Rajasthan: ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर चढ़ेगा 812वें उर्स का झंडा, 25 तोपों की सलामी के बीच गौरी परिवार निभाएगा रस्म
Ajmer Sharif Dargah: ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के लिए 8 जनवरी को असर की नमाज के बाद दरगाह गेस्ट हाउस से झंडे का जलसा रवाना हुआ. इस दौरान गौरी परिवार के सदस्य चादर और तबर्रुक के थाल सिर पर रखकर पहुंचे.
Urs in Ajmer Sharif Dargah: अजमेर (Ajmer) में स्थित विश्व प्रसिद्ध हजरत ख्वाजा गरीब नवाज मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में 812वें उर्स का झंडा सोमवार (8 जनवरी) को चढ़ाया जाएगा. भीलवाड़ा (Bhilwara) का गौरी परिवार 80वीं बार दरगाह स्थित बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाने की रस्म निभाएगा. इस रस्म को निभाने के लिए गौरी परिवार के सदस्य अजमेर पहुंच गए हैं. इस दौरान लाल मोहम्मद गौरी के पोते फखरुद्दीन झंडा चढ़ाने की रस्म अदा करेंगे.
उर्स में दरगाह शरीफ (Dargah Sharif Ajmer) आने वाले जायरीन के लिए जिला प्रशासन और दरगाह कमेटी मेंबर ने माकूल बंदोबस्त किए हैं. इस साल उर्स (Ajmer Urs 2023) में 2.50 से 3.50 लाख जायरीन और हजारों की संख्या में वाहनों के पहुंचने की उम्मीद है. सुरक्षा के लिए सैकड़ों की तादाद में पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं. उर्स की विधिवत शुरुआत रजब का चांद दिखाई देने पर 12 या 13 जनवरी की रात से शुरू होगी.
सालों से चली आ रही परंपरा
गरीब नवाज के उर्स मेले में झंडा चढ़ाने की रस्म भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी के पोते फखरुद्दीन गौरी की सदारत में अदा की जाएगी. विश्व प्रसिद्ध उर्स में झंडा चढ़ाने की रस्म बरसों पुरानी है. साल 1928 में पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान रहमतुल्ला अलैह ने इस परंपरा की शुरूआत की थी. इसके बाद 1944 से भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार यह रस्म निभा रहा है. लाल मोहम्मद ने 1944 से 1991 तक यह रस्म निभाई थी. उनके बाद मोईनुद्दीन गौरी ने 2006 तक झंडा चढ़ाया. अब फखरुद्दीन गौरी अपने पुरखों की परंपरा को निभा रहे हैं.
500 साल पुराना है बुलंद दरवाजा
दरगाह से जुड़े लोग बताते हैं कि बुलंद दरवाजा करीब 500 साल पुराना है. 14वीं-15वीं शताब्दी में खिलजी वंश ने इस दरवाजे का निर्माण करवाया था. इस दरवाजे की ऊंचाई 75 फीट है. हर साल इसी दरवाजे पर झंडे की रस्म निभाई जाती है. आस्थावान लोगों के बीच बुलंद दरवाजे की विशेष मान्यता है.
सूफियाना कलाम और 25 तोपों की सलामी
अजमेर में 8 जनवरी को असर की नमाज के बाद दरगाह गेस्ट हाउस से झंडे का जलसा रवाना होगा. गौरी परिवार के सदस्य चादर और तबर्रुक के थाल सिर पर रखकर चलेंगे. शाही कव्वाल असरार हुसैन की पार्टी के कव्वाल कलाम पेश करते हुए चलेंगे. यह जुलूस लंगर खाना गली व निजाम गेट से गुजरते हुए दरगाह शरीफ पहुंचेगा. यहां से दरगाह के बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया जाएगा.
यहां बड़ी संख्या में जायरीन झंडे को छूने और चूमने के लिए बेताब रहते हैं. उर्स का झंडा चढ़ाने की रस्म के दौरान बैंड सूफियाना कलाम पेश करेगा. बड़े पीर साहब की पहाड़ी से 25 तोपों की सलामी होगी. देश-विदेशों से आए हजारों लोग इस वक्त मौजूद रहेंगे.
ये भी पढ़ें: