Chambal Ka Daku Mohar Singh: चम्बल के बीहड़ में उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश और राजस्थान के एक से बढ़ कर एक कुख्यात और खूंखार डाकू रहे. समय के अनुसार चम्बल के बीहड़ में डाकुओं द्वारा अपहरण कर फिरौती लेकर छोड़ने का मुख्य काम होता था, अगर कोई फिरौती नहीं देता था तो उसकी हत्या कर दी जाती थी. चम्बल के बीहड़ में एक नामी डकैत मोहर सिंह भी हुआ था.मोहर सिंह के गिरोह पर 12 लाख रुपये का इनाम घोषित था.


मोहर सिंह क्यों बना डाकू ?  


मध्यप्रदेश के भिंड जिले के मेहगांव नगर पंचायत के बिसूली गांव में 14 वर्षीय मोहर सिंह अपने पिता के साथ गांव की जमीन पर खेती बाड़ी में हाथ बंटाता था. मोहर सिंह को पहलवान बनने का शौक था. समय ने करवट ली और मोहर सिंह के परिवार के चचेरे भाइयों ने उसके खेत के हिस्से को हड़प लिया. मोहर सिंह ने इसकी पुलिस में शिकायत की लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी और उसे पुलिस ने फटकार लगाकर भगा दिया.


1955 में मोहर सिंह ने जमीनी विवाद के चलते एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी और  चम्बल के बीहड़ में निकल गया. बीहड़ में मोहर सिंह कई डाकुओं के साथ रहा, उसके बाद अन्य डकैतों के साथ मिलकर खुद का गिरोह तैयार किया .धीरे-धीरे गिरोह में चम्बल के अन्य डाकू जुड़ते गए और मोहर सिंह की गैंग में लगभग 150 बागी जुड़ गए.


डर से खुद को पैसे वाला दिखाना बंद कर दिया था लोगों ने


मोहर सिंह पर 80 से ज्यादा हत्याएं और और अपहरण के 350 से ज्यादा मामले दर्ज थे.1958 से लेकर 1972 तक मोहर सिंह ने चम्बल में एकछत्र राज किया.60 के दशक में चंबल के बीहड़ डाकू मोहर गिरोह की गोलियों की बौछार से गूंजा करते थे .मोहर सिंह को सबसे खूंखार माना जाता था. डाकू मोहर सिंह को अपहरण करने में माहिर माना जाता था.


कहा जाता है कि चम्बल के आसपास के लोगों ने अपने आप को पैसे वाला दिखाना बंद कर दिया था क्योंकि कोई भी अमीर नजर आता तो मोहर सिंह उसका अपहरण कर फिरौती वसूलता था. लोग पैसा होने के बाद भी गरीब बनकर रहते थे .बताते हैं कि एक बार मोहर सिंह ने दिल्ली से किसी मूर्ति तस्कर को ग्वालियर बुलाया और उसे चम्बल के बीहड़ में ले जाकर बंधक बना लिया उसके बाद उससे 26 लाख की फिरौती लेकर छोड़ा था.    


14 अप्रैल 1972 को मुरैना में किया था आत्मसमर्पण  


चम्बल से मन भर जाने के बाद मोहर सिंह को माधो सिंह ने आत्मसमर्पण की सलाह दी.मोहर सिंह अपने दोस्त माधो सिंह की बात मान गया और मोहर सिंह गुर्जर ने 14 अप्रैल 1972 को मुरैना के जौरा गांधी सेवा आश्रम में महात्मा गांधी की तस्वीर के आगे हथियार डाल आत्मसमर्पण कर दिया. मोहर सिंह ने एसएलआर, सेमी ऑटोमेटिक गन, 303 बोर की 4 राइफल, 4 एलएमज, स्टेनगन सहित बड़ी संख्या में हथियार सहित सरेंडर किया था.


मोहर सिंह समजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से बागी जीवन को छोड़कर समाज सेवा से जुड़ गया.मोहर सिंह ने कभी भी चंबल के बीहड़ की तरफ मुड़कर नहीं देखा. मोहर सिंह आत्मसमर्पण के बाद जेल भेज दिया लगभग 8 वर्ष जेल में गुजरने के बाद मोहर सिंह को 1980 में रिहा किया गया.


फिल्म में खुद ने निभाया किरदार 


1982 में एक फिल्म  बनी ही चम्बल का डाकू इस फिल्म में मोहर सिंह ने और माधो सिंह ने खुद ही डाकू का किरदार निभाया था. खुद ने ही डाकू की एक्टिंग की थी.उसके बाद मोहर सिंह राजनीति में भी हाथ आजमाया था. मोहर सिंह 1995 से 2000 तक मेहगांव नगर पंचायत के अध्यक्ष पद पर रहा था. मोहर सिंह को लोग दद्दा कहकर पुकारते थे .बीमारी के चलते दस्यु मोहर सिंह गुर्जर का 5 मई 2020 की सुबह निधन हो गया.


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