Jodhpur News: जोधपुर के जवाई डैम क्षेत्र में लेपर्ड की संख्या बढ़ने के साथ शिकारी भी सक्रिय हो गए हैं. वन्य जीव प्रभाग की टीम ने पाली जिले के बोया गांव में फंदे से एक फीमेल लेपर्ड का रेस्क्यू किया है. रात दो बजे फीमेल लेपर्ड को शिकारियों के फंदे से मुक्त करा दिया गया. फंदे में फंसने के कारण जख्मी हुई लेपर्ड का जोधपुर में इलाज चल रहा है. ठीक होने पर वापस उसी क्षेत्र में छोड़ दिया जाएगा. मेल लेपर्ड बहुत शातिर होते हैं और आसानी से शिकारियों के चंगुल में नहीं फंसते. अभी तक शिकारियों के फंदे से तीन फीमेल को मुक्त कराया जा चुका है. सिर्फ एक मेल लेपर्ड शिकारियों के चंगुल में फंसा था, लेकिन फंदे सहित भाग निकला.


देर रात टीम ने मादा लेपर्ड का किया रेस्क्यू


जवाई रेलवे स्टेशन के पास बोया गांव में एक फीमेल लेपर्ड के फंदे में फंसे होने की सूचना मिली थी. उसका एक पांव फंदे में फंसे होने के कारण मदद के लिए चिल्ला रही थी. लोगों की सूचना पर वन्य जीव प्रभाग की टीम को देर रात जोधपुर से भेजा गया. टीम में डॉ ज्ञान प्रकाश, वेट असिस्टेंट महेंद्र, सीनियर रिस्क्यूवर बंशी, फॉरेस्ट गार्ड बंशी, सुरेश, राजू फौजी और पाली के वन कर्मी शामिल थे. रात दो बजे मौके पर पहुंची टीम ने सर्द रात में फंदे से निकलने के लिए छटपटा रही फीमेल लेपर्ड को बेहोश कर फंदे से मुक्त कराया. रेस्क्यू करने के बाद टीम जोधपुर लेकर पहुंच गई. फंदे में फंसा होने के कारण पांव पर गहरा घाव हो गया है. 


वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. श्रवण सिंह राठौड़ का मानना है कि मेल लेपर्ड बहुत शातिर होते हैं और शिकारियों के फंदे में आसानी से नहीं फंसते. उन्होंने बताया कि अब तक शिकारियों के चंगुल में फंसे तीन लेपर्ड को मुक्त कराया जा चुका है और ये सभी फीमेल थीं. सिर्फ एक बार मेल लेपर्ड शिकारियों के चंगुल में फंसा, लेकिन फंदे सहित भाग निकला. बाद में उसे रेस्क्यू कर पांव से फंदा निकाला गया. डॉ. राठौड़ कल रात के रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल नहीं थे.


आबादी में भीड़ देखकर हिंसक हो जाते हैं लेपर्ड


अब तक 35 लेपर्ड के रेस्क्यू अभियान में शामिल हो चुके हैं. इसमें से 28 मेल लेपर्ड थे. ये मेल लेपर्ड आबादी क्षेत्र में पहुंचने के बाद पकड़े गए. इसके अलावा राठौड़ पांच बच्चों का भी रेस्क्यू कर चुके हैं. इनमें से नाना-बेड़ा नाम के दो लेपर्ड तीन साल से माचिया में बड़े हो रहे हैं. बहुत छोटे होने के कारण इनका लालन-पालन यहीं पर किया गया. अब नियमानुसार दोनों को वापस जंगल में छोड़ने की योजना है. आबादी क्षेत्र में पहुंचने के बाद कई लेपर्ड लोगों की भीड़ को देख हिंसक हो जाते हैं. ऐसे में उन्हें पकड़ना काफी चुनौतीपूर्ण काम होता है.


कई बार ये पकड़ने जाने वाली टीम पर हमला कर देते हैं. कुछ माह पूर्व बाड़मेर के फागलिया गांव में एक लेपर्ड ने डॉ. राठौड़ पर हमला कर दिया था. लेपर्ड सिर के ऊपर से कूद कर पंजा मारते हुए भाग निकला. इस कारण उन्हें हल्की चोट भी आई. एक बार नागौर जिले में लेपर्ड को पकड़ने के बाद लोग मारने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए. उन्होंने वन विभाग की टीम को घेर लिया और हमला बोल दिया. बड़ी मुश्किल से लेपर्ड को लेकर टीम वहां से निकल सकी. 


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