Rajasthan News: स्वतंत्रता दिवस को लेकर देश भर में हर तरफ उत्साह का माहौल है. भारत की 77 सालों की आजादी सफर का बेहद रोमांचक रहा है. ऐसे में यूनिवर्सिटी के छात्र नेता इसे कैसे देख रहे हैं. उनकी नजरों में आजादी के क्या मायने हैं? किन विषयों पर अभी और काम करने की जरूरत है. छात्र नेताओं द्वारा उच्च शिक्षा, समानता का अधिकार, रोजगार और आर्थिक समानता को और मजबूती की बात कही गई है.
सबका विकास मजबूती से हो
राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष निर्मल चौधरी का कहना है कि गांव और देश के कोने-कोने में बैठे व्यक्ति का विकास ही असली आजादी महसूस कराता है. भारतीय सेवाओं में गांव और अन्य वर्गों की भागीदारी और मजबूती से होनी चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में और विकास की जरूरत है. सरकारों को देश के युवाओं के लिए रोजगार और बेहतर शिक्षा की मजबूत व्यवस्था करनी चाहिए. आजादी का सही मतलब निकलता है जब आर्थिक और सामाजिक मजबूती भी नागरिकों को मिले. जिसके लिए हमें काम करना है.
देश जिस तरह से ऊंचाइयों पर जा रहा है वैसे ही आने वाले दिनों में हम आगे बढ़ें. उच्च शिक्षा के लिए सरकारों को बहुत काम करना है. जिसमें हम सबका साथ मिलता रहेगा. कंधे से कंधा मिलाकर हम काम करना चाह रहे हैं. सबको आजादी का असली मतलब समझ आये.
100 वर्ष गांठ पर हो ये काम
एनएसयूआई के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश भाटी का कहना है कि उनके लिए आजादी का सफर बेहतर ही है. लेकिन आजादी के 77वीं वर्षगांठ में हमारी यही आशा है कि जब हम 100वीं वर्षगांठ मनाए तब भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी हो.
भारत की गिनती विकसित राष्ट्रों में होनी चाहिए. इसके लिए शिक्षा के बजट में बढ़ोतरी की जानी चाहिए और सरकारों का मुख्य फोकस देश के विकास में युवाओं की बेहतर भागीदारी कैसे सुनिश्चित हो इस पर होना चाहिए. शिक्षा और स्वास्थ्य में देश को और मजबूती मिले. युवाओं और महिलाओं को काम करने का अवसर दिया जाये.
पेपर लीक रोकने पर करना होगा काम
राजस्थान विवि में एबीपीवी इकाई अध्यक्ष रोहित मीणा का कहना है कि आजादी के बाद भारत ने बहुत तरक्की की है. हमने विज्ञान, तकनीक और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ी प्रगति की है. लेकिन अभी भी हमारे देश में कई समस्याएं हैं जैसे गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पेपर लीक इन्हें दूर करना है. इन समस्याओं को दूर करने के लिए हमें एकजुट होकर काम करना होगा और अपने देश को एक महान राष्ट्र बनाना होगा.
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