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Jodhpur News: नाबालिग बेटे की सगाई पर पिता को हुई थी जेल, अब हाईकोर्ट ने राहत देते हुए कही ये बात
हाईकोर्ट ने कहा है कि नाबालिग की सगाई करना बाल विवाह निषेध एक्ट में प्रतिबंधित नहीं है. कोर्ट ने राहत देते हुए आरोपी पर दर्ज एफआईआर और विचाराधीन न्यायिक कार्यवाही को निरस्त कर दिया.
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बाल विवाह (Child Marriage) जैसी कुप्रथा को समाज से समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने कई कठोर कानून बना रखे हैं लेकिन एक पिता को अपने नाबालिग बेटे की सगाई करना इतना भारी पड़ा कि उसे जेल जाना पड़ गया. नाबालिग की सगाई को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने गुरुवार को महत्वपूर्ण आदेश दिया है.
हाईकोर्ट ने कहा है कि नाबालिग की सगाई करना बाल विवाह निषेध एक्ट में प्रतिबंधित नहीं है. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम की धारा 11 यह स्पष्ट करती है कि विवाह समारोह या उसे बढ़ावा देने वाली गतिविधियां अधिनियम के तहत एक अपराध होने के लिए एक अनिवार्य शर्त हैं.
क्या था मामला
हाईकोर्ट ने यह आदेश जोधपुर (Jodhpur) के ओसियां निवासी शिक्षक अनूप सिंह राजपुरोहित की याचिका पर दिया है. दरअसल, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को किसी व्यक्ति ने शिकायत दी थी कि अनूप सिंह 25 फरवरी 2020 को अपने बेटे का बाल विवाह कर रहे हैं. एसपी के निर्देश पर पुलिस ने उन्हें बाल विवाह नहीं करने के लिए पाबंद किया. मई में विधिक सेवा प्राधिकरण ने एफआईआर दर्ज करवाई और 26 जून को अनोप सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया.
कोर्ट ने दी राहत
तीन-चार दिन जेल में रहने के बाद जमानत मिली. इस दौरान 48 घंटे से ज्यादा समय तक जेल में रहने के कारण उन्हें निलंबित कर दिया गया. विभागीय जांच भी शुरू कर दी गई. अब जस्टिस दिनेश मेहता ने राहत देते हुए अनूप सिंह के खिलाफ दर्ज एफआईआर और विचाराधीन न्यायिक कार्यवाही को निरस्त कर दिया.
शादी नहीं, सगाई
अनूप सिंह की ओर से अधिवक्ता हरिसिंह राजपुरोहित ने कोर्ट को एफआईआर और आरोप पत्र पढ़कर सुनाया. कहा कि शिकायतकर्ता और जांच अधिकारी के अनुसार भी याचिकाकर्ता ने बेटे की सगाई समारोह का आयोजन किया था. कोई शादी नहीं हुई थी.
लोक अभियोजक गौरव सिंह यह सिद्ध करने की स्थिति में नहीं थे कि याचिकाकर्ता के पुत्र ने दिनांक 25 फरवरी 2020 को विवाह का अनुबंध किया था. उन्होंने तर्क दिया कि सगाई का आयोजन बाल विवाह को बढ़ावा देने के बराबर है. इसलिए याचिकाकर्ता पर बाल विवाह अधिनियम के तहत अपराधों के लिए सही मुकदमा चलाया जा रहा है.
शारदा एक्ट 1978 में संशोधन कर लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों की 21 वर्ष की गई थी. लड़कियों के लिए भी विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष करने के लिए ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (पीसीएमए)’ में संशोधन का प्रस्ताव है. यूनिसेफ की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार देश में औसतन 27% बाल विवाह हो रहे हैं. राजस्थान, प. बंगाल और बिहार में सबसे अधिक बाल विवाह हो रहे हैं.
एक्ट में सगाई की छूट से बाल विवाह को रास्ता तो मिल ही रहा है. सरकार का तर्क सही है कि सगाई का आयोजन भी बाल विवाह को बढ़ावा देने के बराबर है क्योंकि सगाई भी तो नाबालिग की मर्जी के बिना ही होगी. इसलिए सरकार बाल विवाह के एक्ट में बदलाव करे.
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