Jodhpur News: देशभर में अधिकतर किसान परंपरागत फसल पर ही निर्भर हैं. समय के साथ अब कृषि भी बदल रही है. किसान परंपरागत फसल के साथ नगद फसल की और बढ़ने लगे हैं. किसान फसलों के बीच में और फसलों के साथ जल्द मिलने वाली फसल की उपज भी कर रहे हैं. ऐसी फसलों की उपज जोकि बाजार में आसानी से बिक जाती है. किसान अब परंपरागत फसलों के साथ कैश क्रॉप लेने में भी सफल हो रहे हैं. परंपरागत फसल के साथ किसान अब कैश क्रॉप के जरिए लाखों रुपए काम रहे हैं. अच्छी सोच और तकनीक के साथ काम किया जाए तो किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं कई गुना हो सकती है.


कैश क्रॉप से लाखों कमा रहे किसान


जोधपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर तिंवरी ग्रामीण क्षेत्र में रतनलाल डागा ने अपने खेतों में परंपरागत फसल लेते हैं. रतन लाल डागा ने साल 1973 में एग्रीकल्चर में बीएससी की और उसके बाद पिता के साथ खेती करने लगे. रतनलाल के दादा और पिता दोनों ही खेती करते थे. उन्होंने कहा मैं कई साल तक रासायनिक खेती ही करता रहा. 1994 में किसान संघ से जुड़ गया और 1999 में बेंगलुरु में कृषि विश्वविद्यालय की मीटिंग में गया वहां साइंटिस्ट ने बताया कि आप जो खेती कर रहे हैं कि आगे चलकर बहुत खतरनाक साबित होगी क्योंकि उसमें जीवांश की मात्रा धीरे-धीरे खत्म हो रही है जिसे आप की खेती की लागत भी बढ़ जाएगी. वहां से लौटने के बाद रासायनिक खेती को कम कर दिया. जैविक खेती को लेकर आर्थिक नुकसान हुआ और फसल जीरो हो गई लेकिन हिम्मत नहीं हारी और जैविक खेती करते रहे. जैविक खेती करना आसान बात नहीं है. पानी के बहाव को उल्टा करना जैसा है. जब हिम्मत की थी तो उसका परिणाम भी सामने है.


इस खेती में लागत भी बढ़ती जा रही थी और कमाई भी कम हो रही थी. बस यहीं से साल 2002 में रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर रुख किया. इसके जरिए आम लोगों को बिना जहर की खेती की फसल मुहैया कराने का काम कर रहे हैं साथ ही ग्रामीणों में जागरूकता लाने के लिए किसानों के साथ संगोष्ठी भी कर रहे हैं. इसके साथ ही रतनलाल डागा ने अपने यहां पर चियां, चिकोरी, केमामाइल टी की खेती की और उसकी फसल भी तैयार हो गई है. यह फसल आराम से बाजार में महंगे भाव में बिकती है. जैसे चियां 500/- kg बिकती है, चिकोरी 250/- kg और केमामाइल टी 1000/- kg के हिसाब से बिकती है. इसकी खेती फसल के बीच में की गई और अच्छी क्वालिटी की पैदावार भी मिल चुकी है.


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