Jodhpur News: जब स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा देने के लिए माचिया किले को बना दिया गया था जेल
30 से 32 स्वतंत्रता सेनानियों को जोधपुर जेल से निकाल कर काला पानी की सजा देने के लिए माचिया किले में 1942 से 1943 के बीच 8 महीनों तक भयंकर प्रताड़ना दी गई. परिजनों को भी मिलने नहीं दिया जाता था.
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Machiya Qila: देश को आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता की कहानियां तो बहुत सुनीं होंगी. स्वतंत्रता सेनानियों ने किस तरह से प्रताड़ना सही वो भी आपने कहीं न कहीं पढ़ा या सुना होगा. लेकिन आज हम स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा देने के लिए खासतौर से बनाई जाने वाली जेल कैसी होती थी और किस तरह से यातनाएं दी जाती थीं, उसके बारे में बताने जा रहे हैं. दरअसल राजस्थान में जोधपुर शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा देने के लिए जेल बनाई गई थी, जिसका नाम माचिया किला है.
राजा-महाराजाओं के रियासत काल में बनाए गए इस किले को अंग्रेजों ने उसे जेल में बदल दिया. इस जेल में खासतौर से उन स्वतंत्रता सेनानियों को प्रताड़ना के लिए लाया जाता था जो कि आम जनता में आजादी की लड़ाई के लिए अलगाव का काम करते थें. इतिहास के पन्नों में कई स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी मिलती हैं. देश को आजादी दिलाने के लिए पूरे भारत में स्वतंत्रता सेनानी लड़ाई लड़ रहे थे और इस दौरान कई ने अपनी जान गवाईं तो कई सेनानियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर भयंकर प्रताड़ना दी.
8 महीनों तक दी गई थीं भयंकर यातनाएं
यही नहीं काला पानी की सजा देने के लिए जोधपुर में भी स्वतंत्रता सेनानियों को चिन्हित किया गया और उनको जोधपुर जेल में डाला गया. इसके बाद 30 से 32 स्वतंत्रता सेनानियों को जोधपुर जेल से निकाल कर काला पानी की सजा देने के लिए माचिया किले में 1942 से 1943 के बीच 8 महीनों तक भयंकर प्रताड़ना दी गई. उस दौरान स्वतंत्रता सेनानियों से उनके परिजन मिलने आते थे तो उनको मिलने नहीं दिया जाता था और कुछ मिलते थे तो भी करीब 10 फीट की दूरी से, छोटे-छोटे झरोखे से कुछ मिनटों में बात करने दी जाती थी.
साल में दो दिन ही खुलते हैं किले के द्वार
स्वतंत्रता सेनानियों को जहां यातनाएं दी गई थीं., इस माचिया किले में उनकी तस्वीरें तो लगी हुई हैं, लेकिन इस किले के द्वार साल में दो ही दिन खुलते हैं. एक 15 अगस्त और दूसरा 26 जनवरी पर, इस दिन स्वतंत्रता सेनानियों के परिजन वहां पहुंचते हैं और अपने परिजनों को याद करते हैं. देश को आजादी दिलाने वाले उन वीर जवानों की तस्वीरें तो इस जेल में लगी हुई हैं, लेकिन यहां पर देखभाल करने वाला कोई नहीं है. सरकारें आती-जाती रहीं, घोषणाएं भी हुईं लेकिन यहां के हालात जस के तस बने हुए हैं.
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