Chaitra Navratri 1st Day 2022: पूरे देश में चैत्र नवरात्र का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. जोधपुर के सभी मंदिरों में भी मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जा रही है. मेहरानगढ़ किले के मां चामुंडा मंदिर में श्रद्धालुओं से का हुजूम देखने को मिल रहा है. नवरात्र पर मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था की गई है. गर्मी को देखते हुए जगह जगह पीने का पानी मुहैया कराया गया. पुलिस सहित मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के सुरक्षा कर्मी चप्पे-चप्पे पर निगरानी रखे हुए हैं. मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट की ओर से इस बार परिसर को प्लास्टिक कैरी बैग मुक्त रखा गया है.


नवरात्र के पहले दिन मां चामुंडा मंदिर में आस्था का सैलाब


माता का दर्शन करने आने वाले सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद कागज की थैली में लाने को कहा गया है. 9 दिनों तक चलने वाली नवरात्र पर मां चामुंडा के मंदिर में लाखों श्रद्धालु दर्शन आएंगे. नवरात्र में 9 दिन व्रत करने वाले चामुंडा मां के भक्त आशीर्वाद लेने मंदिर पहुंचते हैं. भगवान के सामने माथा टेककर मन्नत मानते हैं. मान्यता है कि मां के चरणों में शीश झुकाने से मनोकामना पूरी होती है. छोटे बच्चों को भी श्रद्धालु मंदिर लेकर आते हैं और मां चामुंडा का आशीर्वाद लेते हैं. आज नवरात्र के पहले दिन मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा है. जय माता दी के नारे लगाते हुए भक्त पहुंच रहे हैं. 


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मां चामुंडा की प्रतिमा 1517 में राव जोधा ने की थी स्थापित


मां चामुंडा की प्रतिमा 563 साल पहले विक्रम संवत 1517 में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर से लाकर स्थापित की थी. परिहारों की कुलदेवी चामुंडा को राव जोधा ने भी इष्टदेवी स्वीकार किया था. जोधपुरवासी मां चामुंडा को जोधपुर की रक्षक मानते हैं. श्रद्धालुओं का मां चामुंडा माता के प्रति अटूट आस्था है. माना जाता है कि 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जोधपुर पर गिरे बम को मां चामुंडा ने अपने अंचल का कवच पहना दिया था. किले में 9 अगस्त 1857 को गोपाल पोल के पास बारूद पर बिजली गिरने की वजह से चामुंडा मंदिर कण-कण होकर उड़ गया लेकिन मूर्ति अडिग रही.




मंदिर की कुछ प्राचीन परम्पराओं में बदलाव किया गया है. आद्यशक्ति मां चामुंडा की स्तुति में कहा गया है कि जोधपुर के किले पर पंख फैलाने वाली माता तू ही हमारी रक्षक है. रियासतों के भारत गणराज्य में विलय से पहले मंदिर में नवरात्र की प्रतिपदा को महिषासुर के प्रतीक भैंसे की बलि देने की परम्परा बंद की जा चुकी है. मां चामुंडा के मुख्य मंदिर का विधिवत निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने करवाया था. मारवाड़ के राठौड़ वंशज चील को मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं. राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीलें मंडराती रहेंगी तब तक दुर्ग पर कोई विपत्ति नहीं आएगी.


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