International Tiger Day: आज पूरी दुनिया में टाइगर डे मनाया जा रहा है. लेकिन राजस्थान के हाड़ौती का पहला राष्ट्रीय मुकुंदरा टाइगर रिजर्व की बात करें तो ये अपनी बदहाली का रोना रो रहा है. इस टाइगर रिजर्व में अधिकारियों की अनदेखी और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते अनुकूल वातावरण के बावजूद बाघों का बसेरा नहीं हो पा रहा है, जो आकर बसे थे वे भी समय से पहले मौत के शिकार हो गए. इसके बाद प्रयासों की कमी के चलते यहां सिर्फ हरियाली है.


राष्ट्रीय मुकुंदरा टाइगर रिजर्व को संवारने के लिए ना वन विभाग के अधिकारियों का ध्यान है ओर ना ही यहां के जनप्रतिनिधियों का. कोटा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नगरीय विकास व स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के द्वारा रिवर फ्रंट विकसित कर रहे हैं. वहीं सांसद व लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला कोटा जल और जंगल सफारी शुरू करने की बात कह रहे हैं लेकिन जो पर्यटन एक टाइगर कोटा में विकसित कर सकता है, उसके बारे में कोई बात नहीं हो रही. मुकुंदरा में टाइगर को बसाया जाए तो रिवर फ्रंट में भी पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी.


साल 2013 में हुआ था टाइगर रिजर्व घोषित
मुकुंदरा को साल 2013 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था. उसके बाद लगातार यहां पर टाइगर लाने के लिए तैयारियां की गईं. 4 अपैल 2018 को पहला टाइगर शिफ्ट करने के बाद एक के बाद एक करके 3 टाइगर यहां शिफ्ट किए गए, जिनमें दो टाइग्रेस थी, जबकि एक टाइगर सीधे मुकुंदरा में पहुंच गया. यहां खुशियां भी आई और टाइगर के बच्चों से मुकुंदरा आबाद हुआ, लेकिन फिर एक दम से  मुकुंदरा के ग्रहण लग गया और एक-एक कर सभी बच्चे मर गए. वहीं अचानक से एक के बाद एक टाइगर की भी मौत होती गई. 


नहीं बनाई जा रही जोड़ी
अब यहां सिर्फ एक टाइग्रेस जिंदा है. उसको वन विभाग द्वारा डेढ़ साल से भी अधिक समय तक एनक्लोजर में बंद रखा गया. अधिकारियों द्वारा यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता था कि अभी एनटीसीए की स्वीकृति नहीं है. फिर एनटीसीए की स्वीकृति आई तो बाघिन को जंगल से ट्रेंकुलाइज कर सेल्जर घाटी में लाकर खुला छोड़ दिया गया. यहां खुला छोड़े दो माह से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन उसकी जोड़ी अब भी नहीं बनाई जा रही है. अब फिर से मुकुंदरा के अधिकारी एनटीसीए की स्वीकृति का इंतजार कर रहे है.


बाघिन एमटी-4 को दरा क्षेत्र ही रास आय
दरा के जंगल में रह रही बाघिन एमटी-4 को एनक्लोजर से तीन माह पहले सेल्जर की घाटी में आजाद किया गया था. लेकिन मुकुंदरा की इस एकमात्र रानी को दरा क्षेत्र का जंगल ही रास आ रहा है. इसकी लोकेशन लक्ष्मीपुरा ओर रावठा के जंगलो की आ रही है. ये बाघिन दरा के एनक्लोजर में शिफ्ट करने से पहले भी इसी क्षेत्र में 1 साल से अधिक समय तक आजाद घूमी थी.


रामगढ़ में बिना स्वीकृति आई बाघिन
जानकार बताते हैं कि इसी साल हाड़ौती के दूसरे टाइगर रिजर्व के रूप में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया. इस अभयारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित करते ही यहां पर विभाग द्वारा एनक्लोजर बना दिया गया. राज्य सरकार द्वारा रामगढ़ के लिए एक डीएफओ सहित अन्य अधिकारियों की पोस्ट स्वीकृत कर दी गई. हाल ही यहां पर एक बाघिन को शिफ्ट कर दिया गया है. इसकी स्वीकृति भी एनटीसीए से नहीं ली गई है, जबकि यहां एक टाइगर रणथम्भौर से आकर घूम रहा है. इसकी जोड़ी बनाने के लिए इस टाइग्रेस को शिफ्ट किया गया था. जल्द ही एक बाघिन को और शिफ्ट करने की योजना बनाई जा रही है.
 
एनटीसीए की स्वीकृति का क्यों?
वन्यजीव प्रेमी डॉ.सुधीर गुप्ता ने बताया कि मुकुंदरा में जब बाघ स्थापित किए गए थे तो बिना एनटीसीए की स्वीकृति के ही शिफ्ट किया गया था. इसी तरह रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में भी बिना एनटीसीए की स्वीकृति ही बाघिन को शिफ्ट किया गया है, तो फिर मुकुंदरा में बाघिन एमटी-4 की जोड़ी बनाने के लिए एनटीसीए की स्वीकृति का क्यों इंतजार किया जा रहा है. कहीं ना कहीं मुकुंदरा की बदहाली के पीछे स्थानीय वन अधिकारियों की लापरवाही व अनदेखी भी जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि मुकुंदरा में टाइगर शिफ्ट करने के बारे में नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल से उनके कोटा आगमन के समय वन्यजीव प्रेमियों की ओर से चर्चा की जाएगी.


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