देश के हर हिस्से में किसी न किसी प्रकार की पगड़ी बांधी जाती है. राजस्थान की बात करें तो मात्र 40 किलोमीटर की दूरी के बाद भाषा और पगड़ी बांधने का तरीका ही बदल जाता है. मारवाड़ में बांधी जाने वाली पगड़ी खुशी गम को देखते हुए अलग अलग रंग व तरीके से बांधी जाती है. पगड़ी नाम सुनते ही आपको लग रहा होगा कि यह कोई जैकेट ,कोट या शॉल होगा नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है. पगड़ी एक बिना सिला हुआ कपड़ा है जिसे सिर पर अलग-अलग तरीके से बांधा जाता है.


शानो शौकत की पहचान


राजस्थान का दूसरा बड़ा शहर जोधपुर और जोधपुर वासी अपनी अलग ही पहचान रखते हैं. यहां की संस्कृति को जानने के लिए हर कोई उत्सुक रहता है. आज हम बात करेंगे आन बान शान की प्रतीक पगड़ी की जो कि शानो शौकत की पहचान के रूप में जानी जाती है.


इससे कई बातें पता चलती हैं


यह पगड़ी सिर्फ सिर ढकने के काम ही नहीं आती. पगड़ी आपको बताएगी कि यह कौन सी जाति का है, किसके घर में दुख हुआ है या फिर कोई खुशी का माहौल है. जोधपुरी पगड़ी अपने आप में बहुत खास है. इस पगड़ी के दीवाने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी सहित नेता ,खिलाड़ी ,अभिनेता भी हैं. राजस्थान में पगड़ी पहनने का खासतौर से प्रचलन है. मारवाड़ ,मेवाड़, हाडोती ,गोडावण, शेखावाटी व मेवात क्षेत्र में अधिक लोकप्रिय हैं


अलग अलग रंगों का महत्व


राजस्थान में पगड़ी कई प्रकार से बांधी जाती है. पगड़ी को अपनी शान और शौकत के लिए पहना जाता है. इसका इतिहास काफी पुराना है. यह पगड़ी पहले जातीय आधार पर पहनी जाती थी. पगड़ी का हर एक रंग अपने आप में जाति विशेष से जुड़ा हुआ होता था. जैसे केसरिया रंग शौर्य का प्रतीक है. पहले जब युद्ध हुआ करते थे तो राजा महाराजा केसरिया पगड़ी पहनकर युद्ध के मैदान में उतरते थे.


साथ ही दूल्हा अपनी बारात लेकर निकलता था तो केसरिया रंग की पगड़ी ही पहनाई जाती थी. किसी के घर में शोक है तो मटिया व ब्लू कलर की पगड़ी पहनने का रिवाज हुआ करता था. अब यह पगड़ी हर उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. अब किसी भी रंग किसी भी डिजाइन की पगड़ी कोई भी पहन सकता है.


बड़ा व्यापार बन चुका है


इसे लेकर शहर में कई दुकानें लगी हैं. पगड़ी का व्यापार बहुत बड़ा व्यापार बन चुका है. जोधपुर में इससे जुड़े करीब 100 दुकानदार और 10 हजार से अधिक परिवार यह व्यवसाय कर रहे हैं. करोड़ों रुपए की पगड़ी शादियों के सीजन में बिक जाती है. प्राचीन काल में पगड़ी पहनने का प्रचलन कुछ खास कारण से भी हुआ करता था. राजस्थान में गर्मी बहुत पड़ती थी. पगड़ी पहनने वाले लोगों को तापमान से भी राहत मिलती थी. जरूरत पड़ने पर इसका कुंए से पानी निकालने के लिए रस्सी के रूप में भी काम में ले लेते थे. 


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