Chhath Puja 2022: जोधपुर में छठ पूजा का भव्य आयोजन, लोगों में दिखा जबरदस्त उत्साह, महिलाओं ने गाए गीत
Chhath Puja 2022: जोधपुर के संगरिया क्षेत्र में छठ पूजा के लिए आयोजन रखा गया. महिलाओं ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और घर परिवार की सुख-समृद्धि के लिए छठी मैया की पूजा अर्चना की.
Chhath Puja: देशभर में छठ पूजा का त्योहार खुशियों के साथ मनाया जा रहा है. छठ पूजा का चार दिवसीय त्योहार नहाय खाय और खरना के साथ शुरू हो चुका है. भक्त बहुत धूमधाम से इस त्योहार को मनाने के लिए तैयार हैं. यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है. वेदों में सूर्य देव ऊर्जा और जीवन शक्ति के देवता माने गए हैं. महिलाएं छठ के दौरान उपवास रखती हैं और अपने परिवार और बच्चों की भलाई, समृद्धि और प्रगति के लिए भगवान सूर्य और छठी मैया से प्रार्थना करती हैं. वे भगवान सूर्य और छठी मैया को अर्घ्य भी देती हैं. यह त्योहार देश ही नहीं विदेशों में भी मनाया जाता है. इस त्योहार पर 36 घंटे का निर्जल उपवास किया जाता है.
भगवान सूर्य को दिया अर्घ्य
राजस्थान में जोधपुर के संगरिया क्षेत्र में छठ पूजा के लिए आयोजन रखा गया. यहां पर सैकड़ों की तादाद में महिलाएं और पुरुष छठ पूजा के लिए पहुंचे. क्षेत्र में तालाब या नदी नहीं होने के कारण यहां लोगों ने कृत्रिम झील बनाई. इसी पानी में खड़े होकर महिलाओं ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और छठी मैया के लिए गीत भी गाए गए. श्रद्धालुओं ने कहा, घर परिवार की सुख-समृद्धि के लिए छठी मैया की पूजा अर्चना की जाती है और भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
पूरी होती है मनोकामना
छठ त्योहार के दिन लोग सभी तरह के फल, ड्राई फ्रूट और मिठाईयों के साथ पूजा करते हैं. छठी मैया के लिए निर्जल व्रत रखा जाता है जो 36 घंटे तक चलता है. अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और उदय होते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है. यह व्रत मनोकामना पूरी होने के लिए भी किया जाता है. महिलाओं के साथ पुरुष भी यह व्रत करते हैं. कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय होता है, इसके बाद दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. ऐसे में इस वर्ष छठ पूजा रविवार, 30 अक्तूबर को है. मान्यता के अनुसार छठ पूजा और व्रत परिवार की खुशहाली, स्वास्थ्य और संपन्नता के लिए रखा जाता है. चार दिन के इस व्रत पूजन की कुछ विधाएं बेहद कठिन होती हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख 36 घंटे का निर्जला व्रत है.
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