Janmashtami 2022 Puja: भगवान श्रीकृष्ण को भक्त प्रेम और मित्रता की मिसाल मानते हैं. भारत ही नहीं, संपूर्ण संसार में भगवान श्री कृष्ण के कई मंदिर हैं. ठाकुरजी का एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान श्री कृष्ण की पूजा सात साल के बालक रूप में होती है. यहां लोग हर साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व अनूठे अंदाज में मनाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण को तोपों की सलामी देते हैं. यहां भक्त करीब 400 साल से अनवरत यह परंपरा निभा रहे हैं.


हम बात कर रहे हैं राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर की. जहां वैसे तो साल के 365 दिन ही रौनक रहती है मगर जन्माष्टमी पर यहां का माहौल देखने लायक होता है. प्रभु के जन्म उत्सव का आनंद लेने के लिए देशभर से भक्त यहां पहुंचते हैं. यहां का माहौल ब्रज जैसा दिखाई देता है. खास बात है कि यहां कृष्ण जन्म महोत्सव के मौके पर अनूठा आयोजन होता है. यहां जन्माष्टमी पर मध्य रात 12 बजते ही ठाकुरजी को 2 तोपों से 21 बार सलामी देते हैं. रिसाला चौक में करीब चार सौ साल से यह परंपरा निभाई जा रही है. जिन दो तोपों से सलामी दी जाती है उन्हें नर और मादा तोप कहते हैं. इस परंपरा को निभाने के लिए मंदिर समिति व होमगार्ड्स को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है.




नाथद्वारा में ब्रज जैसी भाषा-संस्कृति


मेवाड़ के मध्य प्रभु श्रीजी की नगरी नाथद्वारा में ब्रज जैसी भाषा-संस्कृति है. यहां के अधिकांश स्थानीय लोग खुद को ब्रजवासी बताते हैं और ब्रजभाषा बोलते हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि प्रभु श्रीनाथजी के साथ ही ब्रज के लोग नाथद्वारा आकर बस गए. कई परिवारों की कई पीढ़ियां यहां गुजर गई है. ब्रजवासियों के साथ यहां मेवाड़ के लिए लोग भी बहुतायत में हैं. यहां मेवाड़ी और ब्रजवासी भाषा के साथ ही दो संस्कृतियों का संगम होता है.


अधिकाशं मोहल्लों के नाम ब्रज संस्कृति पर आधारित हैं


ब्रज संस्कृति का प्रभाव शहर की बसावट में भी देखने को मिलता है. यहां अधिकाशं मोहल्लों के नाम ब्रज संस्कृति पर आधारित हैं. एक बड़ा मोहल्ला ब्रजपुरा कहलाता है तो दूसरे को द्वारकाधीश की खिड़की कहा जाता है. श्रीनाथ कॉलोनी, बड़ी बाखर, नीम वारी बाखर, गणेश टेकरी व मोदियों की खिड़की नामक इलाके भी हैं. 50 हजार से अधिक आबादी वाले इस शहर में 40 वार्ड हैं.


ऐसा है श्रीनाथजी का सुंदर स्वरूप


सत्य चित्त आनंद स्वरूप प्रभु श्रीनाथजी का वर्ण श्याम है. गिरिराजजी के समान ही उनमें रक्त आभा है. उध्वभुजा गिरिराज गोवर्धन के भाव से है. जहां प्रभु खड़े हैं, वहां की पीठिका गोल तथा उपर चौकोर है. पीठिका में उध्वभुजा की तरफ दो मुनि हैं. नीचे एक सर्प, नृसिंह, दो मयूर हैं. दूसरी तरफ उपर एक मुनि, मेष, सर्प तथा दो गाय है. श्री मस्तक पर पीठिका में फल लिए हुए एक शुक (तोता) है. 


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