Independence Day: बूंदी के इस क्रांतिकारी ने अंग्रेजों के छुड़वाए थे पसीने, अंग्रेज हुक्मरान की गोली से हुए थे शहीद
India Independence Day 2022: बूंदी जिले के डाबी इलाके में वीर शहीद नानक भील को आज भी याद किया जाता है. उनकी पुण्य स्मृति में शहादत दिवस के रूप मे डाबी आदिवासी विकास मेले का आयोजन किया जाता है.
Rajasthan News: राजस्थान के बूंदी जिले के डाबी इलाके में वीर शहीद नानक भील (Shaheed Nanak Bhil) को आज भी याद किया जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान 13 जून 1922 को डाबी ग्राम के तालाब की पाल पर एक अंग्रेजी हुक्मरान की गोली से शहीद आदिवासी युवक नानक भील थे. वीर स्वतंत्रा सेनानी क्रांतिवीर नानक भील ने आदिवासियों में अलख जगाई और एक बड़ा कुनबा अंग्रेजो के खिलाफ खड़ा कर दिया. अंग्रेजों के क्रांतिवीर नानक मिलने पसीने छुड़ा दिए. उस वक्त वह राष्ट्रभक्त नौजवान, विशाल जन सभा के मंच पर अपने हाथों में तिरंगा लिए देश भक्ति के गीत गाते हुए राष्ट्र चेतना की अलख जगा रहे थे. तभी अंग्रेजों ने जनसभा में गोली कांड किया और नानक भील शहीद हो गए. उनके शहीद होने के बाद जन समूह जुटे हजारों लोग अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो गए और क्रांतिवीर नानक भील के शहीद होने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई और भी उग्र हो गई. बता दे कि राजस्थान के बूंदी जिले का वह आदिवासी बाहुल्य इलाका है जहां 13 ग्राम पंचायतों का भौगोलिक एरिया बरड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. इसी क्षेत्र से नानक भील निकले और राष्ट्रभक्ति की अलख जगाई.
क्रांतिवीर नानक भील का इतिहास
गुलामी की दासता से मुक्ति पाने के लिए जब देश में स्वतंत्रता की अलख जगाई जा रही थी. अंग्रेजी दासता और रियासती जुल्मों से त्रस्त किसान, मजदूर, जवान और महिलाएं स्वतंत्रता की मशाल हाथ में लिये जागृत हो रहे थे. सन् 1890 में बूंदी रियासत के बरड़ क्षेत्र के ग्राम धनेश्वर में भैरूलाल भील के घर पर क्रान्तिवीर नानक भील का जन्म हुआ. स्वभाव से ही साहसी, निर्भीक, जागरूक, जवान नानक भील ने स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेता विजय सिंह पथिक, माणिवय लाल वर्मा, नानूराम से प्रेरणा प्राप्त कर, अपनी अपूर्व निष्ठा और लगन के साथ गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में जाकर, स्वराज्य का संदेश देते हुए अपने झण्डा गीतों के माध्यम से क्षेत्र की जनता को जागृत किया. और इस क्षेत्र के हजारों आदिवासी परिवारों को एकजुट कर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए लड़ाई लड़ी.
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जनसभा में चली गोली से शहीद हुए भील
क्रांतिवीर नानक भील 13 जून 1922 को डाबी के तालाब की पाल पर गुलामी से मुक्ति और तत्कालीन दीवान मदन मोहन, नाजिम धन्नालाल के रियासती जुल्मों, भेंट, बेगार, चराई कर, शोषण व दमन की समाप्ति के उद्देश्य से आयोजित विशाल जनसभा में झण्डा गीत गाकर नानक भील जनता को जागृत कर रहे थे, तभी तत्कालीन हुक्मरानों ने गोलीकांड करवा दिया. गोलीकांड से जनसभा में हड़कंप मच गया, किसानों की भगदड़ मच गई. लेकिन क्रांतिवीर राष्ट्रीय गीतों को गाते रहें, अंग्रेजों शासक की पुलिस ने नानक भील पर गोलियां लाद दी. नानक भील के सीने पर तीन गोलियां लगी. झण्डा गीत गाते हुए क्रान्तिवीर नानक भील स्वतंत्रता की बलिवेदी पर कुर्बान होकर अमर हो गये. इतिहासकार पुरुषोत्तम पारीक बताते हैं कि क्रांतिवीर नानक भील से आने वाली पीढ़ियां देशभक्ति की प्रेरणा लेती रहेगी. गोली कांड के बाद क्रांतिवीर नानक को जनता ने बलिदानी पार्थिव शरीर को गांव-गांव में घुमाकर घर-घर से भेंट किये नारियलों से नानक भील का दाह संस्कार किया.
आज भी शहादत दिवस के रूप में याद करते हैं लोग
क्रान्तिवीर नानक भील शहीद होने के बाद उनकी पुण्य स्मृति में शहादत दिवस के रूप मे डाबी आदिवासी विकास मेले का आयोजन किया जाता है. यहां क्रांतिवीर नानक भील का प्रशासन ने स्मारक बनवाया, मूर्ति स्थापित की. जहां उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया जाता है और बड़ी संख्या में राजस्थान भर के आदिवासी नेता सहित जनप्रतिनिधि उन्हें याद करते हैं. क्षेत्र के लोग शहादत के रूप में उन्हें याद करते हुए. इस अवसर पर प्रशासन लोगों को जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले इस दिन एक विकास मेले का आयोजन भी करता है. जहां सभी विभागों के अधिकारी मौजूद रहते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं. प्रशासन का कहना है कि इस आदिवासी क्रांतिवीर ने अपने समाज व देश की रक्षा करने के लिए प्राणों की आहुति दी. उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए इस समाज के लिए एक विशेष मेले का आयोजन करते हैं ताकि उन्हें सभी मूलभूत सुविधा मिल सके, उत्थान हो सके.