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Rajasthan Congress Crisis: राजस्थान विवाद सुलझाना रंधावा के बस की बात नहीं, दिल्ली में हो पंचायत, कांग्रेस के इस नेता ने क्यों दिया ऐसा बयान

Rajasthan Politics: आचार्य ने कहा कि इस विवाद को सुलझाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को आगे आना चाहिए. अगर कांग्रेस इस लड़ाई को नहीं सुलझा पाई, तो यह भारी क्षति होगी.

Acharya Pramod Krishnam News: राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच जारी विवाद अब तक सुलझ नहीं पाया है. कांग्रेस के नए प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा (Sukhjinder Singh Randhawa) ने चार्ज लेने के बाद इसे सुलझा लेने का वादा किया था. लेकिन अबतक कुछ होता हुआ नजर नहीं आ रहा है. इस बीच सचिन पायलट के 11 अप्रैल के अनशन के बाद रंधावा और उनके बीच तल्खी और बढ़ गई है. इस बीच कल्की पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम (Acharya Pramod Krishnam) ने कहा है कि इस विवाद को सुलझा पाना रंधावा के बस की बात नहीं है. उन्होंने यह बात एबीपी लाइव को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कही.

कौन सुलझाएगा अशोक गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा

प्रमोद कृष्णम से सवाल किया गया था कि राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा लगातार सचिन पायलट पर हमलावर हैं. इस पर उन्होंने कहा, ''रंधावा जी पहलवान टाइप आदमी हैं.वह क्या कर रहे हैं? क्या करेंगे? मैं उस पर कुछ नहीं कहना चाहता.मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि राजस्थान का विषय सुलझाना रंधावा जी के हाथ में नहीं है. यह लड़ाई सत्य और असत्य की लड़ाई है. इस विवाद को सुलझाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को आगे आना चाहिए. अगर कांग्रेस लड़ाई को नहीं सुलझा पाई, तो यह भारी क्षति होगी.''

सचिन पायलट के अलग पार्टी बनाने के सवाल पर प्रमोद कृष्णम ने कहा,''मुझे नहीं लगता कि सचिन पायलट निराश होने वाले व्यक्ति हैं.सचिन पायलट योद्धा हैं.वह महायोद्धा की तरह काम करेंगे.योद्धा कभी निराश नहीं होता. पहाड़ खोदकर नदियां निकालते हैं योद्धा. बंजर भूमि में फूल खिलाने का सपना देखते हैं योद्धा. राजस्थान को जब सचिन पायलट को सौंपा गया था, तब सिर्फ 20-21 एमएलए आए थे. वहां से 100 एमएलए तक का सफर तय किया और यह सचिन पायलट ने ही किया. मुझे लगता है कि सचिन पायलट निराश होने वाले व्यक्ति नहीं हैं. हां, यह जरूर है कि इंसान को लगता है कि जब उसके हक में फैसले नहीं हो रहे हो. साजिश हो रही हो, तब थोड़ा कष्ट होता ही है.''

अशोक गहलोत का चुनाव में जीत का दावा क्या है?

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस दावे पर कि 2013 से पहले उन्होंने जो योजनाएं बनाई थीं, उसकी बदौलत साल 2018 में सरकार की वापसी हुई. इसमें सचिन पायलट की कोई भूमिका नहीं है.आचार्य ने कहा कि सचिन पायलट क्या कहते हैं और अशोक गहलोत क्या कहते हैं, मैं उनकी बात में नहीं जाता.मैं वह कह रहा हूं जो मुझे महसूस हो रहा है. साल 2013 में जब  अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे. जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे तब कितना बड़ा प्रचंड बहुमत था. लेकिन, जब हारे तब क्या हुआ है. मात्र 20-21 एमएलए ही रह गए. सचिन पायलट के नेतृत्व में चुनाव हुआ, तो हमारी सरकार बनी. इससे आगे मैं कुछ नहीं कहना चाहता. प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती. इतिहास में जो लिखा हुआ है, उसे पढ़ना चाहिए.

गहलोत का यह भी कहना है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सचिन पायलट ही कांग्रेस अध्यक्ष थे, लेकिन कांग्रेस शून्य पर आ गई.गहलोत के इस दावे पर आचार्य प्रमोद ने कहा कि लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा सचिन पायलट नहीं थे.यह तर्क नहीं कुतर्क है. इस तर्क में कोई दम नहीं है. यह विषय व्यर्थ है. शकुनी भी तर्क देता था कि दुर्योधन हक में है. विदुर कहते थे कि पांडव हक में है. कृष्ण कहते थे कि पांडव हक में है. भगवान कृष्ण ने कहा कि पांडवों को 5 गांव दे दीजिए, लेकिन शकुनि ने धृतराष्ट्र से कहा कि इससे कौरवों का हक मारा जाएगा. फिर सब ने देखा कि क्या हुआ? महाभारत हुआ.

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