Jodhpur Maa Chamunda Murti Theft: जोधपुर जिले में गुप्त नवरात्र के दौरान मंडोर किले में बने प्राचीन चौथी शताब्दी में स्थापित मां चामुंडा माता के मंदिर में चोरों ने माता की प्रतिमा चुरा ली. इस मामले में पकड़े गए चारों आरोपियों को पुलिस ने मंगलवार को कोर्ट में पेश किया. वहां से सभी को एक दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया. चोरी का यह मामला शनिवार का है. मंडोर थाना इलाके में रविवार सुबह जब पुजारी और स्थानीय लोग दर्शन के लिए पहुंचे तो वहां माताजी की प्रतिमा गायब थी.


चारों आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. मंडोर स्थित मां चामुंडा माता के मंदिर से मां चामुंडा माता की प्रतिमा चोरी करने का पूरा प्लान गूगली गांव के तांत्रिक पति-पत्नी ने मिलकर प्लान बनाया था. इसके लिए गांव में सभा की गई थी. कहा गया कि माता जी का आदेश हो गया है. मूर्ति चोरी करने से पहले मंदिर में दो घंटे तक तंत्र विद्या भी की गई.


देह में भगवान के आने का रचा नाटक
मां चामुंडा की प्रतिमा चोरी करने वाले तांत्रिक दंपति महेंद्र सिंह और उसकी पत्नी दोनों गूगली गांव के रहने वाले हैं. गांव में दोनों भोपा भोपी तांत्रिक हैं. गांव में ही इन्होंने माता जी का छोटा सा (स्थान) मंदिर बना रखा है जहां पर स्थानीय लोगों की भीड़ उमड़ती है. यहां उनकी समस्या का निवारण करने और बीमारियों को ठीक करने का दावा किया जाता है. बताया गया कि गुप्त नवरात्रि की शुरुआत में उनके स्थान पर बड़ी संख्या में लोग जुटे थे. यहां दोनों ने भाव (शरीर में भगवान) आने का नाटक किया था. 


रेकी करने के बाद की गई चोरी
कहने लगे हो गया माता जी का आदेश मां चामुंडा की प्रतिमा यहां पर स्थापित होगी. इसका आदेश कुलदेवी ने दिया है. फिर तय किया गया कि मंडोर से यह मूर्ति लेकर आएंगे और अष्टमी के दिन गांव में स्थापित की जाएगी. इसके लिए 17 फरवरी को इन्होंने मंदिर में रेकी कर इस चोरी की वारदात को अंजाम दिया है. 


अपने मंदिर में कर दी मूर्ति की स्थापना
पुलिस पूछताछ में महेंद्र सिंह ने बताया कि मां चामुंडा प्रतिहार वंश परिहार की कुलदेवी हैं. वो भी परिहार गोत्र का है. वो खुद कई बार यहां दर्शन के लिए आ चुका था. वो जानता था कि यह मंदिर सदियों पुराना है. यहां पर स्थापित मां चामुंडा की प्रतिमा चैथी शताब्दी की है. चोरी करने के लिए दो गाड़ियों में 11 लोग शनिवार रात 12 बजे चामुंडा मंदिर पहुंचे. मंदिर परिसर में 2 घंटे तक मिलकर तंत्र विद्या की. इसके लिए वो लोग सामान भी साथ लाए थे. फिर 2:00 बजे मूर्ति उखाड़कर वहां से निकल गए. अगले दिन अष्टमी को उन्होंने गांव में मूर्ति की स्थापना भी कर दी.


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