Rajasthan News: राजस्थान में कांग्रेस के 91 विधायकों के 25 सितंबर को सामूहिक इस्तीफे से संबंधित मामले को राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य जस्टिस की अदालत में 2 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. 1 दिसंबर को, विपक्ष के उप नेता (बीजेपी), राजेंद्र सिंह राठौर (Deputy Leader of Opposition BJP Rajendra Singh Rathore) ने राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी, जिसमें इस्तीफे पर निर्णय लेने में विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी (Assembly Speaker CP Joshi) की 'आलसी' की रणनीति से संबंधित मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई थी.
सार्वजनिक किए जाएं नाम-राठौर
महत्वपूर्ण सुनवाई से पहले, राठौर ने शुक्रवार को मांग की कि सभी 91 विधायक, जिन्होंने स्पीकर जोशी को अपना इस्तीफा सौंप दिया था, कम से कम अपने तीन महीने के वेतन और अन्य प्रोत्साहन राशि को राजकोष में जमा करें, जो उन्हें अपना इस्तीफा सौंपने के बाद भी मिला था. राठौर ने यह भी मांग की कि इन 91 विधायकों के नाम सार्वजनिक किए जाएं ताकि लोगों को पता चले कि उनके द्वारा चुने गए नेता अपने स्वार्थ के लिए किस हद तक उनके भरोसे और जनभावनाओं से खिलवाड़ कर सकते हैं.
और क्या कहा राठौर ने
मामले को 2 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने के बाद राठौड़ ने कहा- 25 सितंबर को, 91 विधायकों ने अपने हस्ताक्षर के साथ अध्यक्ष को अपना त्याग पत्र सौंप दिया था. यह संभव नहीं है कि 91 विधायकों से इस्तीफे जबरन लिए गए हों, और न ही यह संभव है कि सभी हस्ताक्षर जाली हों. विधानसभा के नियमों के अनुसार, इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार करने की आवश्यकता थी. तथ्य यह है कि इस्तीफे पत्रों की एक-पंक्ति के निर्धारित प्रारूप का परीक्षण करने में 90 दिनों से अधिक का समय लगा है, इसका मतलब है कि इस इस्तीफे के खेल के प्रायोजकों को अदालत का सामना करना होगा, जिसने मामले को 2 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.
लौटाना चाहिए 90 दिनों का वेतन
यहां यह बताना जरूरी है कि 91 विधायकों ने 25 सितंबर को मुख्यमंत्री आवास पर बुलाई गई आधिकारिक कांग्रेस विधायक दल की बैठक के समानांतर बैठक बुलाकर इस्तीफा दे दिया था. राठौर ने कहा, 'इन सभी 91 विधायकों को कम से कम 90 दिनों का वेतन और अन्य प्रोत्साहन राशि राजकोष में लौटानी चाहिए. राजस्थान में पिछले 90 दिनों से ऐसी सरकार बनी हुई है जिसे स्पष्ट रूप से सदन का विश्वास नहीं है. प्रस्तुत किए गए त्यागपत्रों को तुरंत प्रभाव से वापस लेने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है और न ही त्यागपत्र वापस लेने के संबंध में कोई प्रक्रिया निर्धारित की गई है.
राठौर ने कहा, अध्यक्ष विधायक के रूप में अपने पद पर बने रहने के लिए इस्तीफा देने वाले विधायकों को कानूनी रूप से मजबूर नहीं कर सकते थे. इस्तीफा देने वाले विधायकों को अध्यक्ष की स्वीकृति के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए. इस्तीफा देने के बाद भी 90 दिनों से अधिक समय से ये विधायक सभी सरकारी सुविधाओं का भरपूर लाभ उठा रहे हैं. मैं इस फर्जी इस्तीफे कांड की निंदा करता हूं.
इस तरह के संवेदनशील मामले में प्रदर्शित असंवैधानिक आचरण से व्यथित होकर, मुझे हाईकोर्ट की शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. मैं अदालत से आग्रह करूंगा कि संवैधानिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं के साथ इस व्यवस्थित विश्वासघात में भूमिका निभाने वाले सभी लोगों की पहचान की जाए और उन पर कार्रवाई की जाए.