75th Independence Day: देश की 75वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. पूरा देश आन बान शान से तिरंगा लहरा रहा है. तिरंगा हाथ में लेकर चलना जितना आज आसान है, आजादी की लड़ाई के दौरान हमारे क्रांतिकारियों को बड़ा ही मुश्किल था. स्वतंत्रता आंदोलन में खादी का तिरंगा फहराना अपराध माना जाता था. क्रांतिकारियों को दर्दनाक सजा मिलती थी. जोधपुर के स्वतंत्रता सेनानी बाल मुकुंद बिस्सा की कहानी काफी प्रेरणादायक है. देश को आजादी दिलाने के लिए बाल मुकुंद बिस्सा 34 साल की उम्र में शहीद हो गए.
जोधपुर की जनता बिस्सा से बेहद प्रेम करती थी. अंतिम दर्शन से रोकने को जोधपुर शहर के भीतरी दरवाजों को बंद करने पर लोगों ने गेट जला दिए. बिस्सा को खादी से गहरा लगाव था. उन्होंने पत्नी राजकौर के रेशमी कपड़ों में आग तक लगा दी थी. पत्नी ने भी क्रांतिकारी पति के साथ ताउम्र खादी पहने की शपथ निभाई. बालमुकुंद बिस्सा का जन्म 24 दिसंबर 1908 में शेखावाटी इलाके के मंडुकणा गांव में हुआ. पिता सुखदेव बिस्सा का कलकत्ता में कपड़ों का व्यापार था. बिस्सा की प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता में हुई. स्कूल की पढ़ाई के दौरान कलकत्ता में क्रांतिकारियों के संपर्क में आए. 1928 में राजकौर से शादी के बाद जोधपुर में आकर बस गए.
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महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर बिस्सा ने खादी पहनने का प्रण लिया. सबसे पहले उन्होंने पत्नी राजकौर के रेशमी कपड़ों की होली जलाई. पत्नी ने भी पति के साथ ताउम्र खादी पहनने की शपथ निभाई. बिस्सा ने 1936 में राजस्थान चरखा एजेंसी लेकर खादी भंडार की स्थापना की और खादी का प्रचार करने लगे. 1940 में जयनारायण व्यास की अगुवाई में आंदोलन के बाद गाछा बाजार में जवाहर खादी भंडार के नाम से दुकान चलाया. बाल मुकुंद बिस्सा की खादी भंडार दुकान आंदोलनकारियों की गतिविधियों का केंद्र बन गई. उस समय खादी बेचना और पहनना अपराध माना जाता था. दुकान से बिस्सा अंग्रेजों की नजर में आए. पुलिस हर समय बिस्सा पर नजर रखने लगी.
'दस नंबरियों के कहने पर झंडा फहराया गया'
1939 में बिस्सा ने दुकान पर कांग्रेस का झंडा फहरा दिया था. तब पुलिस ने रिपोर्ट में जिक्र किया कि स्थानीय दस नंबरियों के कहने पर झंडा फहराया गया. इसके बाद झंडा बेचने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. विरोध में उनके साथी अभयमल जैन साइकिल पर झंडा लेकर घूमे. 1938 में सुभाषचंद्र बोस के जोधपुर आगमन से पहले ही तत्कालीन मारवाड़ सरकार ने तिरंगे झंडे को फहराना गैर कानूनी घोषित कर दिया था. हालांकि, आंदोलनकारी मारवाड़ सरकार के फैसले का विरोध करते रहे. बिस्सा ने 1939 में खद्दर की दुकान पर कांग्रेस का झंडा फहराया और अपनी दुकान पर झंडा बेचना शुरू कर दिया. पुलिस ने बिस्सा पर कांग्रेस के झंडे बेचना प्रतिबंधित कर दिया. 1942 में विदेशी शासन और देशी अत्याचारी सत्ता के खिलाफ मारवाड़ में आंदोलन शुरू हो चुका था.
34 साल की उम्र में आजादी के लिए दी शहादत
आंदोलन के चलते जयनारायण व्यास, राधाकृष्ण तात, मथुरादास माथुर जैसे स्वतंत्रता प्रेमी गिरफ्तार हुए. बालमुकुंद बिस्सा भी सत्याग्रहियों में से थे. उनको गिरफ्तार कर सेंट्रल जेल में बंदी बनाया गया. जेल में अंग्रेजी सैनिकों ने लाठियों से पीटना शुरू किया. पिटाई के विरोध में 41 सत्याग्रहियों ने भूख हड़ताल शुरू की. भूख हड़ताल में 34 साल के बाल मुकुंद बिस्सा भी शामिल थे. अंग्रेजी शासन ने भूख हड़ताल करने पर बिस्सा को टॉर्चर किया. भूख हड़ताल और टॉर्चर के कारण बिस्सा बीमार हो गए. बताया जाता है कि अंग्रेज सैनिकों ने समय पर बिस्सा का इलाज भी नहीं किया.
इलाज के अभाव में 19 जून 1942 को बिस्सा का निधन हो गया. शहर के बाहर निधन होने पर शव जोधपुर में अंदर नहीं ले जाने की परंपरा थी. जालोरी गेट के दरवाजे बंद करवा दिए गए. सोजती गेट की तरफ से जाने पर भी लोगों को दरवाजे बंद मिले. नाराज जनता ने सोजती गेट के दरवाजे जला डाले. पुलिस ने भीड़ पर लाठियों से हमला किया. पुलिस की पिटाई में सैकड़ों लोग घायल हुए. परकोटे के बाहर शव यात्रा निकाल कर चांदपोल स्वर्गाश्रम में अंतिम संस्कार किया गया. आज उसी जालोरी गेट चौराहे पर बाल मुकुंद बिस्सा की प्रतिमा स्थापित है.