Rajasthan News: भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई थी. भारतीय सेना के जवानों की किस्से कहानियां तो बहुत सुनी होगी लेकिन आज हम आपको एक ऐसे 80 वर्षीय रिटायर्ड जवान से मिलवा रहे हैं जो कि युवाओं के लिए मिसाल बन रहे हैं. कहते हैं कि फौजी कभी बुड्ढा नहीं होता सेना के जवान का जज्बा व हौसला उम्र के पड़ाव के साथ बढ़ता रहता है. ऐसा ही नजारा राजस्थान के सरहदी जिले जैसलमेर के बेरसियाला गांव में 80 साल की उम्र में देखने को मिलता है. जिस उम्र में लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं और लाचार हो जाते हैं वहीं बीएसएफ से रिटायर 80 वर्षीय जवान चंदन सिंह युवाओं के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं. 


पाकिस्तानी सेना के किए थे दांत खट्‌टे
1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के दांत खट्‌टे करने वाले भूतपूर्व जवान आज अपने कांपते हाथों से भी जब बंदूक थामते हैं और निशाना साधते हैं तो वह अचूक साबित होता है. हाल ही में चंदन सिंह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल  हुआ है. इसमें वो एक नहीं लगातार तीन बार बंदूक से निशाना लगाते नजर आते हैं और तीनों निशाने सटीक लगते हैं. चंदन सिंह भले ही रिटायर्ड हो गए है लेकिन उनके अंदर का फौजी आज भी जिंदा है. उनकी इस निशानेबाजी के वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.






अचूक निशानेबाजी का हर कोई कायल  
चंदन सिंह सोढ़ा 80 वर्षीय जैसलमेर के बैरसियाला गांव के रहने वाले 1966 में बीएसएफ में भर्ती हुए थे और 28 साल की देश सेवा के बाद वर्ष 1993 में रिटायरमेंट लिया था. सेना के जवान का गोली-बम-बंदूकों से चोली दामन का साथ रहता है. बीएसएफ की 28 की सर्विस की और उस दौरान उनको हथियार चलाने की दी जाने वाली ट्रेनिंग आज भी चंदन सिंह के दिलो दिमाग में जीवित है. इसका नजारा रिटायरमेंट के 29 साल बाद भी देखने को मिलता है. चंदन सिंह उम्र के इस पड़ाव में भी अपने कांपते हाथों से एयरगन से अचूक निशाना लगाते हैं. इनकी अचूक निशानेबाजी देखकर युवा हैरान हो रहे हैं.


परिवार के साथ बेरसियाला में रहते हैं चंदनसिंह
बीएसएफ से रिटायरमेंट के बाद से चंदन सिंह ने अपने गांव बेरसियाला जैसलमेर में रह रहे हैं. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपना घर बनवाया. अब यहीं पर परिवार के साथ रह रहे हैं. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने कुछ समय तक प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड के रूप में नौकरी भी की. चंदन सिंह बताते हैं कि 'मेरी बीएसएफ में ज्वाइनिंग 13 बीएन बीएसएफ में 1966 में जैसलमेर में हुई थी. इसके बाद हमारी बटालियन जैसलमेर से जोधपुर चली गई. वहीं सन 1971 की जंग में हमारी बटालियन जोधपुर से केलनोर की ओर कुच कर गई. जहां हमारी बटालियन पाकिस्तान के छाछरा तक पहुंची. वहां से फिर हमारी बटालियन बाड़मेर आई, जहां 4 साल तक सर्विस रही.






यहां-यहां रही पोस्टिंग
इसके बाद हमारी बटालियन गुजरात के बनासकांठा जिले के दांतीवाड़ा में 4 साल रही. उसके बाद हमारी बटालियन जम्मू चली गई, जहां 2 साल रहे. फिर वहां से श्रीनगर के कुपवाड़ा में 2 साल सेवाएं दी. वहां से जम्मू के अखनूर में, जहां से 4 महीने बाद मेरी पोस्टिंग 92 बीएन बीएसएफ में हो गई. उस वक्त अगरतला में थी. चंदन सिंह बताते हैं कि 'एक साल तक 92 बीएन बीएसएफ में सेवा देने के बाद 93 बीएन बीएसएफ में ट्रांसफर हो गया. जहां करीब डेढ़ साल सर्विस रही. उसके बाद मेरा ट्रांसफर 47 बीएन बीएसएफ में हुआ जो उस वक्त बीकानेर में तैनात थी.


जहां से एडवांस पार्टी के साथ जैसलमेर आ गया.' उन्होंने बताया कि '47 बीएन बीएसएफ में करीब दो साल मेरी सर्विस रही, जिसके बाद मेरा ट्रांसफर 63 बीएन बीएसएफ में हुआ, जो उस वक्त गुजरात के बनासकांठा जिले के दांतीवाड़ा में थी. वहां से हमारी बटालियन बाड़मेर आ गई. जहां करीब 4 साल मेरी सर्विस रही. यहां से फिर हमारी 63 बीएन बीएसएफ बटालियन श्रीनगर चली गई. जहां से करीब एक माह बाद मैंने रिटायरमेंट ले लिया.'


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