जोधपुर: आपने अक्सर मुस्लिम महिलाओं को बुर्के पहने हुए देखा होगा औऱ मन में बुर्के के बार में कई तरह के सवाल भी उठे होगें, कि बुर्के आखिर कितनी तरह के होते होंगे, तो आपके इन सभी सवालों का जवाब आज हम इस रिपोर्ट में लेकर आए है. आपको बता दें कि बुर्के तीन प्रकार के होते हैं और अब तो बुर्के की वैराइटी फैशन के साथ बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है. पहले बुर्के प्लेन काले कपड़े के बने होते थे लेकिन अब जैसे-जैसे समय बदल रहा है लोगों की पसंद भी बदल रही है. अब जो बुरखे और हिजाब आ रहे हैं वह फैशन के साथ जुड़े हुए आ रहे हैं. चमक-दमक भरी दुनिया में मुस्लिम महिलाएं खास रंग और खास डिजाइन किए हुए बुर्के पहनना पसंद करती है


कई वैराइटी के मिलते है बुर्के


जोधपुर में ये कारोबार बहुत बड़ा है. करोड़ों रुपए के इस कारोबार से कई परिवार और कई घरेलू महिलाएं भी जुड़ी हुई है. जोधपुर के होलसेल व्यापारी हाजी सदीक ने बताया कि अब बुर्कों में कई सारी वैरायटी आ गई है. ये अलग-अलग कपड़ों में बनकर तैयार होकर आते हैं. बता दें कि बुर्के की ये प्रथा 14 साल पहले शुरू हुई थी. अब चलन और फैशन के साथ इसकी मांग और ज्यादा बढ़ रही है.


पश्चिमी देशों में पहना जाता है बुर्का


विद्वानों में छिड़ी बहस की वजह से दो शब्द चल निकले हैं हिजाब और नकाब. जिनमें हिजाब एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है सिर ढके रखना और नकाब का मतलब है पूरी तरह से चेहरा ढकना. बुर्का वो है जिसमें पूरा शरीर ढक का होता है और सिर्फ आंखों से देखने के लिए झिल्ली या जाली लगी होती है. लेकिन हिजाब में चेहरा नजर आता है और बाल और गर्दन छुपे होते हैं. पश्चिमी देशों में हिजाब ज्यादा लोकप्रिय है लेकिन बुर्का एशियाई देशों में खासा प्रयोग में देखा जाता है. हालांकि पश्चिमी देशों में भी कुछ इलाकों में मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनना पसंद करती है.


इसलिए पहना जाता है बुर्का


आपको बता दें कि मुस्लिम महिलाएं बुर्का इसलिए पहनती है क्योंकि कि इस्लाम की तामीर सऊदी अरब में हुई थी जो कि एक गर्म रेगिस्तान है वहां की भीषण गर्मी और धूल भरी हवाओं से अपने शरीर को बचाने के लिए वहां के सभी लोग बच्चे बूढ़े पुरुष और महिलाएं सभी अपने शरीर के अधिक से अधिक हिस्से को कपड़ों से ढक कर रखती थी. अरब देश में औरतें ही नहीं पुरुष भी बुर्के जैसे एक कपड़े लबादा जैसी पोशाक पहनते हैं. जिसे अबाया कहते हैं. रेगिस्तान में गर्मी तो होती ही है साथ ही पानी की भी भारी कमी होती है. ऐसे में धूल और रेत यदि बालों में बैठ जाए या फिर कान-नाक और आंखों में घुस जाए तो मुंह धोना होगा या बाल धोने पड़ेंगे या बार-बार नाहन होगा. जबकि पानी की भारी कमी के कारण ये संभव नहीं होगा. इसलिए शरीर को ढककर रखने में ही बचाव है.


इरान से आया बुर्के का प्रचलन


बुर्का शब्द और पहनने का प्रचलन इरान से आया है. जब इस्लाम मजहब ईरान में आया तब उन लोगों ने वहां के प्रचलित परिधान को अपना लिया और धीरे-धीरे ये उनके मजहब का अंग बन गया. सच्चाई ये है कि कुरान में बुर्का शब्द का वर्णन है ही नहीं कुरान में केवल ये लिखा और बोला गया है कि महिलाओं का सर ढका होना चाहिए और कपड़े शालीन होने चाहिए.


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