Udaipur: 37 साल पहले उदयपुर में हुई थी आतंकी घटना, वारदात में घायल हुए पूर्व ASP ने सुनाई कहानी
Revenge of operation Blue Star : ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए सुखविंदर सिंह सुक्खी और हरजिंदर सिंह जिंदा ने उदयपुर में आतंकी घटना को अंजाम दिया था. इसमें दो पुलिस अधिकारी शहीद हो गए थे.
1986 Udaipur Terror Attack: देश में कई बड़ी आतंकी घटनाएं हो चुकी है. आतंकी वारदातों के खिलाफ सेना और सुरक्षाबलों की तरफ से कई ऑपरेशन भी किए गए. इन सभी ऑपेरशन में एक ऐसा ऑपेरशन है, जिसे देश-दुनिया याद रखती है. वह है ऑपरेशन ब्लू स्टार ( operation Blue Star). इसी ऑपेरशन के बाद इससे जुड़े आतंकियों सुखविंदर सिंह सुक्खी (Sukhwinder Singh Sukhi) और हरजिंदर सिंह जिंदा (Harjinder Singh Jinda) ने उदयपुर शहर में भी आतंकी घटना को अंजाम दिया था. इसमें गोली लगने से दो पुलिस अधिकारियों ने अपनी जान भी गवां दी थी. उदयपुर में यह आतंकी घटना 16 अप्रैल 1986 में हुई थी. इस घटना में गोली लगने से घायल हुए सेवानिवृत्त एएसपी सुरेश चंद्र पंड्या से एबीपी से उस दिन की पूरी घटना बताई.
यह हुई थी घटना
रिटायर्ड एएसपी सुरेश चंद्र पंड्या ने बताया कि बात 12 से 14 अप्रैल 1986 के बीच की है. उदयपुर में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का एक जेसी बोस हॉस्टल है. यहां पर रहने वाले छात्रों और सिंधी समाज के युवाओं के बीच में किन्ही कारणवश विवाद चल रहा था. विवाद में मारपीट भी हो रही थी. बड़ा मामला होने के कारण उदयपुर में भारी जाब्ता तैनात था. उस समय मैं उदयपुर के सलूंबर तहसील में डिप्टी एसपी पद पर तैनात था. यानी वो सर्कल मेरे अंडर आता था. मुझे उच्चाधिकारियों का फोन आया और कहा गया कि स्थिति को काबू करने के लिए तुरंत आप शहर आइए. मैं उदयपुर आया, क्योंकि मैं सीनियर अधिकारी था तो मुझे कंट्रोल रूम का इंचार्ज बनाया गया. उस समय कंट्रोल रूम शहर के मुख्य चौराहों में से एक सूरजपोल चुनाव के पास सूरजपोल गेट में होता था.
आग लगने की सूचना पर गए थे, आए तो कार रुकी थी और पूछताछ हो रही थी
उन्होंने आगे बताया कि शहर में विवाद काफी बढ़ रहा था. इसी कारण पूरे शहर में भारी पुलिस जाब्ता तैनात था. मैं कंट्रोल रूम पर इंचार्ज था और मेरे साथ में आरएएस अधिकारी वाजपेयी भी थे. उस समय कई जगह से अफवाह वाली सूचनाएं कंट्रोल रूम पर आ रही थी कि यहां पर मारपीट हो गई, तोड़फोड़ हो गई. इसी तरह एक सूचना आई कि पटाखों की दुकान में आग लगा दी गई है. मैं और आरएएस वाजपेयी दोनों गाड़ी लेकर निकले और उस दुकान पर पहुंचे, तो अफवाह निकली. इसके बाद थोड़ा सा शहर का राउंड किया और स्थिति देखी. आधे घंटे बाद यानी रात के 1 बज के करीब सूरजपोल स्थित पुलिस कंट्रोल रूम पहुंचा. वहां पहुंचे तो देखा कि जो जाब्ता तैनात था, उन्होंने कार रुकवाई हुई थी, जिसमें दो लड़के कार के अंदर बैठे थे और दो बाहर बैठे थे. पुलिस उनसे पूछताछ कर रही थी और जाब्ता उनको यह भी कह रहा था कि अधिकारी आ गए हैं, अब उनसे बात करो.
अचानक हुई फायरिंग में मैं घायल हो गया और दो पुलिसकर्मियों की जान चली गई
सुरेश चंद्र पंड्या ने आगे बताया कि हम कंट्रोल रूम पहुंचे और गेट के बाहर ही चेयर और टेबल लगा रखी थी. वहां बैठे ही थे कि हमारी तरफ से एक युवक आता हुआ दिखाई दिया. उसके हाथ में गाड़ी के कागज थे. क्योंकि उनको शक हो गया था कि अब बचेंगे नहीं, इसलिए एक युवक जो बाहर खड़ा था, उसने गन तानी और फायर कर दिया. वह फायर मेरे बाएं तरफ सीने में लगी और गोली आर-पार हो गई. उस समय इतना पता नहीं चला था कि क्या हुआ और उसी दौरान जो युवक दस्तावेज लेकर आ रहा था. वह मेरे पास पहुंचा. वह दूसरी गोली चलाता इससे पहले पास आए युवक को मैंने अपना शील्ड बना लिया. यानी अपने आगे ले लिया, जिससे वह मुझ पर फायर नहीं कर पाया. इसी दौरान गन ताने युवक ने एक और फायर किया जो RAS बाजपेयी के हाथ में लगी. पूरा जाब्ता तितर-बितर होकर कंट्रोल रूम में चला गया. इसी दौरान राउंड करके सब इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह शेखावत आए और मुझे सैल्यूट किया. इतने में उन्होंने देखा कि युवक पिस्टल लेकर खड़ा हुआ है. वह उसको पकड़ते इतने में उसने उन पर फायर कर दी, जिससे वह मूर्छित होकर गिर गए. वहीं, रिजर्व इंस्पेक्टर पद पर तैनात रोशन लाल माथुर कंट्रोल रूम के अंदर खिड़की से बाहर देख रहे थे, तभी युवक ने उन पर फायर कर दिया. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मैंने उस युवक को अपनी शील्ड बनाकर पकड़े रखा था, क्योंकि मुझे भी गोली लग चुकी थी और बेहोशी जैसी हालत हो गई थी तो वह मुझसे छुटा और चारों कार में सवार होकर भाग निकले. इस घटनाक्रम में सब इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह शेखावत और रिजर्व इंस्पेक्टर रोशन लाल की जान गई.
वह सुक्खी और जिंदा थे, जो ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने निकले थे
मुझे गोली लगी तो मैंने उच्चाधिकारियों को फोन किया. उसके बाद सभी उनको पकड़ने के लिए पीछे भागे, लेकिन सभी युवक निकल चुके थे. हमें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. अनुसंधान के बाद सामने आया कि जो युवक उदयपुर में आतंकी घटना कर निकल चुके हैं, वह सुखविंदर सिंह सुक्खी और हरजिंदर सिंह जिंदा सहित दो अन्य युवक हैं. दरअसल, वर्ष 1984 में जो ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ था. उस ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए जिंदा और सुखी दोनों अपनी टीम तैयार कर रहे थे. ये लोग जनरल वैद्य की हत्या की प्लानिंग कर रहे थे. वह जनरल वैद्य की हत्या करने के लिए उदयपुर होते हुए महाराष्ट्र के पुणे जा रहे थे. इसी बीच उदयपुर में विवाद के चलते पुलिस जाब्ता तैनात होने के कारण नाकाबंदी में उन्हें रोक लिया गया. बाद में जनरल वैद्य की हत्या भी उन्होंने की और उनको कोर्ट से सजा भी मिली.
पिता के लिए सम्मान की लड़ाई लड़ रहीं बेटियां
आतंकी घटना में जान गवाने वाले एसआई राजेन्द्र सिंह शेखावत की बेटी रुचि शेखावत ने बताया कि जब यह घटना घटी, तब वह 10 साल की थी और छोटी बहन कुछ माह की थी. कहते हैं न शहीद एक नहीं, पूरा परिवार होता है. ऐसा ही मेरे परिवार के साथ हुआ. पापा की जगह मां को पुलिस में जॉब मिल गई, फिर भी परेशानियां उठाते हुए उन्होंने हमें बड़ा किया. उनके सम्मान के लिए सरकार से दो मांगे की. पहली तो यह कि उन्हें गैलेंट्री दिया जाए और दूसरा जिस जगह घटना हुई थी. वहां उनकी याद में मार्ग का नाम उनके नाम से रखा जाए. सीएम को भी फाइल भिजवा रखी है. वर्ष 2019 से लगातार मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
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