राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट को कांग्रेस का एसेट बता दिया. उन्होंने यह भी दावा किया कि इस विवाद का उनकी यात्रा पर असर नहीं पड़ेगा. भारत जोड़ो यात्रा चार दिसंबर को राजस्थान में प्रवेश करेगी. मंगलवार को सचिन ने भी दावा किया कि भारत जोड़ो यात्रा का अबतक जितना स्वागत अन्य राज्यों में हुआ है, उससे कहीं अधिक स्वागत राजस्थान में होगा. 


यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट में 'समझौता' करवाया है. इससे पहले भी कम से कम तीन बार यह कोशिश हो चुकी है. लेकिन कुछ दिन बाद फिर दोनों नेता पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं. बयानबाजी और एक दूसरे को नीचा दिखाने का काम शुरू हो जाता है. दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 100 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री भी पद पर दावेदारी की थी. उनका दावा था कि चुनाव उनकी अध्यक्षता में लड़ा गया है, इसलिए मुख्यमंत्री उन्हें ही बनाया जाना चाहिए. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को सत्ता सौंप दी. पायलट को उपमुख्यमंत्री पद देकर चुप कराया.  


सचिन पायलट की बगावत


सचिन पायलट बहुत दिन तक चुप नहीं रहे. उन्होंने जुलाई 2020 में फिर बगावत कर दी. वो अपने खेमे के 18 विधायकों को लेकर हरियाणा के एक रिसार्ट में चले गए. 34 दिनों तक वो वहीं जमे रहे. कहा गया कि बीजेपी उनको हवा दे रही है. लेकिन 10 अगस्त 2020 को गहलोत और पायलट खेमे में सुलह की खबर आ गई. समस्या के समाधान के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई. कमेटी का क्या हुआ पता नहीं. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने पायलट से उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का पद छीन लिया. 


इस साल सिंतबर में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई. अशोक गहलोत इसमें प्रमुख दावेदार बनकर उभरे. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे और प्रभारी महासचिव अजय माकन पर्यवेक्षक बनकर जयपुर पहुंचे. उन्होंने कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई. गहलोत खेमे को लगा कि आलाकमान सचिन पाययट की ताजपोशी की तैयारी कर रहा है. गहलोत खेमे के विधायकों ने विद्रोह कर दिया. वो बैठक में ही नहीं गए. इसके बाद राजस्थान कांग्रेस का हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ. इसका अंत अशोक गहलोत के सोनिया गांधी के सामने खेद जताने से हुआ. 


राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा


राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 23 नवंबर से मध्य प्रदेश में शुरू हुई. उस दिन सचिन पायलट ने एक फोटो ट्वीट की. इसमें वो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ खड़े थे. पायलट दूसरी बार भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो रहे थे. उसी दिन शाम को अशोक गहलोत ने एक टीवी चैनल को इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने सचिन पायलट को गद्दा, नाकारा और निकम्मा तक बता दिया. 


गहलोत के इस बयान से पैदा हुए तूफान को ही शांत करने केसी वेणुगोपाल मंगलवार को जयपुर आए. उन्होंने बंद कमरे में गहलोत-पायलट को मिलवाया. इसके बाद वो उनको मीडिया के सामने लेकर आए और सब कुछ ठीक होने का दावा किया. इस फोटोशेशन के बाद भी राजस्थान में यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि गहलोत-पायलट का यह समझौता कितने दिन तक कायम रहेगा. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राज्य में रहने तक या उससे आगे भी. आलाकमान पहले की तरह गहलोत-पायलट विवाद का कोई स्थायी हल अभी भी नहीं निकाल पाया है. ऐसे में इस सुलह-समझौते पर लोगों को संदेह है. 


ये भी पढ़ें