Jodhpur News: लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे 40 कपल ने कोर्ट से मांगी सुरक्षा, पढ़ें चौंकाने वाली खबर
Rajasthan High Court: पिछले केवल 3 महीने में ही हाईकोर्ट में 80 लोगों (40 कपल) ने परिवार वालों से जान का खतरा बताकर सुरक्षा की गुहार लगाई है.
Live in Relationship: देश में लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिल गई है. लेकिन आज भी समाज उसे पूरी तरह स्वीकार नहीं करता है. जिसका उदाहरण यह है कि राजस्थान में लिव इन रिलेशनशिप वाले जोड़ों पर खतरे के मामले चौंकाने वाले हैं. पिछले केवल 3 महीने में ही हाईकोर्ट में 80 लोगों (40 कपल) ने परिवार वालों से जान का खतरा बताकर सुरक्षा की गुहार लगाई है. ये सभी शादी किए बिना एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं. इन लोगों का कहना हैं कि इस फैसले से हमारे घरवाले नाराज हैं.
इनमें 3 कपल तो शादीशुदा हैं और अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. इन विवाहित युवतियों ने अपने-अपने पति की जान बचाने की अदालत से मांग की है. इनमें 30% यानि 13 युवतियां, युवकों से 5 से 15 साल तक बड़ी हैं. हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया है कि पुख्ता सुरक्षा दिलाएं.
सर्वाधिक 15 कपल जोधपुर के
हाईकोर्ट पहुंचने वाले इन कपल्स में से 15 अकेले जोधपुर के हैं. हनुमानगढ़ के 7, जालोर 4, पाली 3, बीकानेर 3, श्रीगंगानगर 3 और बाड़मेर, सिरोही और चूरू के 1-1 कपल हैं. दो विवाहित युवतियां जोधपुर और एक जालोर की है. लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ो की ओर से अपने घर या पति से जान का खतरा होने का कारण बताकर सीधे हाईकोर्ट पहुंचकर सुरक्षा मांगी जा रही है. सही मायने में सुरक्षा के लिए 107/103 सीआरपीसी कार्रवाई पुलिस थाने में की जानी चाहिए. जिससे पुलिस कार्रवाई नहीं करें तो उस को आधार बनाकर आगे कार्रवाई की जा सकती है. प्रेम विवाह कर हाईकोर्ट से सुरक्षा मांगने वाले युगलों में 32 प्रतिशत यानि 40 कपल लिव इन रिलेशनशिप वाले हैं. इनमें भी 32 प्रतिशत यानि 13 युवतियां, युवकों से 5 से 15 साल तक बड़ी हैं.
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. पहली बार बद्रीप्रसाद बनाम डिप्टी डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन के मामले में लिव इन रिलेशनशिप को वैध माना.
. लता सिंह बनाम यूपी राज्य के मामले में माना कि लिव इन रिलेशनशिप अनैतिक माना जाता है लेकिन कानून में अपराध नहीं.
. खुशबू बनाम कनैम्मल और अन्य के एक अन्य चर्चित मामले में माना कि साथ रहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार है. इस प्रकार समाज में अनैतिक माने जाने के बावजूद यह कानून की नजर में अपराध नहीं है.
इसे पति बना सकता है तलाक का आधार, भरण-पोषण भी नहीं देने का है प्रावधान
विवाहित महिला-पुरुष किसी अन्य से शारीरिक संबंध रखें, तब अडल्ट्री का केस आईपीसी की धारा 497 में दर्ज होता है, लेकिन 2018 में यह कानून खत्म हो गया. पहले इस धारा का केस तलाक का आधार बनता था. अब लिव इन साबित हो तो वह भी तलाक का आधार संभव है. इन मामलों में पत्नियों ने कोर्ट से सुरक्षा का आदेश लिया तो यह पतियों को पत्नियों से तलाक दिला सकता है. इसमें उन्हें लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली पत्नी को भरष-पोषण भत्ता और संपत्ति में अन्य अधिकार देने की भी जरूरत नहीं होगी.
क्या है लिव-इन रिलेशनशिप
लिव-इन संबंध या लिव-इन रिलेशनशिप एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो लोग जिनका विवाह नहीं हुआ है, साथ रहते हैं और एक पति-पत्नी की तरह आपस में शारिरिक सम्बन्ध बनाते हैं. यह संबंध स्नेहात्मक होता है और रिश्ता गहरा होता है. संबंध कई बार लंबे समय तक चल सकते हैं या फिर स्थाई भी हो सकते हैं. इस तरह के संबंध विशेष रूप से पश्चिमी देशों में बहुत आम हो चुके हैं. यह रुझान को पिछले कुछ दशकों में काफी बल मिला है. जिसका कारण बदलते सामाजिक विचार हैं. विशेषकर विवाह, लिंग भागीदारी और धर्म के मामलों में भारत के सर्वोच्च न्यायाल ने लिव-इन संबंधों के समर्थन में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए कहा है कि अगर दो लोग लंबे समय से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं और उनमें संबंध हैं, तो उन्हें शादीशुदा ही माना जाएगा.
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