Innovation in Agriculture: कोटा कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की चने की नई किस्म, पैदावार जानकर रह जाएंगे हैरान
Kota News: कोटा कृषि विश्वविद्यालय में करीब आठ साल के शोध के बाद विकसित चने की इस नई किस्म को काबुली-4 नाम दिया गया है. इस नई किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली (ICAR) की मंजूरी मिल गई है.
New Variety of Gram: कोटा कृषि विश्वविद्यालय (Kota Agricultural University) अपने नवाचारों के लिए पहचान बना रहा है. कई तहर के प्रोडक्ट बनाने के साथ ही किसानों का उत्पादन बढाने और आधुनिक तकनीक का सही उपयोग करते हुए किसानों को लाभांवित कर रहा है.कोटा कृषि विश्वविद्यालय ने इस बार चने (Gram) की नई किस्म तैयार की है. जिसके कई लाभ सामने आए हैं. आईसीएआर ने काबुली-4 नाम की इस नई किस्म को मंजूरी दे दी है. इसकी पैदावार भी उन्य किस्मों की तुलना में करीब दो गुनी है.
कितने साल की मेहनत से तैयार हुई है नई किस्म
कोटा कृषि विश्वविद्यालय ने चने की नई किस्म विकसित की है. इसके लिए उन्हें आठ साल का लंबा इंतजार करना पड़ा. इसे काबुली-4 नाम दिया गया है.भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली (आईसीएआर) ने इस पर मुहर लगा दी है. कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि इस फसल की कई विशेषताएं हैं.इस फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक रहती है.चने की इस किस्म में शुष्क जड़ गलन,रोट और उखटा रोग नहीं लगता है.पैदावार भी काफी अच्छी हो रही है.विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसकी हाड़ौती में रबी के लिए भी सिफारिश कर दी है.काबुली चना-4 की किस्म पर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग पैरामीटर पर खरा उतरने पर देश में कृषि की सबसे बड़ी संस्था आईसीएआर की बैठक में इस पर मुहर लगाई है.
कितने दिन में तैयार होगी काबुली-4 की फसल
कोटा कृषि विश्वविद्यालय में तैयार इस किस्म को लेकर कृषि वैज्ञानिकों में उत्साह है.काबुली-4 की खासियत है कि यह 16.59 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देगा. यह फसल 96 दिन से 102 दिन में तैयार हो जाती है.इसके 100 दानों का वजन 26.83 ग्राम होता है. यह काफी अधिक है.ये अन्य किस्मों की अपेक्षा 50 प्रतिशत उत्पादन देगी.
कितनी पैदावार है काबुली-4 की
कृषि विवि के रिसर्च डॉयरेक्टर डॉ. प्रताप सिंह का कहना है कि इस किस्म को वैज्ञानिक नाम आरकेजीके 13-416 दिया है. यह अन्य किस्मों से दोगुना तक उत्पादन देगी.मानक स्थिति में एक हैक्टेयर में 16.59 क्विंटल तक यानि एक बीघा में करीब तीन क्विंटल तक उत्पादन लिया जा सकता है.इस किस्म से न केवल कोटा संभाग बल्कि देशभर के किसान लाभांवित होंगे.दक्षिणी भारत की जलवायु के लिए भी यह किस्म अनुकूल है.