Saraswati River Jaisalmer: पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी धोरों की धरती पर बसे जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ में बोरवेल की खुदाई के दौरान अचानक पानी बाहर निकल आया. पानी का प्रेशर इतना ज्यादा था कि लोग उसे देखकर अचंभित हैं. कुछ ही देर में पानी आसपास के एरिया में भर गया. अब लोग यह पूछ रहे हैं कि क्या यह सरस्वती नदी का पानी है?
जमीन से अचानक बड़े पैमाने पर पानी निकलने की घटना के केंद्र सरकार व राज्य सरकार के भूजल विभाग की टीम में भी मौके पर पहुंचकर मामले की जांच में जुटी है. इलाके में चर्चा इस बात की है कि आखिर पानी का इतना प्रेशर इतनी तेजी से कैसे आया? स्थानीय लोग यह मानकर चल रहे हैं कि सैकड़ो वर्ष पहले विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी अस्तित्व में आ गई हैं.
पूर्व की सरकारों ने सरस्वती नदी की खुदाई और उसकी जांच के लिए इसरो से भी मदद ली थी. इसरो के द्वारा दिए गए पिक्चर और मैप के अनुसार खोदे गए नलकूपों से अच्छा पानी मिला, जिसकी बाद में जांच की गई. जांच के दौरान पानी की उम्र सरस्वती नदी की उम्र के लगभग समान आई थी.
इन सब सवालों को लेकर एबीपी न्यूज ने ग्राउंडवाटर डिपार्मेंट के वरिष्ठ वैज्ञानिक सेवानिवृत्ति विमल सोनी से बातचीत की. भूजल विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक सेवानिवृत्ति विमल सोनी ने एबीपी न्यूज को बताया कि मोहनगढ़ में खुदाई के दौरान पानी का प्रेशर बाहर आ रहा है. इसकी जांच की जा रही है.
उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में 30 मीटर और 100 मीटर तक नलकूप तक की खुदाई की जाती है. जहां से पानी निकल रहा है, वहां पर नलकूप की खुदाई 100 मीटर तक की गई थी. जहां पर नीचे एक पानी का बबल था. ड्रिलिंग के कारण छेद होते ही प्रेशर के साथ पानी बाहर आ गया.
बाहर निकला पानी सफेद कलर का नजर आ रहा है. चूंकि, जैसलमेर क्षेत्र में जिप्सम होता है. जिप्सम में घुलकर पानी बाहर आ रहा है. इस नलकूप से निकलने वाले पानी सरस्वती नदी का है या नहीं, इसका अभी दावा करना जल्दबाजी होगी. उन्होंने ये भी बताया कि सरस्वती नदी के पैलियो चैनल बॉर्डर एरिया के साथ लगे हुए क्षेत्र में है, जो महेंद्रगढ़ से काफी दूर है.
भूजल विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक सेवानिवृत्ति विमल सोनी ने बताया कि उन्होंने लंबे समय तक सरस्वती नदी के पैलियो चैनल पर काम किया. उसके रूट पर नलकूप बनाए गए. सरका के बदलने के साथ सरस्वती नदी का काम भी रुक जाता है. हालांकि, सरस्वती नदी बॉर्डर के पास वाले क्षेत्र से गुजरती हैं. जहां पर ग्राउंडवाटर डिपार्मेंट ने इसरो के वैज्ञानिक डॉ. बत्रा के साथ मिलकर काम किया था. सरस्वती नदी की खोज को लेकर आगे काम करना चाहिए. इससे रेगिस्तानी क्षेत्र में पानी की समस्या नहीं रहेगी.
विमल सोनी के मुताबिक इसरो ने जोधपुर का एक सेटेलाइट पिक्चर मुहैया कराया था, जिसके आधार पर काम आगे बढ़ा. एनआईएच रुड़की ने खुदाई के दौरान जो पानी निकला उसकी उम्र की जांच की थी. पीआरएल अहमदाबाद ने खुदाई में मिली गीली मिटी की जांच की व अवशेष की उम्र की जांच की थी. भूजल विभाग जोधपुर ने सरकारी अनुदान व खुदाई के लिए जो भी आवस्यकता हैं पूरी की थी.
दरअसल, राजस्थान में सरस्वती की खोज के लिए पहले भी काम होता रहा है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र का क्षेत्रीय रिमोट सेंसिंग, केंद्र और राज्य का भूजल बोर्ड इस दिशा में काम कर चुके हैं.
2 दिन बाद पानी निकलना हो गया बंद
वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक एवं राजस्थान भूजल बोर्ड विभाग के प्रभारी डॉ. नारायण इणखिया कहते हैं, "मोहनगढ़ में ट्यूबवेल की ड्रिलिंग के दौरान भूजल का स्वतःस्फूर्त प्रवाह शुरू हो गया था. भूजल बड़ी मात्रा में बह रहा था. जैसलमेर में आमतौर पर भूजल सीमित अवस्था में पाया जाता है. यह स्थिति 2 दिन तक रही, लेकिन आज जलस्तर स्थिर रहने के कारण पानी की आवक रुक गई है. फिलहाल यहां से और पानी निकलने की कोई गतिविधि नहीं हो रही है."
सरस्वती नदी के पानी को लेकर कब क्या हुआ?
- जैसलमेर के 8 स्थानों पर साल 1994 से 2002 के बीच भूजल पर अध्ययन हुआ था. भूजल के नमूनों की आइसोटोप जांच, जिससे पानी की उम्र का पता चल सकता है, का पता लगाने के लिए इसे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र को साल 2003 में भेजा गया था.
- केंद्र में भेजी गई रिपोर्ट में यह कहा गया था यहां मिला भूजल 1900 से 5700 साल पुराना हो सकता है. इसके अलावा, इसरो के जोधपुर स्थित रिमोट सेंसिंग सेंटर की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि जैसलमेर में सरस्वती नदी के प्रवाह के संकेत मिलते हैं. इसकी धारा जैसलमेर से होकर पाकिस्तान की सीमा पर होती हुई कच्छ के रन में गिरती थी.
- वर्ष 1994 से 2003 तक खुदाई का काम चला. इस दरमियान जो भी खुदाई के दौरान पानी निकला उसकी उम्र की जांच 2 से 5 हजार साल पहले की निकली जो की सरस्वती काल का माना जा रहा हैं. वर्ष 1994 में काम बीच में ही बंद करना पड़ा. उस समय खुदाई के लिए बजट मात्र 27 लाख रुपए जारी हुए थे.
- वर्ष 1994-2003 के मध्य समय में 8 से जयादा कुएं खुदवाए गए. 4 कुएं 50 से 60 मीटर गहरे खोदे गए जो पानी निकला उसकी उम्र की जांच की गई तो 1700 से 5700 वर्ष की उम्र के होने की पुष्टि हुई. वहीं, 4 कुओं की खुदाई 150 से 300 मीटर गहरी की गई इसके बाद सैंपल लिए गए. इसमें पानी की उम्र 2100 से 8000 वर्ष उम्र की पुष्टि हुई थी. सभी 8 कुओं का पानी मीठा मिला था.
- वर्ष 2003 से राजस्थान में सरस्वती नदी की खुदाई बंद हैं. 2003 से 2015 तक लगातार सरकार से सरस्वती नदी की खोज के लिए राजस्थान सरकार से बजट नहीं मिला पाना एक बड़ा दुर्भाग्य है. भूजल विभाग की ओर से फरवरी 2015 में एक बार फिर से 70 करोड़ का प्रपोजल सरस्वती नदी के लिए बनाकर राजस्थान सरकार को भेजा गया. इस प्रपोजल पर किसी भी तरह का कोई जवाब सरकार की तरफ से नहीं आया.
- विशेषज्ञ विमल सोनी के मुताबिक अगर सरस्वती नदी निकल आती हैं तो बॉर्डर क्षैत्र में पीने के लिए मीठा पानी आसानी से उपलब्ध हो सकता है. रेगिस्तान की बंजर भूमि में हरयाली भी देखने को मिल सकती है.
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