Udaipur News: उदयपुर संभाग में आदिवासी लोक संस्कृति की भरमार है.यहां हर त्योहार अलग-अलग कस्बे में अलग-अलग परंपराएं चलती हैं.सबसे ज्यादा विशेष परंपराओं का निर्वहन होली त्यौहार और उसके बाद होता है.ऐसी ही एक अनौखी परंपरा उदयपुर जिले से 40 किलोमीटर दूर जावर माता के प्रसिद्ध मंदिर में होती है.इसमें सैकड़ों युवक सेमल के पेड़ पर बंधे नेजा को लूटने के लिए इकट्ठे होते हैं.इन युवकों को रोकने के लिए गैर खेलती हुई महिलाएं लट्ठ मारकर रोकती हैं.इसमें कई युवकों के चोटें भी लगती हैं.इसके बाद भी वो परंपरा का निर्वहन करते हैं.आइये जानते हैं क्या है परंपरा और क्या होता है इसमें.


कितनी पुरानी है नेजा लूटने की परंपरा


मंदिर के पुजारी गौतम लाल बताते हैं कि नेजा लूटने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.इसमें आसपास के छह गांवों के लोग भाग लेते हैं.किसी भी व्यक्ति ने कोई मन्नत मांगीं है तो वह मंदिर के सामने सेमल का पेड़ है, उसके 30 फिट ऊपर लाल कलर के कपड़े में चावल गेंहू,नारियल,इच्छानुसार राशि रख पेड़ पर बांधते हैं.


इसके बाद सुबह माताजी की आरती होती है और फिर महिलाएं जबरी खेलती हैं.इसके बाद शुरू होती है जबरी गैर जो महिलाएं खेलती हैं.इसमें तलवार,लट्ठ लेकर आदिवासी ढोल और कुंडी की थाप पर थिरकते हुए गैर नृत्य करते हैं.इस दौरान महिलाएं बड़े बांस के डंडों से गैर खेलती हैं.फिर शुरू होती है नेजा लूटने की परंपरा.नेजा लूटने सैकड़ों युवक पेड़ की तरफ भागते हैं.तब महिलाएं लूटने वालों पर बांस के डंडे बरसाती हैं. 


कौन बांधता है और कौन लूटता है नेता


सेमल के पेड़ पर बंधी पोटलियों को लूटने का क्रम शुरू होता है तो हजारों लोग लूटने पेड़ पर चढ़ते हैं.लेकिन जो चढ़ता उसका विरोधी उसकी टांग पकड़ कर नीचे गिरा देता है.जिसमे दमखम और ताकत होती है वह अंततः विजेता बन जाता है.इस दौरान इस लड़ाई में सेमल के कांटो से युवकों को चोटें भी लगती हैं.बड़ी बात यह है कि छह गांव इसमें शामिल होते हैं.परंपरा यह है कि तीन गांव के लोग इसमें पोटलिया बांधते हैं. बाकी के तीन गांवों के लोग इन पोटलियों को उतारते हैं.इस वक्त हजारों की संख्या में भक्त होते हैं.नेजा लूटने की प्रथा के बाद फिर माताजी की आरती होती है.


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