Jodhpur News: देशभर में बसंत पंचमी के पर्व की तैयारियां चल रही हैं. हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. बसंत ऋतु में पेड़ों में नई कोपलें निकलनी शुरू हो जाती हैं. कई प्रकार के मनमोहक फूलों से धरती सज जाती है. खेतों में सरसों के पीले फूलों की चादर नजर आती है. बसंत पंचमी के दिन सभी जगह पीले रंग की वस्तुओं का अधिक उपयोग दिखता हैं.
सभी ऋतुओं का राजा
अधिकतर लोगों का पहनावा भी पीले रंग के कपड़े का होता है. देश में ऋतुओं की बात करें तो पूरे वर्ष को 6 ऋतुओं में बांटा गया है. जिसमें बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु और शिशिर ऋतु शामिल है. सभी ऋतु में से बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है. इसी कारण इस दिन को बसंत पंचमी कहा जाता है.
जोधपुर में खास तैयारियां
जोधपुर के मंदिरों में बसंत पंचमी की खास तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. बसंत पंचमी की पूजा पाठ के लिए मंदिरों में सजावट के खास इंतजाम किया जा रहा है. मंदिरों की प्रतिमाओं को पीले रंग की वेशभूषा में श्रंगार किया जा रहा हैं. मंदिरों में पीले ही फूलों की सजावट की जा रही है. बसंत पंचमी के दिन मंदिरों में प्रसाद भी पीले रंग का चढ़ाया जाता है.
इस दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था. इसलिए बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा की जाती है. मां सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना जाता है. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती से विद्या बुद्धि कला विज्ञान का वरदान मांगा जाता है.
क्या है मान्यता-ऐतिहासिक महत्व
बसंत पंचमी के ऐतिहासिक महत्व को लेकर यह मान्यता है कि सृष्टि रचियता भगवान ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्यों की रचना की थी. ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना करके उस संसार में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता है और वातावरण बिलकुल शांत लगता है. जैसे किसी की वाणी ना हो. यह सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी मायूस, उदास थे. वे संतुष्ट नहीं थे.
तब ब्रह्मा जी भगवान् विष्णु से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल पृथ्वी पर छिडकते हैं. कमंडल से धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन होने लगता है और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी (चार भुजाओं वाली) सुंदर स्त्री प्रकट होती है. उस देवी के एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा होती है. बाकी अन्य हाथ में पुस्तक और माला थी. ब्रह्मा जी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध करते है.
देवी के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त को जाती हैं. इसके बाद से देवी को 'सरस्वती' कहा गया. उस देवी ने वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है. अर्थात दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम 'सरस्वती पूजा' भी है. देवी सरस्वती की बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा की जाती है.
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