राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुरुवार को सचिन पायलट को गद्दार बता दिया. उन्होंने सचिन पायलट पर कुछ और भी आरोप लगाए. वहीं पायलट ने गहलोत के इन आरोपों को झूठा और बेबुनियाद बताया है. गहलोत के इस बयान ने राजस्थान में पिछले कई सालों से चल रही कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई को और हवा दे दी है. गहलोत ने इस विवाद को हवा तब दी है जब चार दिसंबर को कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' राजस्थान आने वाली है. गहलोत के बयान के बाद कांग्रेस आलाकमान ने एक बयान जारी कर इसे शांत करने की कोशिश की. कांग्रेस आलाकमान का कहना है कि गहलोत-पायलट विवाद को इस तरह से शांत किया जाएगा कि उससे कांग्रेस और मजबूत हो.
भारत जोड़ो यात्रा में सचिन पायलट
राजस्थान में गहलोत और पायलट खेमे की सुगबुगाहट इस हफ्ते फिर शुरू हुई. अशोक गहलोत ने राहुल गांधी के साथ गुजरात में चुनाव प्रचार किया. इस दौरान कई कोशिशों के बाद भी राहुल से उनकी बात नहीं हो पाई. गुजरात चुनाव प्रचार के लिए 'भारत जोड़ो यात्रा' दो दिन के लिए रोक दी गई थी. राहुल ने 23 नवंबर को मध्य प्रदेश में यात्रा फिर शुरू की. गुरुवार सुबह प्रियंका गांधी के साथ सचिन पायलट भी इस यात्रा में शामिल हुए. इस दौरान राहुल गांधी ने जिस तरह उन्हें महत्व दिया, उससे गहलोत खेमे के कान खड़े हो गए. अशोक गहलोत ने एक निजी टीवी चैनल (एबीपी नहीं) को इंटरव्यू देकर पायलट को गद्दार तक बता दिया.
दरअसल राजनीति की हर लड़ाई कुर्सी के लिए होती है, चाहें वह कुर्सी छोटी हो या बड़ी. गहलोत और पायलट की भी नजर कुर्सी पर ही है. गहलोत जिस कुर्सी पर बैठे हुए हैं, उस पर से उतरना नहीं चाहते हैं. वहीं वह पायटल उन्हें कुर्सी से उतराकर खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं. इस लड़ाई में दोनों खेमे आलाकमान से भी टकराने से पीछे नहीं हटते हैं. चाहें वह पायलट की बगावत हो या गहलोत खेमे की.
बगावत दर बगावत
इस लड़ाई में आलाकमान भी कोई कड़ा फैसला ले नहीं पा रहा है. अभी इस साल कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश की. लेकिन अशोक गहलोत समर्थक विधायकों की बगावत से उसकी उम्मीदें परवान नहीं चढ़ पाईं. इसके बाद आलाकमान ने कार्रवाई के नाम पर गहलोत समर्थक तीन विधायकों को नोटिस तो जारी किया, लेकिन उनपर कार्रवाई क्या हुई यह किसी को पता नहीं चल पाया है. इस बीच राज्य के प्रभारी अजय माकन ने इस्तीफा दे दिया. बताया गया कि वह बागी विधायकों पर कार्रवाई न होने से नाराज थे.
दरअसल अशोक गहलोत को राजस्थान के क्षेत्रिय क्षत्रपों से इस तरह की चुनौती नहीं मिली थी, जैसी सचिन पायलट पेश कर रहे हैं. दो दशक पहले राजनीति में आए पायलट ने पांच दशक से राजनीति कर रहे गहलोत के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं. इसकी शुरूआत 2013 में हुई, जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अबतक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने 163 सीटें जीत लीं तो कांग्रेस के हिस्से में केवल 21 सीटें आईं. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पायलट का राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद राजस्थान कांग्रेस गहलोत और पायलट खेमे में बंट गई. लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी सीटें हार गई. यहां तक कि पायलट भी अपनी अजमेर सीट नहीं बचा पाए.
राजस्थान में सचिन पायलट का उदय
कांग्रेस आलाकमान ने 2017 में अशोक गहलोत को गुजरात का प्रभारी बना दिया. गहलोत के गुजरात जाने के बाद पायलट खेमा दमखम दिखाया. इसका परिणाम भी आया. साल 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में दो लोकसभा सीट अलवर और अजमेर और एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराए गए. राज्य और केंद्र में सरकार होने के बाद भी बीजेपी यह चुनाव हार गई. हालत यह थी कि जिन लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए उनमें आने वाली किसी भी विधानसभा सीट पर बीजेपी जीत नहीं पाई. यह सचिन पायलट के राजनीतिक कौशल का पहला प्रदर्शन था.
कांग्रेस ने पायलट की अगुवाई में 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने 200 में से 195 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. उसे 100 सीटों पर सफलता मिली. इसके बाद सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी पेश की. यह पहली बार था जब अशोक गहलोत और मुख्यमंत्री की कुर्सी के बीच कोई आ रहा था. यहां से शुरू हुई गहलोत और पायलट के बीच आमने-सामने की अदावत शुरू हुई. कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाकर किसी तरह से दबाया. लेकिन 2020 में पायलट ने खुलेआम बगावत कर हरियाणा के मानेसर के एक रिसार्ट में बैठकर मुख्यमंत्री की कुर्सी की मांग कर डाली. इस बार भी किसी तरह से कांग्रेस अलाकमान ने उनके मनाया. लेकिन उनके पर कतर दिए. वहीं इस साल सितंबर में जब लगा कि अशोक गहलोत कांग्रेस के अध्यक्ष बन जाएंगे. ऐसे में आलाकमान ने सचिन पायलट को सीएम की कुर्सी सौंपनी चाही. सत्ता हस्तांतरण के लिए दिल्ली से दो पर्यवेक्षक जयपुर भेजे गए. लेकिन गहलोत खेमे के विधायक बैठक में ही नहीं आए. इसके बाद के घटनाक्रम में अशोक गहलोत कांग्रेस का अध्यक्ष तो नहीं बने लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा ली.
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