Rajasthan News: आज पूरा देश दशहरा मना रहा है. पूरे देश में जगह-जगह पर रावण दहन (Ravana Dahan) की तैयारियों जोर-शोर से चल रही हैं. बुराई पर अच्छाई की जीत के इस महापर्व पर आज हम आपको राजस्थान (Rajasthan) के एक ऐसे गांव की कहानी बताने जा रहे हैं जहां लोग रावण के पुतले का दहन नहीं बल्कि उसे गोलियों से छलनी करते हैं. जी हां, यह गांव प्रतापगढ़ ( Pratapgarh ) जिले के अरनोद तहसील (Arnod Tehsil) में है और उसका नाम है खेरोट (kherot). यहीं नहीं यह प्रतापगढ़ जिले का अकेला ऐसा गांव है जहां रावण का दहन नहीं किया जाता. इसके अलावा लोग मिट्टी से बने रावण के सिर को लट्ठ मार-मारकर उसके धड़ से अलग कर देते हैं. आइये जानते हैं यहां की क्या है परंपरा....


 गोलियों से छलनी करने के लिए लगती हैं बोलियां
प्रतापगढ़ शहर से करीब 6 किलोमीटर दूर खेरोट गांव है यहां स्थानीय आदर्श राजकीय उच्य माध्यमिक विद्यालय परिसर में रावण का पुतला बनाया गया है. ग्रमीणों के अनुसार जहां पर रावण का पुतला बनाया जाता है वहां पहले लोग फसलें काटकर ढेर लगाते थे. फसल को आग नहीं लगे इसलिए रावण को जलाते नहीं है बल्कि उसे गोलियों से छलनी करते थे. यहीं परंपरा आज भी जिंदा है.


सबसे अधिक बोली लगाने वाला चलाता है पहली गोली


क्षेत्र के लाइसेंस बंदूकधारियों द्वारा रावण को छलनी किया जाता है. सुबह से ही गांव में बड़े उत्सुकता का माहौल रहता है. सभी स्कूल में इकट्ठा होते हैं और फिर रावण को पहली गोली मारने के लिए बोलियां लगती हैं, जिसकी बोली सबसे अधिक होती है वह पहले भगवान राम के भाले से रावण की नाक काटता है. फिर अपनी लाइसेंसी बंदूक से रावण को पहली गोली मारता है. फिर सभी बंदूक के रावण को छलनी करते हैं. यहीं नहीं रावण की पूजा आरती भी की जाती है. साथ में राम-रावण के दो गुट बनते है जो अलग-अलग खड़े होकर चौपाइयों में वाद संवाद भी करते हैं. साथ ही दोनों गुट अपने-अपने भगवान के खूब जयकारे लगाते हैं. 


 मिट्टी का सिर अलग कर घर के जाते हैं लोग
प्रतापगढ़ से 65 किमी दूर आकोला गांव में भी रावण वध की अनौखी परंपरा है, वहां कई साल से रावण का धड़ दशहरा मैदान में खड़ा है. पहले ये मिट्टी का था, अब सीमेंट का कर दिया है. इसमें सिर जरूर मिट्टी का होता है. लोक संस्कृति के जानकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू बताते हैं कि रावण वध की यह परंपरा 600 साल से भी ज्यादा पुरानी है जिसमें लोग उसके सिर को धड़ से अलग करते हैं. जैसे ही सिर धड़ से अलग होता है सैकड़ों लोग सिर के टुकड़े यानी ठिकरिया लेने के लिए टूट पड़ते हैं. मान्यता है कि यह ठीकरी घर में रखने से खटमल नहीं होते और घर में शांति रहती है.


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