Chambal Dacoit Madho Singh Story: चंबल का बीहड़ दुर्दांत डाकुओं की कहानियों से भरा पड़ा है. सेना में कंपाउंडर रहे माधव सिंह के डकैत बनने की कहानी भी बहुत अजीब है. जन्माष्टमी पर किसान परिवार में जन्मे लड़के का परिवार उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में रहता था. पिनाहट थाना क्षेत्र के गढ़िया बघरैना गांव में जन्माष्टमी पर जन्म लेने के कारण बच्चे का नाम माधव सिंह रखा गया. पुकारने में लड़के को माधो सिंह बोला जाता था.


माधो सिंह के परिवार की कुछ जमीन थी. परिवार का गांव में लोग इज्जत करते थे. माधो सिंह हर क्षेत्र में आगे था. पढ़ने में होशियार और खेलकूद में भी जलवा बरकरार था. माधो सिंह को बड़ा आदमी बनने की धुन थी. माधो सिंह पढ़ लिखकर फौज की नौकरी में लग गया.


डकैत बनने की शुरुआत मोहर सिंह से मुलाकात के बाद


माधो सिंह को राजपूताना राइफल्स में कंपाउंडर के पद पर नौकरी करते हुए लगभग 7- 8 साल हो गए थे. सेना से लंबी छुट्टी पर घर आकर माधो सिंह गांव में लोगों का इलाज करने लगा. आसपास के लोगों में माधो सिंह लोकप्रिय हो गया. गांव में दुश्मनी के चलते माधो सिंह पर चोरी का इल्जाम लगा. सफाई देने के बावजूद पुलिस ने माधो सिंह की नहीं सुनी. माधो सिंह को मारने की कोशिश भी की गई.


चोरी का मामला दर्ज होने के बाद माधो सिंह ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया. माधो सिंह गांव में रहकर दवाखाना चलाने लगा. डकैत बनने की शुरुआत मोहर सिंह से मुलाकात के बाद होती है. माधो सिंह को दुश्मनी का बदला लेने के लिए बंदूक उठानी पड़ी. मोहर सिंह संग चंबल के बीहड़ में पहुंच गया.


राजस्थान समेत तीन राज्यों में माधो सिंह का था आतंक


कुछ दिन बीहड़ में गुजारकर माधो सिंह ने गांव के दो दुश्मनों को मौत की नींद सुला दी. घटना के बाद माधो सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. सेना में माधो सिंह ने हथियारों की ट्रेनिंग भी ले रखी थी. उसकी उंगलियां एसएलआर और राइफल पर तेजी से चलती थीं. माधो सिंह के पांव उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में जम गए. बताया जाता है कि लगभग 500 अपहरण और 23 हत्याओं में माधव सिंह शामिल रहा.1960 से1972 तक चंबल के बीहड़ में माधो सिंह की तूती बोलती थी. पुलिस ने माधो सिंह पर लगभग डेढ़ लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया था. माधो सिंह के पास आधुनिक हथियार थे. जानकारी के अनुसार13 मार्च 1971 को माधो सिंह की गैंग से पुलिस की मुठभेड़ हुई.


मुठभेड़ में मुख्य और विश्वासपात्र 13 डकैत मारे गये थे. 1972 में डाकू माधो सिंह ने संपर्क का इस्तेमाल करते हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण से बात की. बातचीत में सरेंडर पर चर्चा हुई. अप्रैल 1972 में लगभग 500 डकैतों के साथ माधो सिंह ने सरेंडर कर दिया. डाकू माधो सिंह को जेल भेज दिया गया. माधो सिंह ने मुंगावली की खुली जेल में रहकर सजा पूरी की. सजा पूरी होने के बाद जेल से बाहर आ गया.


बाहर आकर लोगों को हाथ की सफाई से जादू का खेल दिखाने लगा. डाकुओं के शिकार बने परिवार को माधो सिंह ने मुआवजा दिलाने में मदद की थी. बताया जाता है कि लोगों की माधो सिंह के खिलाफ नफरत खत्म हो गई. 10 अगस्त 1991 को बीमारी के कारण माधो सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया. 


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